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केरल जनजातियों में पारंपरिक ज्ञान और अस्तित्व कौशल का संकट

  • 14 Dec 2017
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?
बिज़नेस लाइन (द हिंदू) समाचार पत्र में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, केरल की जनजातीय आबादी में पीढ़ियों से बसा पारंपरिक ज्ञान अब धीरे धीरे खत्म होता जा रहा है। पुरानी पीढ़ी से नई पीढ़ी में ज्ञान हस्तान्तरण की प्रक्रिया में अब कमी आती जा रही है। युवा पीढ़ी नई तकनीकी जानकारियों एवं सूचनाओं के साथ सामंजस्य बिठाने की जुगत में अपनी पारंपरिक शैली से दूर होती जा रही है। यदि इस दिशा में कोई कार्य नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब धीरे-धीरे यह बहुमूल्य ज्ञान पूरी तरह से गायब हो जाएगा।

आई.आई.आई.टी.एम-के. की रिपोर्ट
हाल ही में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फोर्मेशन टैक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट, (Indian Institute of Information Technology and Management-Kerala – IIITMK), केरल द्वारा आयोजित एक अध्ययन में इस बारे में जानकारी प्रदान की गई कि केरल के आदिवासी युवाओं, विशेष रूप से
पुरुषों के बीच पारंपरिक रूप से विरासत में मिली परंपराओं के संग्रहण की क्षमता में निरंतर गिरावट आ रही है।

प्रमुख बिंदु
भारत में अपनी तरह का यह पहला अध्ययन है जिसके अंतर्गत पारंपरिक ज्ञान के संबंध में एक मात्रात्मक अनुमान प्रस्तुत किया गया है।
अध्ययन के अनुसार, पश्चिमी घाट के आठ जनजातीय समुदायों के बीच पारंपरिक ज्ञान के संग्रहण में आ रही गिरावट लुप्तप्राय स्थिति में है।

 अध्ययन में शामिल जनजातीय समूह 

  • इस अध्ययन के अंतर्गत निम्नलिखित आदवासी समूहों को शामिल किया गया-
    ⇒ वायनाड ज़िले के कुरिच्यार और कट्टुनाईकर (Kurichyar and Kattunaikkar)। 
    ⇒ निलाम्बुरिन मलप्पुरम के चोलनाईकर और पनियर (Cholanaikkar and Paniyar)
    ⇒ पलक्कड़ के इरुलर और कुरुंबर (Irular and Kurumbar)।
    ⇒ कोल्लम ज़िले के कानीकर और मलापंदारम (Kaanikkar and Malapandaram)।

ज्ञान की घटती स्थिति

  • अध्ययन से प्राप्त निष्कर्षों के मुताबिक, कुरिच्यार और कुरुम्बा (Kurumba) जनजातियों के पारंपरिक ज्ञान का आधे से भी अधिक भाग नष्ट हो चुका है। 
  • इसी प्रकार चोलनाईकर और मलापंदारम जनजातियाँ अपने पारंपरिक ज्ञान का तकरीबन 33 प्रतिशत भाग गवाँ चुकी हैं।
  • इसी प्रकार काणी (Kaani) और कट्टुनाईकर जनजातियों के पारंपरिक ज्ञान का लगभग 40 से 45 प्रतिशत अंश नष्ट हो चुका
  • इन सबमें मालापंदमार जनजाति के एक ऐसा समुदाय है जिसके पास इस समय सबसे कम पारंपरिक ज्ञान है।

देश की सांस्कृतिक प्रभाव पर इसका प्रभाव

  • पारंपरिक ज्ञान की निरंतर ह्रासमान होती स्थिति से केवल इन जनजातीय समुदायों को ही नुकसान नहीं हो रहा है। इसका प्रभाव देश की सांस्कृतिक विरासत पर भी पड़ रहा है।
  • यह देश के भू-विरासत स्थलों के अस्तित्व के लिये भी एक हानिकारक स्थिति है। अत: ऐसी स्थिति में जनजातीय समुदायों के परंपरागत ज्ञान को सुरक्षित रखने के मुद्दे पर अधिक से अधिक बल दिया जाना चाहिये। 

द्विआधारी मोड पद्धति का प्रयोग 

  • आई.आई.आई.टी.एम-के द्वारा प्रकाशित इस अध्ययन में प्रतिक्रिया के रूप में 'हाँ' या 'नहीं' के द्विआधारी मोड को अपनाया गया । 
  • यह समस्त जानकारी एक साधारण प्रश्नावली के आधार पर एकत्र की गई है। इसका वैज्ञानिक तौर पर मूल्यांकन करके तैयार किया गया है।
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