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कृषि

जूट उद्योग

  • 02 May 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जूट क्षेत्र, जूट उत्पादन के लिये जलवायु स्थिति। 

मेन्स के लिये:

भारत के जूट उद्योग की क्षमता और संबंधित चिंताएंँ।

चर्चा में क्यों? 

पश्चिम बंगाल में जारी संकट के कारण कई जूट मिलें बंद हो गई हैं 

प्रमुख बिंदु 

मुद्दा:

  • मिलों द्वारा खरीद की उच्च दर: 
    • मिलें कच्चे जूट को प्रसंस्करण के बाद बेचे जाने वाली कीमतों से अधिक मूल्य पर खरीद रही हैं।
    • मिलें अपना कच्चा माल सीधे किसानों से प्राप्त नहीं करती हैं, इसके निम्नलिखित कारण हैं:
      • मिलों और किसान के बीच अत्यधिक दूरी:
        • जूट की आवश्यक मात्रा प्राप्त करने के लिये मिलों को किसानों के पास जाना होगा क्योंकि एक भी किसान पूरी मिल की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु जूट का पर्याप्त उत्पादन नहीं करता है।  
      • खरीद की बोझिल प्रक्रिया: 
        • खरीद अब बिचौलियों या व्यापारियों के माध्यम से होती है।  
        • एक मानक प्रथा के रूप में बिचौलिये अपनी सेवाओं के लिये मिलों से शुल्क लेते हैं, जिसमें किसानों से जूट की खरीद, छंटनी, बिल तैयार करना और फिर गाँठों को मिल में लाना शामिल है।
  • जमाखोरी:
    • सरकार के पास किसानों से कच्चे जूट की खरीद के लिये एक निश्चित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) है, जो कि वित्तीय वर्ष 2022-23 हेतु 4,750 रुपए प्रति क्विंटल है।
    • हालांकि यह मिल तक 7,200 रुपए प्रति क्विंटल, अंतिम उत्पाद के लिये 6,500 प्रति क्विंटल की अधिकतम सीमा से 700 रुपए अधिक है।
  • चक्रवात का प्रभाव:
    • मई 2020 में अम्फान चक्रवात की घटना के बाद प्रमुख जूट उत्पादक राज्यों में बारिश के साथ स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक हो गई है। 
      • इन घटनाओं के कारण रकबों में कमी आई है, जिसकी वजह से पिछले वर्षों की तुलना में उत्पादन और उपज में भी कमी आई। 
    • इसके कारण वर्ष 2020-21 में जूट फाइबर की निम्न गुणवत्ता वाली किस्म का उत्पादन हुआ क्योंकि बड़े किसानों ने खेतों में जल-जमाव के परिणामस्वरूप समय से पहले ही फसल की कटाई कर दी।

संबंधित चिंताएँ:

  • चूंँकि जूट क्षेत्र देश में 3.70 लाख श्रमिकों को प्रत्यक्ष रोज़गार प्रदान करता है और लगभग 40 लाख किसान परिवारों की आजीविका में सहयोग करता है, अतः मिलों के बंद होने से श्रमिकों को प्रत्यक्ष, जबकि किसानों को अप्रत्यक्ष रूप से (जिनके उत्पादन का उपयोग मिलों में किया जाता है) नुकसान होगा।
    • भारत के कुल उत्पादन में पश्चिम बंगाल, बिहार और असम का लगभग 99% हिस्सा है।

जूट क्षेत्र से संबंधित पहलें:

  •  भारत में जूट उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु सरकार की दो पहलें हैं- गोल्डन फाइबर क्रांति, जूट और मेस्टा पर प्रौद्योगिकी मिशन।
    • इसकी उच्च लागत के कारण सिंथेटिक फाइबर और पैकिंग सामग्री विशेष रूप से नायलॉन के लिये बाज़ार लुप्त हो रहा है।  
  • जूट पैकेजिंग सामग्री अधिनियम, 1987:
    • सरकार जूट पैकेजिंग सामग्री (JPM) अधिनियम के तहत लगभग 4 लाख श्रमिकों और 40 लाख किसान परिवारों के हितों की रक्षा कर रही है।
      • अधिनियम कच्चे जूट और जूट पैकेजिंग सामग्री के उत्पादन एवं उत्पादन में लगे व्यक्तियों के हितों में तथा उनसे जुड़े मामलों के लिये कुछ वस्तुओं की आपूर्ति और वितरण में जूट पैकेजिंग सामग्री के अनिवार्य उपयोग का प्रावधान करता है।
  •  जूट जियो-टेक्सटाइल (JGT): 
  • जूट स्‍मार्ट:
    • जूट स्‍मार्ट (Jute SMART) ई- कार्यक्रम: जूट क्षेत्र में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार ने दिसंबर 2016 में जूट स्‍मार्ट ई-कार्यक्रम की शुरुआत की है जिसमें बी-ट्विल सेकिंग (B-Twill sacking) किस्‍म के टाट के बोरों की खरीद के लिये सरकारी एजेंसियों द्वारा एक समन्वित प्‍लेटफॉर्म उपलब्‍ध कराया गया है। 

जूट की कृषि के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ:

  • तापमान: 25-35 डिग्री सेल्सियस के बीच
  • वर्षा: लगभग 150-250 सेमी
  • मिट्टी का प्रकार: अच्छी जल निकासी वाली जलोढ़ मिट्टी।
  • उत्पादन:
    • भारत जूट का सबसे बड़ा उत्पादक है जिसके बाद बांग्लादेश और चीन का स्थान आता है। 
      • हालाँकि क्षेत्र और व्यापार के मामले में बांग्लादेश भारत के 7% की तुलना में वैश्विक जूट निर्यात के तीन-चौथाई भाग का प्रतिनिधित्त्व करता है।
    • इसका उत्पादन  मुख्य रूप से पूर्वी भारत में गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा की समृद्ध जलोढ़ मिट्टी पर केंद्रित है।
    • प्रमुख जूट उत्पादक राज्यों में पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, आंध्र प्रदेश, मेघालय और त्रिपुरा शामिल हैं। 
  • उपयोग: 
    • इसे गोल्डन फाइबर के रूप में जाना जाता है। इसका उपयोग जूट की थैली, चटाई, रस्सी, सूत, कालीन और अन्य कलाकृतियों को बनाने में किया जाता है। 

Major-Jute-Producing-States

स्रोत: द हिंदू

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