कावेरी प्रबंधन योजना और कावेरी प्रबंधन प्राधिकरण | 21 May 2018
चर्चा में क्यों?
- 19 मई को सर्वोच्च न्यायालय ने कावेरी नदी के तट पर स्थित दक्षिण भारत के 4 राज्यों के बीच सुगम तरीके से जल बँटवारा सुनिश्चित करने के लिये कावेरी प्रबंधन योजना संबंधी केंद्र सरकार के मसौदे को मंज़ूरी दे दी।
- विदित हो कि 14 मई को केंद्र सरकार की ओर से जब केंद्रीय जल संसाधन सचिव ने यह मसौदा पीठ को सौंपा था, तब पीठ ने इसका अवलोकन कर मंज़ूरी देने की बात कही थी।
- इस योजना के बारे कर्नाटक और केरल सरकार ने कुछ सुझाव दिये थे, जिन्हें ठोस वज़ह के अभाव में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और डी.वाई. चंद्रचूड़ की 3 सदस्यीय खंडपीठ ने अस्वीकार कर दिया।
- इससे पहले 3 मई को सर्वोच्च न्यायालय ने कावेरी नदी जल बँटवारे के लिये कावेरी प्रबंधन योजना तैयार करने हेतु 16 फरवरी के आदेश का पालन न करने को लेकर केंद्र सरकार से नाराज़गी जताई थी।
न्यायालय का अंतिम फैसला
- पीठ ने 16 फरवरी के अपने निर्णय में कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण के 2007 के अवार्ड में संशोधन करने के साथ ही स्पष्ट किया था कि इसके लिये अब किसी भी आधार पर समय-सीमा नहीं बढ़ाई जाएगी।
- उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने 16 फरवरी के अपने फैसले में केंद्र सरकार से कहा था कि कर्नाटक से तमिलनाडु, केरल और पुद्दूचेरी को पानी देने के लिये कावेरी प्रबंधन बोर्ड का गठन करने के साथ कावेरी प्रबंधन योजना करे। योजना को अंतिम रूप मिल जाने के बाद कावेरी नदी बेसिन में सामान्य और कम वर्षा जैसी विभिन्न परिस्थितियों से निपटने का काम कावेरी प्रबंधन बोर्ड द्वारा किया जाएगा।
- पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत के 16 फरवरी के फैसले में संशोधित कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण के अवार्ड को कावेरी प्रबंधन योजना के तहत अंतिम निष्कर्ष तक पहुँचाना होगा।
कावेरी प्रबंधन प्राधिकरण की संरचना और कार्य
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संशोधित कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण के फैसले को लागू कराने के लिये कावेरी प्रबंधन प्राधिकरण एकमात्र निकाय होगा, जिसका मुख्यालय दिल्ली में होगा।
- इसकी सहायता के लिये बंगलूरू स्थित एक विनियमन समिति भी होगी। प्रशासनिक सलाह देने के अलावा केंद्र में इसमें कोई भूमिका नहीं होगी। अर्थात् यह एक द्वि-स्तरीय संरचना होगी, जिसमें न्यायालय के अंतिम निर्णय के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये एक शीर्ष निकाय होगा और एक विनियमन समिति होगी, जो क्षेत्र की स्थिति और जल प्रवाह की निगरानी करेगी।
- प्राधिकरण की शक्तियाँ और कार्य काफी व्यापक हैं, जिनमें कावेरी जल का विभाजन, विनियमन और नियंत्रण, जलाशयों के संचालन की निगरानी और जल निस्तारण का विनियमन आदि शामिल हैं।
- मसौदे के अनुसार इस प्राधिकरण का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होगा।
- हालाँकि इसमें यह प्रावधान भी किया गया है कि यदि प्राधिकरण महसूस करता है कि संबद्ध राज्यों में से कोई भी सहयोग नहीं कर रहा है तो यह केंद्र से सहायता लेगा और ऐसे में केंद्र का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होगा।
कुछ अंतर है
- कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण ने जिस प्रकार के कावेरी प्रबंधन बोर्ड के गठन की बात कही थी उसमें और कावेरी प्रबंधन योजना में प्रस्तावित प्राधिकरण के बीच कुछ अंतर है।
