केंदू पत्ता और ग्राम सभा का अधिकार | 25 Jul 2017
संदर्भ
अखिल भारतीय किसान मज़दूर सभा ने ओडिशा सरकार से केंदू पत्ते का प्रत्यक्ष व्यापार करने का अधिकार देने की माँग की है। उनका कहना है कि सरकार की अनुमति मिल जाने से इन पत्तों को इकट्ठा करने वाले ग्रामवासियों की आय में वृद्धि होगी।
प्रमुख बिंदु
- राज्य के अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा (एआईकेएमएस) ने ओडिशा सरकार को महाराष्ट्र में केंदू पत्तों से संबंधित प्रचलित नियम से सीखने की हिदायत दी है तथा इसे विनियमित करते हुए ग्राम सभा के माध्यम से बेचने की अनुमति प्रदान करने की माँग की है।
- गौरतलब है कि महाराष्ट्र की ग्राम सभाओं को सरकारी विभागों के समर्थन से स्वयं केंदू के पत्तों का प्रबंधन करने व बेचने की स्वतंत्रता है या वे वन विभाग को ऐसा करने के लिये कह सकती हैं।
- विदर्भ क्षेत्र में 100 से अधिक ग्रामसभाएँ इस कार्य को महाराष्ट्र आदिवासी विकास निगम की वित्तीय सहायता से कर रही हैं। इससे केंदू पत्तों को इकट्ठा कर बेचने वालों की आय में वृद्धि हुई है।
- वर्तमान में, ओडिशा सरकार की एजेंसियाँ केंदू पत्तियों के एक बंडल के लिये को 80 पैसे दे रही हैं, लेकिन अगर ग्रामसभा द्वारा इसे बेचा जाता हैं, तो उन्हें 2.50 रुपए प्रति बंडल मिल सकता है।
- एआईकेएमएस के अनुसार वन अधिकार अधिनियम, 2006 की धारा 3 (1) (सी) के तहत वनवासियों को केंदू पत्तों जैसे छोटे वन उत्पादों को इकट्ठा करने, उपयोग करने और बेचने का अधिकार है, जिसके सहयोग और विकास के लिये गैर-लाभकारी क्षेत्रीय केंद्र द्वारा सुविधा प्रदान की जा सकती है।
- ओडिशा में अधिकृत सरकारी एजेंसियों के पास केंदू के पत्ते के कारोबार का एकाधिकार है, क्योंकि यह एक राष्ट्रीयकृत वन उत्पाद है। एआईकेएमएस के नेताओं ने आरोप लगाया कि ओडिशा वन विभाग केंदू पत्तों के संग्रह और व्यापार पर अपना एकाधिकार त्यागने को इच्छुक था, क्योंकि इसका वार्षिक टर्नओवर 400 करोड़ रु. से अधिक है।
केंदू पत्ते का उपयोग
- केंदू पत्ते का सर्वाधिक उपयोग बीड़ी बनाने में किया जाता है।
- मध्य प्रदेश देश का सर्वाधिक केंदू पत्ता उत्पादक राज्य है।
- केंदू का वृक्ष इबोनस परिवार का सदस्य है। यह शुष्क पर्णपाती वनों की एक प्रजाति है।
वन अधिकार अधिनियम, 2006
- वन अधिकार अधिनियम, 2006 की धारा 3 (1) (c) के तहत वन क्षेत्रों में रहने वाले परम्परागत वनवासियों को लघु वन उत्पादों के दोहन का अधिकार है।
- यह अधिनियम परंपरागत वन निवासियों के अधिकारों को मान्यता देता है तथा इसके साथ-साथ जैव विविधता का संरक्षण और पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने और वन- वासियों के आजीविका और खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करता है।