अंतर्राष्ट्रीय संबंध
केरल में इन्टरनेट की सुविधा का अधिकार
- 06 Apr 2017
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समाचारों में क्यों ?
भारत के सबसे शिक्षित राज्य केरल ने हाल ही में सभी नागरिकों के लिये भोजन, शिक्षा और पानी के जैसे ही इंटरनेट एक्सेस को मौलिक मानवाधिकार घोषित कर दिया है। गौरतलब है कि राज्य ने अपने बजट में एक योजना पेश की है जिसका लक्ष्य है कि बेहद सस्ते दामों में सभी को इंटरनेट कनेक्शन देने के साथ 20 लाख गरीब परिवारों को मुफ्त में इसकी सुविधा दी जाए और इसके लिये केरल सरकार ‘केरल इंफ्रास्टक्चर फंड’ से 1000 करोड़ का लोन ले रही है।
इन्टरनेट कि सुविधा का अधिकार एक उत्तम पहल क्यों ?
- आज के तेजी से बढ़ रहे डिजिटल दौर में जब सरकार कैशलेस इकॉनमी की तरफ बढ़ने के अभियान के साथ ही ई-गवर्नेंस और डिजिटाइजेशन को बढ़ावा दे रही है तो ऐसे में इंटरनेट तक सबकी पहुँच ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है।
- विदित हो कि संयुक्त राष्ट्र ने भी यह कहा है कि विश्व के सभी देशों को इंटरनेट की सुविधा को बुनियादी मानवाधिकार घोषित कर देना चाहिये, उल्लेखनीय है कि इसे भारतीय संविधान में घोषित मूल अधिकार के तहत नहीं कानूनी अधिकारों के अंतर्गत शामिल किया जाना चाहिये।
- विश्व के कई देश पहले ही इस व्यवस्था को अपना चुके हैं। गौरतलब है कि साल 2010 में स्वीडन दुनिया का पहला ऐसा देश बना था जहाँ हाई स्पीड इंटरनेट को प्राथमिक कानूनी अधिकार के तौर पर शामिल किया गया था।
- इसके बाद कनाडा ने भी पिछले साल स्वीडन की तर्ज पर फैसला किया कि हर नागरिक को कम से कम 50 एमबीपीएस की स्पीड से इंटरनेट की सुविधा मिलनी चाहिये।
निष्कर्ष
सभी व्यक्तियों की पहुँच इन्टरनेट तक सुनिश्चित करने का केरल सरकार का यह प्रयास निश्चित ही सराहनीय है, हालाँकि पुरे भारत में इसको लागू करने से पहले एक व्यापक कार्य-योजना तैयार करनी होगी, क्योंकि भारत में इन्टरनेट की ज़रूरत हर जगह एक समान है लेकिन जहाँ तक इन्टरनेट तक लोगों की पहुँच का सवाल है, अलग-अलग क्षेत्रों में परिस्थितियाँ अलग-अलग हैं। महानगरों में जहाँ इन्टरनेट तुलनात्मक तौर पर सस्ता और आसानी से उपलब्ध है वहीं, छोटे शहरों में परिस्थियाँ ठीक उलट हैं। गाँवों की बात करें तो इन्टरनेट अधिकांश लोगों की पहुँच से दूर है।