अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अर्द्ध-वार्षिक आर्थिक समीक्षा के महत्त्वपूर्ण बिंदु
- 12 Aug 2017
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चर्चा में क्यों ?
- हाल ही में ज़ारी आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016-17 में 6.75% से 7.5 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि के अनुमान के उच्चतम दायरे (7.5 प्रतिशत जी.डी.पी. वृद्धि) को हासिल कर पाना आसान नहीं होगा।
- यह पहला अवसर है जब सरकार ने किसी वित्तीय वर्ष के लिये आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट दो बार प्रस्तुत की है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2016-17 के लिये पहली आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट 31 जनवरी, 2017 को लोकसभा में पेश की थी।
- हाल ही में प्रस्तुत इस आर्थिक समीक्षा में फरवरी के बाद अर्थव्यवस्था के सामने उत्पन्न नई परिस्थितियों को रेखांकित किया गया है।
क्यों कम हो सकती है वृद्धि दर ?
- आर्थिक समीक्षा में चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद दर (जीडीपी दर) घटने की आशंका जताई गई है। यह 6.75 फीसदी से 7.5 फीसदी के बीच रह सकती है।
- इसमें कहा गया है कि सकल घरेलू उत्पाद दर के 7.5 फीसदी के उच्चतम लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल है।
- दरअसल, ऐसा इसलिये हो सकता है, क्योंकि कृषि ऋण माफी, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करने से संबंधित शुरुआती चुनौतियाँ सामने आने लगी हैं।
- उल्लेखनीय है कि राज्यों द्वारा कृषि ऋण माफी 2.7 लाख करोड़ रुपए के आँकड़े को छू सकती है।
विमुद्रीकरण का प्रभाव
- आर्थिक समीक्षा में विमुद्रीकरण की प्रशंसा की गई है। समीक्षा के मुताबिक इससे भ्रष्टाचार को रोकने के अलावा कर का आधार भी बढ़ा है और ज्यादा लोग करों का भुगतान करने लगे हैं।
- वहीं, आर्थिक सुधारों की चर्चा करते हुए कहा गया है कि वस्तु और सेवा कर (जीएसटी), एयर इंडिया के निजीकरण को सैद्धांतिक मंज़ूरी, तेल सब्सिडी को तार्किक बनाने और बैंकों की बैलेंस शीटों में सुधार की कवायदें भारत में ढाँचागत सुधारों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
ब्याज दरें कम होने की उम्मीद
- रिपोर्ट में कहा गया है कि इस समय मौद्रिक नीति को नरम बनाने (ऋृण सस्ता और आसान करने) की बेहतर संभावनाएँ दिख रही हैं।
- बैंकों और कंपनियों की बैलेंस शीट की समस्याओं को दूर करने के लिये दिवाला कानून जैसे सुधारवादी कदमों से अर्थव्यवस्था को लाभ मिलने की संभावना भी दिख रही है।
- समीक्षा में कहा गया है कि ‘अर्थचक्र के साथ जुड़ी परिस्थितियाँ’ संकेत दे रही हैं कि रिज़र्व बैंक की नीतिगत दरें वास्तव में स्वाभाविक दर से कम होनी चाहिये।
रुपए में आई मज़बूती
- आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि पिछली समीक्षा प्रस्तुत किये जाने के बाद से रुपए के मज़बूत होने, कृषि ऋृण माफ किये जाने, पावर और टेलीकॉम जैसे क्षेत्रों में बैलेंस शीट पर दबाव बढ़ने तथा जीएसटी लागू होने से आई चुनौतियों के कारण वास्तविक अर्थव्यवस्था की गतिविधियों में गिरावट आई है। गौरतलब है कि फरवरी से अब तक रुपया करीब 1.5 प्रतिशत मज़बूत हो चुका है।
महत्त्वपूर्ण सुझाव
- विदित हो कि आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में कृषि, उद्योग, आधारभूत ढाँचे, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार, कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने, अस्पतालों के खिलाफ आवश्यक परिस्थितियों में दंडात्मक कार्रवाई करने तथा एविएशन हब बनाने जैसे कई महत्त्वपूर्ण सुझाव भी दिये गए हैं।
आँकड़ों में आर्थिक समीक्षा
- आर्थिक समीक्षा में खुदरा महँगाई के मार्च 2018 तक भारतीय रिज़र्व बैंक के चार फीसदी के अनुमान से नीचे रहने की उम्मीद जताई गई है। यह अभी 1.5 फीसदी है।
- वहीं, राजकोषीय घाटे को लेकर कहा गया है कि यह 2016-17 में 3.5 फीसदी के मुकाबले 2017-18 में 3.2 फीसदी हो जाएगा। हालाँकि, यह भी उम्मीद जताई गई है कि वित्त वर्ष 2018-19 में राजकोषीय घाटे को तीन फीसदी तक लाने का लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा।
- महँगाई दर के 4 फीसदी से नीचे रहने की उम्मीद जताई गई है, जबकि आर्थिक विकास दर 7.5 फीसदी से नीचे रह सकती है।