- न्यायाधिकरण ने इस प्राधिकरण के अध्यक्ष के लिये जल संसाधन प्रबंधन में कम-से-कम 20 वर्ष के अनुभव के साथ सिंचाई इंजीनियर होने की बात कही थी, जबकि योजना में यह प्रस्ताव किया गया है कि इसका अध्यक्ष जल संसाधन प्रबंधन में व्यापक अनुभव वाला वरिष्ठ प्रतिष्ठित इंजीनियर हो सकता है या केंद्र सरकार का कोई सचिव या अतिरिक्त सचिव।
- इसी प्रकार मसौदे में यह भी कहा गया है कि चार राज्यों के प्रतिनिधि न्यायाधिकरण द्वारा प्रस्तावित इंजीनियरों के बजाय प्रशासक भी हो सकते हैं।
- कर्नाटक और तमिलनाडु इस प्राधिकरण के प्रशासनिक खर्चों का 40-40% वहन करेंगे तथा केरल का 15% और पुद्दूचेरी का योगदान 5% होगा।
सर्वोच्च न्यायालय में दी गई थी चुनौती
कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण द्वारा 2007 में दिये गए फैसले के खिलाफ कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल द्वारा दायर याचिकाओं पर अंतिम फैसला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कर्नाटक की हिस्सेदारी में 14.75 टीएमसी फुट वृद्धि की थी, जिसमें से बंगलूरू को 4.75 टीएमसी फुट पानी दिया जाना है, जबकि कर्नाटक की राजधानी बंगलूरू मंड्या ज़िले में स्थित कावेरी नदी से 120 किलोमीटर दूर है। तमिलनाडु को मिलने वाले पानी को 192 टीएमसी फुट से घटाकर 177.25 टीएमसी फुट करते हुए पीठ ने कहा था कि कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण ने तमिलनाडु में नदी के बेसिन में उपलब्ध भू-जल पर ध्यान नहीं दिया था।
क्या है कावेरी विवाद?
- कावेरी नदी के जिस पानी को लेकर विवाद है उसका उद्गम स्थल कर्नाटक के कोडागु ज़िले में है। लगभग 750 किलोमीटर लंबी ये नदी कुशालनगर, मैसूर, श्रीरंगपत्तना, त्रिरुचिरापल्ली, तंजावुर और मइलादुथुरई शहरों से गुज़रती हुई तमिलनाडु में बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
- इसके बेसिन में कर्नाटक का 32 हज़ार वर्ग किलोमीटर और तमिलनाडु का 44 हज़ार वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र आता है और इन दोनों राज्यों के बीच सिंचाई के लिये पानी की ज़रूरत को लेकर दशकों से विवाद चलता आ रहा है।
न्यायाधिकरण ने ऐसे किया था जल बँटवारा
- 1892 में तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर रियासत के बीच जल बँटवारा समझौता इस विवाद को सुलझाने का सर्वप्रथम प्रयास माना जाता है।
- इसकी परिणति जून 1990 में तब हुई जब केंद्र सरकार ने कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया, जिसने 16 साल की सुनवाई के बाद 2007 में प्रतिवर्ष 419 अरब क्यूबिक फीट पानी तमिलनाडु को और 270 अरब क्यूबिक फीट पानी कर्नाटक को देने का फैसला दिया।
- केरल को 30 अरब क्यूबिक फीट और पुद्दूचेरी को 7 अरब क्यूबिक फीट पानी देने का फैसला दिया गया।
- कावेरी बेसिन में 740 अरब क्यूबिक फीट पानी मानते हुए न्यायाधिकरण ने यह फैसला दिया था।
- कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों ही न्यायाधिकरण के इस फैसले से खुश नहीं थे और उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में समीक्षा याचिका दायर की थी।
मुश्किल होगा सबको खुश रखना
कावेरी जल विवाद को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच इतनी कटुता व्याप्त हो चुकी है कि कोई भी फैसला दोनों पक्षों को संतुष्ट नहीं कर पाता। यह भी हो सकता है कि प्राधिकरण की प्रकृति और शक्तियों पर कर्नाटक और तमिलनाडु के अलग-अलग विचार हों। लेकिन यह महत्त्वपूर्ण है कि चारों राज्य इस तंत्र को स्वीकार करें तथा प्राधिकरण के पास पर्याप्त स्वायत्तता हो। कावेरी विवाद दशकों से जारी है और यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा यदि कठोर निर्णयों के माध्यम से प्राप्त अंतिम निर्णय के कार्यान्वयन की निगरानी स्वतंत्र प्राधिकारी द्वारा नहीं की जाती।