कर्नाटक का अंधविश्वास विरोधी अधिनियम | 30 Jan 2020
प्रीलिम्स के लिये:कर्नाटक का अंधविश्वास विरोधी अधिनियम मेन्स के लिये:भारत में अंधविश्वास संबंधी कुप्रथाएँ |
चर्चा में क्यों?
- कर्नाटक सरकार ने 4 जनवरी, 2020 को औपचारिक रूप से ‘अमानवीय प्रथाओं तथा काला जादू की रोकथाम और उन्मूलन अधिनियम, 2017, (Karnataka Prevention and Eradication of Inhuman Evil Practices and Black Magic Act, 2017) को अधिसूचित किया।
मुख्य बिंदु:
- यह विवादास्पद अंधविश्वास विरोधी अधिनियम वर्ष 2017 में पारित किया गया था इसे 6 दिसंबर, 2017 को राज्यपाल की अनुमति प्राप्त हुई तथा वर्तमान सरकार द्वारा 4 जनवरी, 2020 को औपचारिक रूप से अधिसूचित किया गया।
- इस अधिनियम को राज्य के समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित किया जा रहा है।
अधिनियम की पृष्ठभूमि:
- इस अधिनियम को वर्ष 2013 में ‘कर्नाटक अंधविश्वास विरोधी विधेयक, 2013’ (Karnataka Anti Superstition Bill, 2013) के रूप में लाया गया था।
- नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (National Law School of India University- NLSIU) के एक विशेषज्ञ पैनल ने सामाजिक बहिष्कार और समावेशी नीति पर अध्ययन करते हुए वर्ष 2013 में पहली बार इस कानून का मसौदा विधेयक पेश किया जिसमें एक दर्ज़न से अधिक अंधविश्वासों को रेखांकित किया गया।
- हालाँकि मसौदे के सार्वजनिक होने के बाद कई विपक्षी दलों ने इसका धार्मिक आधार पर विरोध किया।
- धार्मिक नेताओं और राजनीतिक दलों द्वारा विरोध किये गए शुरूआती मसौदे में निम्नलिखित प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाए गए थे-
- पुजारियों को पालकी में ले जाना।
- धर्मगुरुओं की चरण-वंदना करना।
- मदे स्नान को रोकना।
- वास्तु, ज्योतिष और हस्तरेखा विज्ञान पर प्रतिबंध।
मदे स्नान
(Made Snana):
यह दक्षिण कन्नड़ क्षेत्र में प्रचलित एक परंपरा है जहाँ श्रद्धालु अपनी मनौतियों को पूरा करने के लिये उच्च जातियों द्वारा खाए गए भोजन के अवशेषों पर लोटते हुए स्नान करते हैं।
- वर्ष 2014 और 2016 में राज्य सरकार द्वारा लाए गए विधेयक के मसौदों को भी विरोध का सामना करना पड़ा।
वर्तमान अधिनियम:
- अंततः वर्ष 2017 में राजनीतिक तौर पर सर्वसम्मति वाला एक विधेयक तैयार किया गया।
- इस अधिनियम में धार्मिक स्थानों पर वास्तु, ज्योतिष, प्रदक्षिणा या पवित्र स्थानों की परिक्रमा संबंधी कार्यों को बाहर रखा गया है।
- ‘मदे स्नान’ की प्रक्रिया को इस अधिनियम के तहत स्वैच्छिक कर दिया है तथा बचे हुए भोजन को इस प्रक्रिया में शामिल नहीं करने के लिये इसे संशोधित किया गया है।
- वर्ष 2017 के इस अधिनियम के तहत कुल 16 प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाया गया है, जिनमें से कुछ प्रमुख प्रथाएँ निम्नलिखित हैं-
- महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान पूजा घरों और घरों में उनकी आवाजाही पर प्रतिबंध लगाना।
- लोगों को आग पर चलने के लिये मजबूर करना।
- लोगों को दुष्ट घोषित करके उनकी पिटाई करना।
सज़ा का प्रावधान:
- यह अधिनियम न्यूनतम एक वर्ष से अधिकतम सात वर्ष तक के कारावास तथा न्यूनतम पाँच हजार से अधिकतम पचास हजार रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान करता है।
- इस कानून को राज्य पुलिस द्वारा पुलिस स्टेशनों में सतर्कता अधिकारियों की नियुक्ति के साथ लागू किया जाना है।
क्यों महत्त्वपूर्ण है यह अधिनियम?
- कुछ लोगों का मत हो सकता है कि प्रस्तावित कानून संविधान के अनुच्छेद 25 (प्रत्येक व्यक्ति को अन्तःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप में मानने, आचरण करने तथा प्रचार करने का अधिकार) का उल्लंघन करता है। हालाँकि इसे एक उचित प्रतिबंध के रूप में देखा जाना चाहिये, क्योंकि इससे सार्वजनिक हित सुनिश्चित होता है।
- कर्नाटक में इस कानून को मज़बूती से लागू करने के लिये राज्य सरकार गंभीर है। कुप्रथाओं के उन्मूलन में कानूनी प्रावधानों की उपयोगिता अवश्य है, लेकिन समाज से अंधविश्वासों को जड़ से समाप्त करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं। इसके लिये हमें शिक्षा, तर्कसंगत सोच और वैज्ञानिक चिंतन को बढ़ावा देना होगा।
आगे की राह:
- अल्पावधिक सुधारों के लिये हमें ऐसे कानूनों की आवश्यकता है जो इन कुरीतियों का अंत करने में सहायक हों।
- कुप्रथाओं के दीर्घकालिक सुधार हेतु शिक्षा, तर्कसंगत सोच और वैज्ञानिक चिंतन को बढ़ावा देना होगा।
प्राचीनकाल से ही दुनिया भर में अंधविश्वास व्याप्त रहा है। अंधविश्वास एक तर्कहीन विश्वास है जिसका आधार अलौकिक प्रभावों की मनगढ़ंत व्याख्या है। इन अंधविश्वासों पर अधिकांश भारतीयों का अत्यधिक विश्वास है जो प्रायः आधारहीन होते हैं।