खरीफ रणनीति-2021 | 25 May 2021
चर्चा में क्यों?
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिये ‘खरीफ रणनीति-2021’ तैयार की है।
खरीफ सीज़न
- इस सीज़न फसलें जून से जुलाई माह तक बोई जाती हैं और कटाई सितंबर-अक्तूबर माह के बीच की जाती है।
- फसलें: इसके तहत चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर, मूँग, उड़द, कपास, जूट, मूँगफली और सोयाबीन आदि शामिल हैं।
- राज्य: असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा के तटीय क्षेत्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र।
प्रमुख बिंदु
खरीफ रणनीति-2021
- इस रणनीति के तहत खरीफ सत्र-2021 के लिये किसानों को मिनी किट के रूप में बीजों की अधिक उपज वाली किस्मों के मुफ्त वितरण की महत्त्वाकांक्षी योजना शामिल है।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (तेल बीज और पाम ऑयल) के तहत सोयाबीन और मूँगफली के लिये क्षेत्र और उत्पादकता वृद्धि दोनों के लिये रणनीति तैयार की गई है।
- इस रणनीति के माध्यम से तिलहन के अंतर्गत अतिरिक्त 6.37 लाख हेक्टेयर क्षेत्र लाया जाएगा और साथ ही 120.26 लाख क्विंटल तिलहन और 24.36 लाख टन खाद्य तेल के उत्पादन का अनुमान है।
तिलहन से संबंधित बुनियादी जानकारी
- तिलहन फसलें, भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था का दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण कारक हैं, जो कि फसलों में अनाज के बाद दूसरे स्थान पर हैं।
- 1990 के दशक की शुरुआत में ‘पीली क्रांति’ के माध्यम से प्राप्त तिलहन क्षेत्र में आत्मनिर्भरता लंबी अवधि तक नहीं टिक सकी थी।
- तिलहन की फसलें मुख्य रूप से उनसे वनस्पति तेल प्राप्त करने के उद्देश्य से उगाई जाती हैं। उनमें तेल की मात्रा 20 प्रतिशत (सोयाबीन) से लेकर 40 प्रतिशत (सूरजमुखी और कैनोला) तक होती है।
- अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण भारत बड़ी मात्रा में तिलहन का उत्पादन करने में सक्षम है।
- अरंडी के बीज, तिल, रेपसीड, मूँगफली, सरसों, सोयाबीन, अलसी, नाइजर बीज, सूरजमुखी और कुसुम कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण तिलहन फसल हैं, जिनका उत्पादन भारत में किया जाता है।
- तिलहन के उत्पादन में भारत का विश्व में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है।
- चीन के बाद भारत मूँगफली का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और चीन तथा कनाडा के बाद रेपसीड के उत्पादन में तीसरे स्थान पर है।
- भारत में प्रमुख तिलहन उत्पादक क्षेत्रों में शामिल हैं: राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (तिलहन और पाम ऑयल)
- उद्देश्य
- तिलहन और पाम ऑयल के उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि करके खाद्य तेलों की उपलब्धता बढ़ाना और खाद्य तेलों के आयात को कम करना।
- NFSM के तहत NMOOP का विलय
- तिलहन और पाम ऑयल पर राष्ट्रीय मिशन (NMOOP) को वर्ष 2014-15 में शुरू किया गया था और यह वर्ष 2017-18 तक जारी रहा।
- वर्ष 2018-19 से NMOOP को NFSM के तहत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (तिलहन और पाम ऑयल) के रूप में लागू किया जा रहा है, जिसके तहत NFSM-तिलहन, NFSM-पाम ऑयल और NFSM-ट्री बोर्न तिलहन आदि उप-घटक के रूप में शामिल हैं।
- बहुआयामी नीति
- किस्मों के प्रतिस्थापन पर ध्यान देने के साथ ‘बीज प्रतिस्थापन अनुपात’ (SRR) में बढ़ोतरी करना।
- बीज प्रतिस्थापन अनुपात (SRR) का आशय कृषि से व्युत्पन्न पारंपरिक बीज की तुलना में प्रमाणित/गुणवत्तापूर्ण बीजों के साथ बोए गए कुल फसल वाले क्षेत्र के प्रतिशत से होता है।
- पानी की बचत करने वाले उपकरणों (स्प्रिंकलर/रेन गन), ज़ीरो टिलेज, इंटर-क्रॉपिंग, रिले क्रॉपिंग, सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के रणनीतिक अनुप्रयोग और मिट्टी में सुधार करने वाली जलवायु लचीला प्रौद्योगिकियों को अपनाकर उत्पादकता में सुधार करना।
- कम उपज वाले खाद्यान्नों के विविधीकरण के माध्यम से क्षेत्र का विस्तार करना।
- क्षमता निर्माण।
- बेहतर कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिये क्लस्टर प्रदर्शनों का समर्थन करना।
- गुणवत्ता वाले बीजों की अधिक उपलब्धता के लिये क्षेत्रीय दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करते हुए 36 तिलहन केंद्रों का निर्माण।
- खेत और ग्राम स्तर पर कटाई उपरांत प्रबंधन।
- किसान उत्पादक संगठनों का गठन।
- किस्मों के प्रतिस्थापन पर ध्यान देने के साथ ‘बीज प्रतिस्थापन अनुपात’ (SRR) में बढ़ोतरी करना।
- वित्तपोषण पैटर्न
- केंद्र और राज्य सरकारों के बीच लागत साझा करने का पैटर्न, सामान्य श्रेणी के राज्यों के लिये 60:40 और उत्तर पूर्वी तथा हिमालयी राज्यों के लिये 90:10 के अनुपात में है।
- कुछ हस्तक्षेपों जैसे- राज्य और केंद्रीय बीज उत्पादक एजेंसियों दोनों द्वारा ब्रीडर बीजों की खरीद और किसानों को बीज मिनीकिट की आपूर्ति आदि के लिये भारत सरकार द्वारा 100% वित्तपोषण प्रदान किया जाएगा।