खुदाई खिदमतगार आंदोलन | 25 Apr 2020
प्रीलिम्स के लिये:खुदाई खिदमतगार आंदोलन मेन्स के लिये:खुदाई खिदमतगार आंदोलन की भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका |
चर्चा में क्यों?
किस्सा ख्वानी बाज़ार (Qissa Khwani Bazaar) नरसंहार को 90 बरस बीत गए हैं। 23 अप्रैल, 1930 को खुदाई खिदमतगार (Khudai Khidmatgar) आंदोलन के अहिंसक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ ब्रिटिश सैनिकों द्वारा की गई नरसंहार कार्यवाही के रूप में इतिहास में दर्ज यह स्थल इंडो-इस्लामिक स्थापत्य शैली का एक उदाहरण है।
खुदाई खिदमतगार कौन थे?
- खान अब्दुल गफ्फार खान ने वर्ष 1929 में खुदाई खिदमतगार (सर्वेंट ऑफ गॉड) आंदोलन की शुरुआत की। सामान्य लोगों की भाषा में वे सुर्ख पोश थे। खुदाई खिदमतगर आंदोलन गांधी जी के अहिंसात्मक आंदोलन से प्रेरित था।
- खुदाई खिदमतगार उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत में पश्तून/पख्तून (या पठान; पाकिस्तान और अफगानिस्तान का मुसलमान जातीय समूह) स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्त्व में संचालित ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक अहिंसक आंदोलन था।
- समय के साथ-साथ इस आंदोलन ने राजनीतिक रूप धारण कर लिया था, जिसके कारण इस क्षेत्र में आंदोलन की बढ़ती ख्याति अंग्रेज़ों की नज़र में आ गई।
- वर्ष 1929 में खान अब्दुल गफ्फार खान और अन्य नेताओं की गिरफ्तारी के बाद यह आंदोलन ऑल इंडिया मुस्लिम लीग से समर्थन प्राप्त करने में विफल रहा, जिसके बाद यह आंदोलन औपचारिक रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गया।
- खुदाई खिदमतगार के सदस्यों को संगठित किया गया और पुरुषों ने गहरे लाल रंग की शर्ट (जिसे वे वर्दी के रूप में पहनते थे) और महिलाओं ने काले रंग के वस्त्र धारण किये। खुदाई खिदमतगारों ने भारत के विभाजन का विरोध किया।
किस्सा ख्वानी बाज़ार नरसंहार क्यों हुआ?
- अब्दुल गफ्फार खान और खुदाई खिदमतगार के अन्य नेताओं को 23 अप्रैल, 1930 को अंग्रेज़ों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया, क्योंकि उन्होंने उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत के उटमानज़ई (Utmanzai) शहर में आयोजित एक सभा में भाषण दिया था।
- अब्दुल गफ्फार खान को उनके अहिंसक तरीकों के लिये जाना जाता है, यही वजह रही कि खान की गिरफ्तारी को लेकर पेशावर सहित पड़ोसी शहरों में विरोध प्रदर्शन होने लगे।
- खान की गिरफ्तारी के ही दिन पेशावर के किस्सा ख्वानी बाज़ार में विरोध प्रदर्शन हुए। ब्रिटिश सैनिकों ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिये बाज़ार क्षेत्र में प्रवेश किया, परंतु भीड़ ने प्रदर्शन-स्थल छोड़ने से इनकार कर दिया।
- इसके प्रत्त्युत्तर में ब्रिटिश सेना अपने वाहनों के साथ भीड़ में घुस गई, उन्होंने बहुत-से प्रदर्शनकारियों को कुचल डाला। इसके बाद ब्रिटिश सैनिकों ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ बरसानी शुरू कर दीं जिसमें बहुत से बेगुनाह लोग मारे गए।
खान अब्दुल गफ्फार खान का परिचय
- फ्रंटियर गांधी के नाम से मशहूर अब्दुल गफ्फार खान को बाचा खान और बादशाह खान के नाम से भी जाना जाता है। महात्मा गांधी के एक दोस्त ने उन्हें फ्रंटियर गांधी का नाम दिया था।
- उनका जन्म 6 फरवरी 1890 को हुआ था। वह अपने 98 वर्ष के जीवनकाल में कुल 35 वर्ष जेल में रहे। वर्ष 1988 में पाकिस्तान सरकार ने उन्हें पेशावर स्थित उनके घर में नज़रबंद कर दिया था और उसी दौरान 20 जनवरी, 1988 को उनकी मृत्यु हो गई।
- अब्दुल गफ्फार खान एक राजनीतिक और आध्यात्मिक नेता थे, उन्हें उनके अहिंसात्मक आंदोलन के लिये जाना जाता है।
- उन्होंने सदैव ‘मुस्लिम लीग’ द्वारा की जाने वाली देश के विभाजन की मांग का विरोध किया, परंतु जब अंत में कांग्रेस ने देश के विभाजन को स्वीकार कर लिया, तो उन्हें बहुत निराशा हुई। इस निराशा को उन्होंने कुछ यूँ बयाँ किया “आप लोगों ने हमें भेड़ियों के सामने फेंक दिया।”
- विभाजन के बाद उन्होंने पाकिस्तान में रहने का निर्णय लिया और पाकिस्तान के भीतर ही ‘पख्तूनिस्तान’ नामक एक स्वायत्त प्रशासनिक इकाई की मांग की। पाकिस्तान सरकार ने उन पर संदेह करते हुए उन्हें उन्हीं के घर में नज़रबंद रखा और अंततः भारतीय इतिहास के एक करिश्माई नेता का जीवन जेल में ही बीत गया।
- वर्ष 1987 में भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।