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सामाजिक न्याय

केंदू पत्ता

  • 30 Jul 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये

केंदू (तेंदू) पत्ते, मलेरिया, बाल श्रम

मेन्स के लिये

केंदू (तेंदू) पत्ते का संक्षिप्त परिचय एवं इसके उपयोग,  केंदू पत्ते का महत्त्व एवं चिंताएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ओडिशा के कालाहांडी ज़िले में कई बच्चों को केंदू (तेंदू) पत्ते का संग्रहण करते हुए पाया गया।

Kendu-Leaf

प्रमुख बिंदु

परिचय:

  • केंदू (Kendu) पत्ते को ओडिशा का हरा सोना कहा जाता है। यह बांँस और साल बीज की तरह एक राष्ट्रीयकृत उत्पाद है। यह ओडिशा में सबसे महत्त्वपूर्ण गैर-लकड़ी वनोपज में से एक है।
    • तेंदू (केंदू) पत्ते का वानस्पतिक नाम डाइऑस्पिरॉस मेलानॉक्सिलॉन (Diospyros melanoxylon) है।
  • स्थानीय लोगों के बीच इसकी पत्तियों का उपयोग बीड़ी निर्माण उद्योग के लिये प्रचलित है।

केंदू पत्ते का उत्पादन करने वाले राज्य:

  • भारत में केंदू पत्तियों से बीड़ी का उत्पादन करने वाले राज्यों में मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, झारखंड, गुजरात तथा महाराष्ट्र शामिल हैं।
    • मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बाद ओडिशा केंदू के पत्ते का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।

विशिष्टता:

  • ओडिशा के तेंदू (केंदू) पत्ते की विशिष्टता संसाधित/प्रसंस्कृत रूप में है, जबकि भारत के शेष राज्य इसके फलों के प्रसंस्कृत रूप का उपयोग करते हैं।
    • प्रसंस्कृत रूप में केंदू के पत्तों को विभिन्न गुणों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है जो कि पत्तों का  रंग, बनावट, आकार और ढाँचागत स्थिति के अनुसार ग्रेड I से ग्रेड IV तक होते हैं तथा पैकेट को पाँच किलोग्राम के बंडल के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

महत्त्व:

  • औषधि के रूप में:
    • पारंपरिक चिकित्सक केंदू के फलों का उपयोग मलेरिया, दस्त और पेचिश के उपचार के लिये करते हैं।
    • रोगाणुरोधी गुणों के कारण इन पत्तियों का उपयोग कट और खरोंच लगने पर भी किया जाता है।
  • आजीविका का स्रोत:
    • आदिवासी गाँवों के लिये तेंदू (केंदू) के पत्ते आजीविका के प्रमुख स्रोत हैं, क्योंकि यह राज्य की सबसे प्रमुख लघु वन उपज है।
      • लघु वन उत्पादों में पौधे के सभी गैर-लकड़ी वन उत्पाद और बाँस, बेंत, चारा, पत्ते, गोंद, मोम, डाई, रेजिन और कई प्रकार के भोजन व नट, जंगली फल, शहद, लाख, टसर आदि शामिल हैं।
      • वे इससे अपने भोजन, फलों, दवाओं और अन्य उपभोग की वस्तुओं का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त करते हैं और बिक्री के माध्यम से नकद आय भी प्राप्त करते हैं।
  • ओडिशा का वन राजस्व में प्रमुख हिस्सा:
    • वर्ष 1990-2000 तक ओडिशा के कुल 868 मिलियन रुपए के वन राजस्व में से तेंदू (केंदू) का भाग अकेले 635 मिलियन रुपए है।
    • ओडिशा में बीड़ी पत्ती का वार्षिक उत्पादन लगभग 4.5-5 लाख प्रति क्विंटल है, जो कि देश के वार्षिक उत्पादन का लगभग 20% है।

चिंता:

  • कम भत्ता:
    • केंदू पत्ता संग्रह केंद्रों पर काम करने वाले बच्चे अक्सर हर वर्ष अप्रैल-मई के दौरान आते हैं। उनका ज़्यादातर काम इन पत्तों को तोड़ना, सुखाना, इकट्ठा करना आदि है लेकिन उन्हें इस काम के लिये बेहद कम मज़दूरी का भुगतान किया जाता है।
  • बच्चों का शोषण:
    • 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को श्रमिक के रूप में कम पर नहीं लगाया जा सकता है तथा 14-18 वर्ष के बीच के बच्चों को केवल गैर-खतरनाक क्षेत्रों में ही लगाया जा सकता है।
    • ऐसे में उनका शोषण किया जाता है।

आगे की राह

  • इस क्षेत्र को बाल श्रम से मुक्त करने के लिये और कड़े कानूनों की ज़रूरत है। साथ ही माता-पिता तथा बच्चों को बाल अधिकारों के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है।
  • बाल संरक्षण प्रणाली के अलावा चाइल्ड लाइन, ज़िला बाल संरक्षण इकाई, बाल कल्याण समिति आदि को बच्चों के अधिकार सुनिश्चित करने में अधिक सतर्क और सक्रिय रहना होगा।
  • चूँकि केंदू पत्ता ग्रामीण समाज की वन अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, इसलिये लघु वन उत्पादों का विनियमन आवश्यक है ताकि आदिवासी और ग्रामीण लोग MFP पर अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकें।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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