जैव विविधता और पर्यावरण
जुलाई 2019 अभी तक का सबसे गर्म महीना
- 12 Aug 2019
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चर्चा में क्यों?
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization-WMO) ने घोषणा की कि जब से मौसम विश्लेषण का कार्य शुरू हुआ है, तब से अभी तक के सबसे गर्म महीने का रिकॉर्ड तोड़ते हुए जुलाई 2019 संभवतः सबसे गर्म महीने रहा है।
क्या प्रवृत्ति देखने को मिली है?
- WMO और कोपर्निकस क्लाइमेट चेंज प्रोग्राम (Copernicus Climate Change Programme) के नए आँकड़ों के विश्लेषण से यह जानकारी मिलती है कि अभी तक के सबसे गर्म महीने के तौर पर जुलाई 2016 को रिकॉर्ड किया गया था और जुलाई 2019 तकरीबन इसके बराबर रहा।
कोपर्निकस क्लाइमेट चेंज प्रोग्राम (Copernicus Climate Change Programme) का संचालन यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम-रेंज वेदर फोरकास्ट (European Centre for Medium-Range Weather Forecasts) द्वारा किया जाता है।
- जुलाई 2019 में तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
- पेरिस समझौते के अनुसार, 21वीं सदी के औसत तापमान में औद्योगीकरण के पूर्व के वैश्विक तापमान के स्तर की तुलना में, 2°C से अधिक की वृद्धि नहीं होने दी जाएगी। इसके साथ ही सदस्यों द्वारा यह प्रयास किया जाएगा कि वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को 1.5 °C तक सीमित रखा जाए।
यह चिंता का विषय क्यों है:
- हाल के सप्ताहों में दुनिया भर में असाधारण गर्मी का मौसम देखने को मिला, कई यूरोपीय देशों में उच्च तापमान दर्ज किया गया।
- असाधारण गर्मी के साथ-साथ ग्रीनलैंड, आर्कटिक और यूरोपीय ग्लेशियरों पर बर्फ के पिघलने की घटना भी सामने आई।
- आर्कटिक में लगातार दूसरे माह जारी रही भयावह वनाग्नि में वृहद स्तर पर वनों को क्षति पहुँची, वनाग्नि (Forest Fires) से जहाँ एक ओर प्राकृतिक संसाधनों को क्षति पहुँचती है वहीं दूसरी ओर बहुत अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) भी उत्सर्जित होती है जिसका प्रत्यक्ष रूप से जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव पड़ता है।
- यह जलवायु परिवर्तन की वास्तविकता है। यदि समय रहते इस विषय में कठोर कार्यवाही नहीं की गई, तो भविष्य के इसके बहुत भयावह परिणाम सामने आएंगे।
इस वर्ष नई दिल्ली से लेकर एंकरेज (Anchorage), अलास्का तक, पेरिस से लेकर सेंटियागो, एडिलेड (Adelaide), दक्षिण ऑस्ट्रेलिया से लेकर आर्कटिक सर्कल तक उच्च तापमान के रिकॉर्ड टूटते हुए नज़र आए हैं। यदि वर्तमान में जलवायु परिवर्तन पर कठोर कार्रवाई नहीं की जाती हैं, तो ये चरम मौसमी घटनाएँ केवल एक या दो दिन की बात नहीं बल्कि एक कठोर, नियमित, स्थिर वास्तविकता का रूप धारण कर लेंगी। इस संदर्भ में यदि हेनरी डेविड थॉरो के इस वाक्य पर विचार किया जाए कि "खुदा का शुक्र है कि इंसान उड़ नहीं सकते, और आसमान और धरती दोनों को ही बर्बाद नहीं कर सकते" तो यह बताना निरर्थक होगा कि जलवायु परिवर्तन का संकट मानव के जीवन को किस हद तक नुकसान पहुँचा सकता है।