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शासन व्यवस्था

प्रारंभिक बाल विकास की अवधारणा और महत्त्व

  • 05 Sep 2020
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये

स्टेट ऑफ द यंग चाइल्ड इंडिया इन इंडिया’ रिपोर्ट

मेन्स के लिये

प्रारंभिक बाल विकास की अवधारणा और उसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

गैर-सरकारी संगठन (NGO) मोबाइल क्रेच (Mobile Creches) द्वारा निर्मित और उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक केरल, गोवा, त्रिपुरा, तमिलनाडु और मिज़ोरम बच्चों के स्वास्थ्य देखभाल के मामले में शीर्ष पाँच राज्य हैं।

प्रमुख बिंदु

    • मोबाइल क्रेच (Mobile Creches) द्वारा जारी ‘स्टेट ऑफ द यंग चाइल्ड इंडिया इन इंडिया’ रिपोर्ट में दो प्रकार के इंडेक्स तैयार किये गए हैं- (1) यंग चाइल्ड आउटकम इंडेक्स और (2) यंग चाइल्ड एनवायरनमेंट इंडेक्स।
      • यंग चाइल्ड आउटकम इंडेक्स: यह इंडेक्स छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों के बीच स्वास्थ्य पोषण और ज्ञान-संबंधी विकास को मापता है, इस इंडेक्स सबसे अच्छा प्रदर्शन केरल का जबकि सबसे खराब प्रदर्शन बिहार का रहा है
      • इस इंडेक्स में ऐसे कुल आठ राज्यों की पहचान की गई है, जिन्होंने बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण और ज्ञान-संबंधी विकास के मामले में देश के औसत अंकों से भी कम अंक प्राप्त किये हैं, इन आठ राज्यों में- असम, मेघालय, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, झारखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार शामिल हैं।
      • यंग चाइल्ड एनवायरनमेंट इंडेक्स: इस इंडेक्स के माध्यम से बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले नीतिगत उपायों को समझने का प्रयास किया गया है।
      • इस इंडेक्स में बच्चे के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले पाँच नीतिगत उपायों यथा- गरीबी उन्मूलन, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को मज़बूत करना, शिक्षा स्तर में सुधार करना, स्वच्छ जल आपूर्ति और लिंग समानता का प्रचार, को शामिल किया गया है।
      • इस इंडेक्स में केरल, गोवा, सिक्किम, पंजाब और हिमाचल प्रदेश ने शीर्ष पाँच स्थान प्राप्त किये हैं। रिपोर्ट के अनुसार, जिन राज्यों ने पहले इंडेक्स में बेहतर प्रदर्शन किया है, उन्होंने दूसरे इंडेक्स में भी अच्छा प्रदर्शन किया है, जबकि पहले इंडेक्स में खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य दूसरे इंडेक्स में भी कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पाए हैं।

    बच्चों के स्वास्थ्य पर ध्यान देने की आवश्यकता

    • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश की आबादी में छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या तकरीबन 13.1 प्रतिशत है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2015-16 में पाँच वर्ष की आयु से कम उम्र के तकरीबन 21 प्रतिशत बच्चे अल्पपोषण से प्रभावित थे। वहीं 6 माह से 23 माह के बीच के 94.1 प्रतिशत बच्चों को पर्याप्त आहार प्राप्त नहीं हुआ था। 
    • नीति निर्माताओं द्वारा इस आयु समूह की उपेक्षा करना और इसके विकास पर ध्यान न देने का ही कारण है कि शिशु मृत्यु दर (IMR), बच्चों की देखभाल और उनके पोषण तथा विकास के मामले में भारत का प्रदर्शन काफी अच्छा नहीं रहा है।

    प्रारंभिक बाल विकास की अवधारणा

    • प्रायः बच्चों के विकास में बचपन के शुरुआती क्षण काफी महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं और उनका असर जीवन भर देखने को मिलता है। जन्म के पश्चात् शिशु का मस्तिष्क काफी तेज़ी से विकसित होता है और उसके शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक विकास में उल्लेखनीय भूमिका अदा करता है, इसलिये कई विशेषज्ञ प्रारंभिक बाल विकास (Early Childhood Development) की अवधारणा पर काफी ज़ोर देते हैं।
    • महत्त्व
      • युवा बच्चों को समग्र विकास का एक ठोस आधार प्रदान कर भविष्य में नए अवसरों का दोहन किया जा सकता है।
      • इससे गुणवत्तापूर्ण मानव संसाधन का विकास होता है।
      • इसके माध्यम से आम जन-जीवन के रहन-सहन के स्तर में बढ़ोतरी संभव है।
      • प्रारंभिक बाल विकास युवा अवस्था के लिये एक नींव के तौर पर कार्य करता है।

    चुनौती

    • बड़ी संख्या में भारतीय परिवार अपनी आर्थिक स्थिति के कारण बच्चों को पोषण और गुणवत्तापूर्ण देखभाल प्रदान करने में सक्षम नहीं होते हैं और प्रायः अल्पपोषण और कुपोषण जैसी समस्याएँ भी इसी वर्ग के बीच देखी जाती हैं।
    • गौरतलब है कि भारत में बच्चों के स्वास्थ्य देखभाल और उनके पोषण पर ध्यान देने के लिये कई नीतियाँ और योजनाएँ यथा- एकीकृत बाल विकास योजना (ICDS), राष्ट्रीय बाल कार्य योजना 2005 और राष्ट्रीय बाल देखभाल और शिक्षा नीति, 2013 आदि बनाई गई हैं। हालाँकि इन सब के बावजूद बच्चों के पोषण की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं आ सका है।

    सुझाव

    • बच्चों के माता-पिता को स्वास्थ्य देखभाल, अनुकूल आहार और बच्चों को घर पर शुरुआती शिक्षा देने के लिये प्रशिक्षित किया जा सकता है।
    • प्रारंभिक बाल विकास (ECD) के संबंध में केवल योजनाओं के निर्माण से ही सफलता प्राप्त नही की जा सकती है, बल्कि योजनाओं के कार्यान्वयन पर भी ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
      • बच्चों के लिये नीतिगत और कानूनी ढाँचे को मज़बूत करने की आवश्यकता है, साथ ही इससे अंतः परस्पर संबद्ध (Interconnected) क्षेत्रों जैसे- मातृत्त्व और बाल स्वास्थ्य आदि में निवेश बढाने की आवश्यकता है।
    • गरीबी और संसाधनों की कमी से जूझ रहे परिवारों को इस संबंध में सक्षम बनाना केंद्र और राज्य सरकार का दायित्त्व है और उन्हें इस महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी को समझते हुए आवश्यक नीति का निर्माण करना चाहिये।

    स्रोत: द हिंदू

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