केन-बेतवा संपर्क को अभी और इंतजार करना पड़ सकता है! | 23 May 2017
सन्दर्भ
ज्ञात हो कि वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तीन घटकों में से दो, ‘राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड’ तथा ‘विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति’ ने केन-बेतवा लिंक परियोजना को 2016 में हरी झंडी दे दी थी| इसी विषय से सम्बंधित एक रिपोर्ट पिछले सप्ताह वन सलाहकार समिति की बैठक में पेश की गई| अब इस परियोजना को सांविधिक रूप से हरी झंडी मिल सकती है| तथापि, यदि मंज़ूरी मिल भी गई, तो भी यह कानूनी जाँच से बच नहीं पाएगी|
प्रमुख घटनाक्रम
- 23 अगस्त, 2016 को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड ने केन-बेतवा लिंक परियोजना को इस आश्वासन के बाद मंज़ूरी दी थी कि सभी विद्युत उत्पादन संयंत्र, पन्ना बाघ आरक्षित क्षेत्र के बाहर स्थापित किये जाएंगे तथा बाघ आरक्षित क्षेत्र पर इस कार्य का प्रभाव कम से कम पड़ेगा|
- 30 दिसंबर, 2016 को केन-बेतवा लिंक परियोजना को पर्यावरणीय मंज़ूरी देते हुए, नदी घाटी एवं पनबिजली परियोजना पर विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड मंज़ूरी में शामिल सभी शर्तों को समिति के पत्र में शामिल करे|
- 30 मार्च, 2017 को वन सलाहकार समिति ने सिफारिश की कि 78 मेगावाट क्षमता वाले विद्युत गृह का निर्माण पन्ना वन क्षेत्र में नहीं किया जाएगा क्योंकि यह पन्ना के बाघों के आवास में स्थाई तथा अपरिवर्तनीय व्यवधान उत्पन्न करेगा|
समस्या कहाँ है?
- चूँकि केन-बेतवा लिंक परियोजना की वर्तमान रूपरेखा में बाघ क्षेत्र में पावर स्टेशन आता है, इसलिये एक नई रूपरेखा बनाने की आवश्यकता है, और साथ ही इसके पर्यावरण पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों के आकलन की भी आवश्यकता है| और, अगर इस प्रक्रिया के पूरा होने से पहले कोई मंज़ूरी मिलती है तो वह कानूनी रूप से तर्कसंगत नहीं हो सकती है|
- गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय की केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति भी केन-बेतवा लिंक परियोजना की निगरानी कर रही है|
- 30 मार्च, 2017 को वन सलाहकार समिति ने कुछ सुझाव दिये थे, जो कि एक नई परियोजना रिपोर्ट की मांग करते हैं तथा इस परियोजना की व्यवहार्यता का उत्तरवर्ती मूल्यांकन चाहते हैं|
वन सलाहकार समिति के सिफारिशें
- इस परियोजना के तहत बनाने वाली नहर को पुन:संगठित किया जाए ताकि वन भूमि के दुरुपयोग को कम किया जा सके|
- लागत-लाभ अनुपात तय करते समय इस अनोखे नदी पारिस्थितकी के मोड़ के कारण होने वाले पारिस्थिक तंत्र के नुकसान पर भी ध्यान दिया जाए|
- समिति ने किसी विख्यात संस्था द्वारा एक विस्तृत एवं नए लागत-लाभ विश्वलेषण, भविष्य में कार्य किये जा सकने तथा परिवर्तन किये जा सकने की भी सिफारिश की है|
- इसने पूरे परियोजना क्षेत्र में, बड़ी हुई सेम्पलिंग इन्टेसिटी के साथ नए सिरे से गणना करने की सिफारिश की है|
- गौरतलब है कि यदि ये सिफारिशें इस परियोजना की मंज़ूरी के रास्ते में आती हैं तो पूरी परियोजना पर ही ब्रेक लग सकता है|
इस परियोजना का औचित्य क्या है?
- इस परियोजना को बुंदेलखंड के सूखे के समाधान के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, लेकिन वास्तव में केन बेसिन के अतिरिक्त पानी को, पानी की कमी वाले बेतवा बेसिन में भी ले जाना है|
- इस परियोजना से लाभान्वित होने वाले ज़िले हैं- रायसेन, विदिशा, तिकमग, छतरपुर, महोबा, झाँसी एवं पन्ना|
केन-बेतवा लिंक से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वनभूमि की आवश्कता - 6017हेक्टेयर
- पन्ना राष्ट्रीय पार्क में - 5579 हेक्टेयर
- विस्थापित परिवार - 1913 ( अनुसूचित जनजाति 648)
- पेड़ जो गिराए जाने हैं - 18-23 लाख
- परियोजना की लागत - 9393 करोड़ (अब इसकी लागत 20000 करोड़ रुपये से अधिक अनुमानित)
- सिंचाई से लाभ - 6|35 लाख हेक्टेयर
क्या केन नदी में इतना अधिशेष पानी बहता है?
- इस बारे में 8-सदस्यीय समित की रिपोर्ट में कहा गया है कि केन बेसिन में इतना अधिशेष पानी नहीं रहता कि इतनी ऊँचाई का बांध बनाया जा सके एवं वन इलाके को साफ करने का कोई अर्थ नहीं है जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती|
- अंत में समिति का कहना है कि बांध की ऊँचाई का निर्णय करने से पहले प्रामाणिक डाटा इकट्ठा किये जाने एवं जल विज्ञान संबंधी विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है|
निष्कर्ष
- यहाँ यह समझने की आवश्यकता है कि केन और बेतवा, अंतर्राष्ट्रीय गंगा बेसिन का हिस्सा हैं| इसलिये इन अध्ययनों पर न तो चर्चा नहीं की जाती हाउ और न ही सीमापार जल प्रणाली तंत्र के आँकड़े ही लोक चर्चा के लिये उपलब्ध किये जाते है| लेकिन पन्ना में राष्ट्रीय सम्पति दाव पर लगी है, अत: केन नदी के पानी की स्थिति की क़ानूनन - अनिवार्य लोक जाँच की जानी चाहिये है|