कर्नाटक लौह अयस्क खनन | 02 Sep 2022
प्रिलिम्स के लिये:लौह अयस्क उद्योग, कर्नाटक में लौह अयस्क, ई-नीलामी। मेन्स के लिये:लौह उद्योग का महत्त्व, लौह अयस्क की नीलामी प्रक्रिया। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक में बेल्लारी, चित्रदुर्ग और तुमकुर ज़िलों के लिये लौह अयस्क खनन की "सीमा" को यह कहते हुए बढ़ा दिया कि पारिस्थितिकी और पर्यावरण का संरक्षण आर्थिक विकास की भावना के साथ-साथ होना चाहिये।
- कर्नाटक में लौह अयस्क के उत्पादन और बिक्री पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाने के दस वर्ष बाद न्यायालय ने अपने ही आदेशों में ढील दी है।
कर्नाटक लौह अयस्क खनन प्रतिबंध:
- पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2010 में सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध खनन के लिये वर्ष 2009 में केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) की जाँच शुरू होने के बाद बेल्लारी में ओबुलापुरम खनन कंपनी (OMC) को प्रतिबंधित कर दिया।
- अवैध खनन के परिणामस्वरूप सार्वजनिक संपत्ति की लूट हुई, राजकोष को भारी नुकसान हुआ, वन भूमि पर कब्जा कर लिया, पर्यावरण को भारी क्षति हुई और स्थानीय आबादी के बीच बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य का मुद्दा उठा।
- वर्ष 2008 और वर्ष 2011 की दो लोकायुक्त रिपोर्टों ने अवैध खनन घोटाले में शामिल तीन मुख्यमंत्रियों सहित 700 से अधिक सरकारी अधिकारियों का खुलासा किया।
- वर्ष 2010 में सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध खनन के लिये वर्ष 2009 में केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) की जाँच शुरू होने के बाद बेल्लारी में ओबुलापुरम खनन कंपनी (OMC) को प्रतिबंधित कर दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय के आदेश:
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) की रिपोर्ट के पश्चात् खनन बड़े पैमाने पर हो रहे उल्लंघन की ओर ध्यान दिया गया तथा सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2011 में बेल्लारी में खनन कार्यों को रोकने हेतु एक आदेश जारी किया।
- इसके अतिरिक्त, सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक से लौह अयस्क के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसका उद्देश्य पर्यावरणीय क्षरण को रोकना और अंतर-पीढ़ीगत इक्विटी की अवधारणा के हिस्से के रूप में भावी पीढ़ियों के लिये संरक्षित करना था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने A और B श्रेणी की खानों के लिये अधिकतम अनुमेय वार्षिक उत्पादन सीमा 35 MMT भी तय की।
- इसने भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRE) को अवैध खनन से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को कम करने के लिये एक सुधार और पुनर्वास (R&R) योजना तैयार करने का निर्देश दिया।
- वर्ष 2012 मेंं सर्वोच्च न्यायालयने 18 "श्रेणी A" खानों का परिचालन फिर से शुरू करने की अनुमति दी।
- खानों को उनके द्वारा की गई अवैधताओं की सीमा के आधार पर वर्गीकृत किया गया था:
- A श्रेणी की खदानें: ये "पट्टे हैं जिनमें कोई अवैधता/सीमांत अवैधता नहीं पाई गई है"
- अधिक गंभीर उल्लंघन वाली खदानें उनके द्वारा अवैधता के आधार पर B और C श्रेणियों में आती हैं।
- एक बार जब खदानों को फिर से संचालित करने की अनुमति मिली तो अयस्क को नीलामी के माध्यम से आवंटित किया गया।
