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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

निचली अदालतों के लिये न्यायिक प्रदर्शन सूचकांक

  • 31 Aug 2017
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

नीति आयोग द्वारा न्याय वितरण प्रणाली (justice delivery system) में तेज़ी लाने के लिये कुछ महत्त्वपूर्ण दूरगामी सुधारों का सुझाव दिया गया है। ये सुझाव विशेष रूप से निचली अदालतों के संदर्भ में दिये गए हैं, जहाँ पिछले कई वर्षों से लगभग तीन करोड़ मामलें लंबित पड़े हैं। एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान में इन निचली अदालतों को तकरीबन 5,000 न्यायिक अधिकारियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।

नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत महत्त्वपूर्ण सिफारिशें

  • उच्च अदालतों एवं उसके मुख्य न्यायाधीशों द्वारा न्यायिक प्रक्रियाओं में होने वाली देरी को कम करने के लिये ज़िला अदालतों और अधीनस्थ स्तर के न्यायिक निकायों के प्रदर्शन तथा उनकी प्रक्रिया पर नज़र रखने हेतु एक न्यायिक प्रदर्शन सूचकांक (judicial performance index)  की स्थापना की जानी चाहिये।
  • इस सूचकांक के अंतर्गत कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण प्रक्रियाओं को भी शामिल किया जा सकता है, जिन्हें पहले से ही उच्च न्यायालयों द्वारा अनुमोदित किया जा चुका है। उदाहरण के तौर पर, दिन-प्रतिदिन के न्यायिक कार्यों का भार जजों के ऊपर से हटाकर उन्हें प्रशासनिक अधिकारियों को सौंपा जाए।
  • इससे जजों को अधिक से अधिक मामलों की सुनवाई करने का समय मिलेगा तथा कुछ हद तक इस समस्या का समाधान भी हो सकेगा।
  • हालाँकि, इस प्रक्रिया में विभिन्न प्रकार के मामलों के लिये गैर-अनिवार्य समय-सीमा (non-mandatory time frames) तय किये जाने की आवश्यकता होगी। 
  • न्यायाधीशों का कार्यभार कम करने के लिये न्यायिक प्रणाली में अलग से एक प्रशासनिक कैडर (administrative cadre) बनाए जाने की आवश्यकता है। न्यायिक स्वतंत्रता बनाए रखने के लिये इस संवर्ग द्वारा प्रत्येक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को अपनी रिपोर्ट देनी चाहिये।
  • इस संबंध में स्वचालन (automation), इलेक्ट्रॉनिक अदालतों की सक्षमता (enablement for electronic court) तथा मामलों के प्रबंधन, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी, अदालती समय-सारिणी के इलेक्ट्रॉनिक प्रबंधन (electronic management) और सभी अदालतों का एकीकृत राष्ट्रीय न्यायालय में स्थानान्तरण जैसी अतिरिक्त अदालती प्रक्रियाओं को भी उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • इस संबंध में न्यायिक जनशक्ति और बुनियादी ढाँचे की पर्याप्तता का निर्धारण करने के लिये न्यायिक आँकड़ों (judicial statistics)  को ऑनलाइन उपलब्ध कराया  जाना चाहिये। 
  • इस संबंध में अधिक प्रभावी कार्यवाही करने एक लिये भारत सरकार द्वारा विश्व के अन्य देशों द्वारा अपनाई गई प्रक्रियाओं एवं प्रणालियों के विषय में भी अध्ययन किया जाना चाहिये।
  • इसके लिये कुछ अंतर्राष्ट्रीय मानकों जैसे - आस्ट्रेलियाई न्यायिक प्रशासन संस्थान (Australasian Institute of Judicial Administration), संघीय न्यायिक केंद्र (Federal Judicial Center) यू.एस., नेशनल सेंटर फॉर स्टेट कोर्ट्स (National Center for State Courts) यू.एस. तथा सब-ऑर्डिनेट कोर्ट्स ऑफ सिंगापुर (Subordinate Courts of Singapore) द्वारा अपनाए गए 'ग्लोबल मेज़र्स ऑफ कोर्ट परफॉर्मेंस’ (global measures of court performance) के विषय में भी विचार किया जा सकता है।
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