अनुच्छेद 35 ए -आखिर सच क्या है? | 14 Aug 2017
चर्चा में क्यों?
पिछले कुछ समय से जम्मू-कश्मीर राज्य एक गंभीर राजनीतिक तूफान से घिरा हुआ है। उल्लेखनीय है कि एक गैर-सरकारी संगठन के द्वारा अनुच्छेद 35 ए को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती मिलने के पश्चात् महाधिवक्ता द्वारा भी जम्मू-कश्मीर से संबद्ध अनुच्छेद 35 ए के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय को एक विस्तृत बहस करने का सुझाव देने के बाद से जम्मू-कश्मीर की सियासत में एक अजीब गहमागहमी का माहौल बना हुआ है।
अनुच्छेद 35 ए क्या है?
- भारतीय संविधान के परिशिष्ट 2 में निहित अनुच्छेद 35 ए जम्मू-कश्मीर विधानमंडल को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह राज्य के स्थाई निवासियों और उनके विशेष अधिकारों व विशेषाधिकारों को परिभाषित कर सकती है।
- इसे वर्ष 1954 में जम्मू - कश्मीर सरकार की सहमति के साथ राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के आदेश से संविधान में जोड़ा गया था।
जम्मू - कश्मीर के लिये इसका क्या महत्त्व है?
- वर्ष 1927 और 1932 की अधिसूचना के अनुसार, जम्मू कश्मीर की रियासतों के डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह द्वारा एक कानून बनाया गया, जिसमें राज्य के विषयों और उनके अधिकारों को परिभाषित किया गया।
- इस कानून के अंतर्गत राज्य के प्रवासियों को भी विनियमित किया गया|
- इसके पश्चात् जम्मू एवं कश्मीर राज्य के शासक हरि सिंह द्वारा अक्टूबर 1947 में अधिग्रहण संधि पर हस्ताक्षर करने के पश्चात् यह भारत का एक अभिन्न अंग बना गया|
- जम्मू - कश्मीर के भारत में विलय होने के पश्चात् वहाँ के एक लोकप्रिय नेता शेख अब्दुल्लाह ने डोगरा शासक से सत्ता छीन ली तथा वर्ष 1949 में उसने जम्मू एवं कश्मीर के नई दिल्ली के साथ राजनीतिक संबंध स्थापित करने की पहल की, जिसके परिणामस्वरूप संविधान में अनुच्छेद 370 को जोड़ा गया|
- उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू - कश्मीर राज्य को एक विशेष राज्य का दर्जा प्रदान किया गया है। साथ ही इस अनुच्छेद के माध्यम से तीन मुख्य क्षेत्रों- रक्षा, विदेश मामले एवं संचार को छोड़कर अन्य सभी मामलों में राज्य की विधायिका को निर्णय लेने की शक्ति भी प्रदान की गई है|
- शेख अब्दुल्लाह और पं. जवाहरलाल नेहरु के मध्य 1952 में हुए दिल्ली समझौते के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के संबंध में संविधान के अनेक प्रावधानों का विस्तार किया गया तथा अनुच्छेद 35 ए को इससे जोड़ा गया|
- जम्मू - कश्मीर के संविधान का निर्माण वर्ष 1956 में किया गया था| इसमें स्थाई निवासियों के लिये महाराजा हरि सिंह द्वारा दी गई परिभाषा को ही पुन: परिभाषित किया गया|
- इसके अनुसार, वर्ष 1911 से पूर्व राज्य में जन्मे या इससे कम से कम 10 वर्ष पूर्व यहाँ कानूनी रूप से अचल संपत्ति के मालिक सभी व्यक्तियों को राज्य के नागरिक के रूप में स्वीकार किया जाएगा।
- इसके अतिरिक्त वे सभी प्रवासी व्यक्ति जिन्होंने पाकिस्तान में प्रवास कर लिया है वे सभी राज्य का विषय होंगे। इतना ही नहीं इन प्रवासियों की आने वाली दो पीढ़ियों को भी राज्य के विषय के रूप में सूचीबद्ध किया जाएगा।
- स्थाई निवासी कानून के अंतर्गत अस्थायी निवासियों को राज्य में स्थाई बस्तियों का निर्माण करने, अचल सम्पत्ति खरीदने, सरकारी नौकरी करने और छात्रवृत्ति प्राप्त करने से प्रतिबंधित किया गया है|
- ऐसा ही प्रावधान जम्मू - कश्मीर की महिलाओं के विरुद्ध भी किया गया है| यदि कोई महिला अस्थायी निवासियों के साथ विवाह करती है तो इस कानून के तहत वह राज्य द्वारा प्रदत्त अधिकारों से वंचित हो जाती है।
- परन्तु, अक्टूबर 2002 में अपने एक निर्णय में जम्मू - कश्मीर उच्च न्यायालय द्वारा यह स्पष्ट किया गया कि जो महिलाएँ अस्थायी निवासियों से विवाह करती हैं उन्हें उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जाएगा| हालाँकि, ऐसी महिला के बच्चों को उक्त संपत्ति के संबंध में उत्तराधिकार प्राप्त नहीं होगा|
यह अनुच्छेद विवाद का मुद्दा क्यों बना हुआ है?
