न्यायिक सुरक्षा क्षेत्र: न्यायालयों में विशेष ‘बयान केंद्रों’ का सृजन | 01 Nov 2017

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक सुरक्षा केंद्र के रूप में ‘बयान केंद्रों’ (deposition centres) के सृजन का आदेश जारी किया है।  दरअसल, लम्बे समय से यह माना जाता रहा है कि गवाह के तौर पर लाए जाने वाले बच्चे अदालत के माहौल से डर जाते हैं क्योंकि कई मामले ऐसे होते हैं, जिनमें वे स्वयं भी पीड़ित होते हैं तथा न्यायालय के पूर्णतः औपचारिक परिवेश में उत्तर देने से कतराते हैं। विदित हो आज देश में यौन हिंसा अथवा यौन जैसी घटनाएँ आए दिन सुनने को मिलती हैं।  इससे प्रभावित होने वाला एक बड़ा वर्ग बच्चों का है, जिन्हें जनसंख्या का अति संवेदनशील वर्ग माना जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश दिया है कि तीन महीनों के भीतर प्रत्येक उच्च न्यायालय के न्यायक्षेत्र के अंतर्गत कम से कम दो विशेष ‘बयान केंद्रों’ का निर्माण होना चाहिये। यह ‘संवेदनशील गवाहों’ (जैसे-बच्चों) के लिये अनुकूल और सुरक्षात्मक परिवेश को सुनिश्चित करने के लिये उठाया गया एक सकारात्मक कदम सिद्ध हो सकता है।
  • न्यायालय का यह निर्णय बच्चों के संबंध में बनाए गए कानूनों में मौजूद सिद्धांतों का विस्तार करेगगा।  उदाहरण के लिये, ‘यौन उत्पीड़न से बच्चों का बचाव अधिनियम’ (Protection of Children from Sexual Offences Act) में परीक्षण के दौरान ‘बाल मैत्री’ प्रक्रिया उपलब्ध कराने का प्रावधान है। इस कानून के अंतर्गत, बच्चे के बयान को रिकॉर्ड करने वाला अधिकारी वर्दी में नहीं होना चाहिये। साथ ही न्यायालय की कार्यवाहियों के दौरान यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चे को अपराधी के समक्ष नहीं लाया जाएगा।
  • इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने विडियो कॉन्फ्रेंस अथवा एक तरफा दर्पणों अथवा पर्दों के माध्यम से बच्चे के बयान को रिकॉर्ड करने की भी अनुमति दे दी है। वर्तमान में दिल्ली में ऐसे चार बयान केंद्र हैं, जो दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जारी किये गए दिशा-निर्देशों के तहत कार्य करते हैं।   
  • सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक न्याय समिति ने यह अपील की है कि इस प्रकार के विशेष केंद्रों की आवश्यकता उन आपराधिक मामलों में होती है जिनमें ‘संवेदनशील गवाह’ होते हैं। न्यायालय ने भी यह स्वीकार किया है कि बच्चों की सुरक्षा की दृष्टिकोण से ऐसे केंद्रों का सृजन किया जाना आवश्यक है।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशा-निर्देश बाल पीड़ितों और अपराध के गवाहों लिये संयुक्त राष्ट्र द्वारा बनाए गए आधुनिक कानून से प्रेरित हैं। इसके मुख्य उद्देश्यों में  बाल गवाहों को चोट पहुँचाए बिना सटीक और विश्वसनीय गवाही को सुनिश्चित करना तथा दूसरी बार (secondary victimization) पीड़ित होने से रोकना है।
  • दूसरी बार पीड़ित होना का तात्पर्य उस चोट से है जो आपराधिक कृत्य नहीं बल्कि  संस्थानों, व्यवस्था और व्यक्तियों के असंवेदनशील रुख के कारण बच्चों को पहुँचती है।  यौन हिंसा के मामलों में संवेदनशील गवाह ऐसा ही महसूस करते हैं।

क्यों किया जाए विशेष केंद्रों का सृजन?

  • विशेष केंद्रों का सृजन करने से संवेदनशील गवाहों के बयानों को रिकॉर्ड करने के लिये एक सुरक्षित स्थान मिलेगा। इसके अतिरिक्त, जिन अनेक बयान केंद्रों और सुनवाइयों में उन्हें आज उपस्थित होना पड़ता है, उन्हें भी नज़रंदाज किया जा सकेगा।   
  • तात्पर्य यह है कि बच्चों को अनावश्यक रूप से अपनी बारी की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी और न ही कार्यवाहियों में किसी प्रकार की देरी होगी। परन्तु आजकल संवेदनशील गवाह नामक शब्द केवल बच्चों तक ही सीमित रह गया है, अतः आवश्यकता है कि इस सिद्धांत का विस्तार कर इसमें उन वयस्कों को भी शामिल किया जाए जो न्यायालय के भय और धमकी भरे माहौल के प्रति समान रूप से संवेदनशील हो सकते हैं।
  • यौन हिंसा के पीड़ित का किसी शक्तिशाली विरोधी के प्रति गवाही देना उनके जीवन के लिये खतरा बन सकता है। अतः इस समस्या का समाधान करने के लिये एक अनुकूल वातावरण की आवश्यकता होगी।
  • आदर्श रूप में, देश के प्रत्येक ज़िले में एक विशेष बयान केंद्र की आवश्यकता है। हालाँकि, इसकी अवसंरचना की वित्तीय लागत अधिक हो सकती है परन्तु राज्य को संवेदनशील गवाहों को बचाने के लिये कुछ ठोस कदम उठाने ही होंगे।