- खानों को उनके द्वारा की गई अवैधताओं की सीमा के आधार पर वर्गीकृत किया गया था:
- आदेश का निहितार्थ:
- खानों के बंद होने से स्टील मिलों को कच्चे माल की कमी का सामना करना पड़ा जिससे उन्हें भारत के बाहर से आयात करने के लिये मज़बूर होना पड़ा परिणाम स्वरुप वैश्विक लौह अयस्क दिग्गजों के लिये देश व्यापार के लिये खोल दिया गया।
- उत्पादन, ई-नीलामी और कीमतों पर प्रतिबंधों ने कर्नाटक में लाखों खनन आश्रितों को भी प्रभावित किया था जिससे उनकी आजीविका अनिश्चित हो गई थी।
इस मुद्दे से सम्बंधित हाल के घटनाक्रम क्या रहे हैं
- खनन फर्मों की अपील:
- मई 2022 में खनन फर्मों ने सर्वोच्च न्यायालय से बेल्लारी, तुमकुर और चित्रदुर्ग ज़िलों में खनन पट्टेदारों के लिये लौह अयस्क के निर्यात या बिक्री में ई-नीलामी मानदंडों को समाप्त करने की अपील की है।
- इन्होंने दावा किया कि स्टॉक नहीं बिकने के कारण इन्हें क्लोजर का सामना करना पड़ रहा है।
- कर्नाटक सरकार का पक्ष:
- कर्नाटक सरकार सीलिंग सीमा को पूरी तरह से हटाने के पक्ष में है।
- मूल याचिकाकर्त्ता का पक्ष:
- मूल याचिकाकर्त्ता ने इस आधार पर किसी भी निर्यात का विरोध किया कि खनिज राष्ट्रीय संपत्ति हैं जिन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है और केवल तैयार स्टील का निर्यात किया जाना चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायालय का आदेश:
- सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य में पहले से ही उत्खनित हो चुके लौह अयस्क के निर्यात को ई-नीलामी के अलावा अन्य तरीकों से फिर से शुरू करने की अनुमति दी है और इसके साथ ही निम्नलिखित खदानों के लिये खनन की सीमा को भी बड़ा दिया है:
- बेल्लारी: 28 MMT से 35 MMT
- चित्रदुर्ग और तुमकुर: 7 MMT से 15 MMT
- न्यायालय ने फैसला सुनाया कि देश के बाकी हिस्सों की खानों के सापेक्ष इन तीन ज़िलों में स्थित खानों के लिये समान प्रतिस्पर्धा बनाए रखना आवश्यक है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य में पहले से ही उत्खनित हो चुके लौह अयस्क के निर्यात को ई-नीलामी के अलावा अन्य तरीकों से फिर से शुरू करने की अनुमति दी है और इसके साथ ही निम्नलिखित खदानों के लिये खनन की सीमा को भी बड़ा दिया है:
लौह अयस्क खनन में ई-नीलामी:
- परिचय:
- ई-नीलामी विक्रेताओं (नीलामीकर्त्ताओं) और बोलीदाताओं (व्यापार से व्यावसायिक परिदृश्यों में आपूर्तिकर्त्ता) के बीच एक लेनदेन है जो इलेक्ट्रॉनिक बाज़ार के माध्यम में होता है।
- प्रक्रिया:
- प्रत्येक बोली के पूरा होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय निगरानी समिति, दस्तावेज़ प्रकाशित करती है जिसमें लौह अयस्क की गुणवत्ता, जिस खदान से संबंधित है, उसके लिये बोली लगाने वालों की संख्या और अंतिम लेने वालों का विवरण सूचीबद्ध होता है।
- एक बार पंजीकृत होने के बाद खरीदार आगामी नीलामी देख सकता है जिस पर वे बोली लगा सकते हैं।
- प्रत्येक विक्रेता उस अयस्क की गुणवत्ता को निर्दिष्ट करता है जो उसके प्रकार और उस न्यूनतम मूल्य के अंतर्गत होगा जिस पर बोली शुरू होनी है।
- विक्रेता वे हैं जिनके पास कानूनी लौह अयस्क खदानें हैं और खरीदार आमतौर पर स्टील निर्माता हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। प्रश्न : वर्तमान में लौह एवं इस्पात उद्योगों की कच्चे माल के स्रोत से दूर स्थिति का उदाहरणों सहित कारण बताइये।(मुख्य परीक्षा, 2020) |