- गौरतलब है कि एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अनुच्छेद 35 ए को इस आधार पर चुनौती दी गई कि इसे अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में शामिल नहीं किया गया था| इसे बिना संसद के पटल पर रखे बिना ही शीघ्रता से लागू कर दिया गया।
- ऐसे ही एक अन्य मामले में दो कश्मीरी महिलाओं द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि अनुच्छेद 35 ए के चलते उनके बच्चों को नागरिकता के अधिकार से वंचित रखा गया है|
- राज्य के राजनीतिक दलों एवं अलगाववादियों में यह डर बना हुआ है कि यदि इस संबंध में कोई भी कार्यवाही की जाती है, तो इससे जम्मू - कश्मीर की स्वायत्ता पर प्रभाव पड़ सकता है।
- उनके अनुसार, इस प्रस्ताव में राज्य की उच्च स्वायत्ता निहित है| हालाँकि पिछले 70 वर्षों में कश्मीर घाटी की जनसंख्या में कोई बदलाव नहीं आया है। जबकि जम्मू और लद्दाख में हिन्दू बहुसंख्यकों को घाटी में संपत्ति खरीदने और रहने दोनों का अधिकार प्राप्त है|
अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु
- यह अनुच्छेद भारतीय नागरिकों के मूलभूत अधिकारों को सीमित करता है। इस अनुच्छेद के संबंध में गंभीरता से विचार करने पर ज्ञात होता है कि यह प्रावधान सैद्धांतिक रूप से कितना अप्रासंगिक है तथा यह कितनी मान्यताओं का उल्लंघन करता है।
- अनुच्छेद 35 ए नागरिकों के मौलिक अधिकारों को नगण्य तो करता ही है साथ ही यह नैसर्गिक अधिकारों का भी विरोध करता है। इसको लागू करने की पद्धति भी अलोकतांत्रिक है।
- जैसा कि हम सभी जानते हैं कि विधि के शासन का प्रथम सिद्धांत है कि विधि के समक्ष देश का प्रत्येक व्यक्ति समान है और प्रत्येक व्यक्ति को विधि का समान संरक्षण प्राप्त होना चाहिये।
- इसका अर्थ यह है कि समाज में किसी भी व्यक्ति को न तो कोई विशेषाधिकार प्राप्त होगा और न ही किसी व्यक्ति को उसके अभाव के कारण निम्नतर समझा जायेगा।
- वस्तुतः यह व्यक्ति का नैसर्गिक अधिकार भी है कि समान परिस्थितियों में प्रत्येक व्यक्ति के साथ समान व्यवहार किया जाए। इसकी रक्षा के लिये संविधान लिखित आश्वासन (अनुच्छेद 14) भी प्रदान करता है।
- लेकिन अनुच्छेद 35ए भारत में ही दोहरी विधिक-व्यवस्था का निर्माण करता है। यह अनुच्छेद मौलिक अधिकारों को सीमित करता है और जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को विशेष अधिकार प्रदान करता है जो विधि के समक्ष समानता के सिद्धांत का खुला उल्लंघन है।
- दूसरा, अनुच्छेद 35 ए के संविधान में समाविष्टि की प्रक्रिया ही पूर्णतः असंवैधानिक है। संविधान में एक भी शब्द जोड़ने या घटाने की शक्ति जिसे संविधान संशोधन कहा जाता है, केवल भारतीय संसद को प्राप्त है। परंतु इस संबंध में ऐसा कुछ नहीं हुआ।
- इस अनुच्छेद के लिए संसद में कोई बहस नहीं हुई। कोई मत विभाजन नहीं हुआ। स्पष्ट रूप से यह संपूर्ण प्रक्रिया ही अलोकतांत्रिक है।
तीसरा, यह अनुच्छेद संविधान की मूलभूत संरचना के विरोध में है।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केशवानंद भारती वाद में यह निर्णय दिया गया है कि भारतीय संसद को यह शक्ति प्राप्त है कि वह विधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है, लेकिन वह संविधान की मूलभूत संरचना में परिवर्तन नहीं कर सकती है।
- चौथा, यह सच को छुपाये रखने की साजिश भी प्रतीत होती है। सबसे आश्चार्य की बात तो यह है कि अनुच्छेद 35 ए को मौलिक अधिकारों के प्रावधान वाले हिस्से में भी शामिल नहीं किया गया है।
- इसे संविधान के परिशिष्ट दो में शामिल किया गया है। अधिकतर स्रोतों में इस अनुच्छेद का कोई उल्लेख ही नहीं किया गया है। यह सच को छुपाये रखने की साजिश भी प्रतीत होती है क्योंकि यदि 2002 में अनुच्छेद 21 में संशोधन करके 21 ए जोड़ा जा सकता है, तो 35 ए को अनुच्छेद 35 के बाद क्यों नहीं रखा जा सकता?
- ऐसे बहुत से सवाल है जिनका जवाब न केवल वर्षों से चली आ रही इस समस्या का समाधान कर सकता है बल्कि घाटी में शांति बहाल करने का एक बेहतर विकल्प भी प्रदान कर सकता है।