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भारतीय राजव्यवस्था

बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएँ और जम्मू-कश्मीर

  • 04 Aug 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये

बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका, निवारक निरोध

मेन्स के लिये

बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएँ और इनका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, 5 अगस्त, 2019 को तत्कालीन जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति समाप्त होने के बाद से जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने अगस्त 2019 से दिसंबर 2019 के बीच दायर लगभग 160 बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं का निपटारा किया और कम-से-कम 270 बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएँ लंबित हैं।

प्रमुख बिंदु

  • मामलों को निपटाने की प्रक्रिया के दौरान लगभग 61 प्रतिशत मामलों को 3-4 सुनवाई तक खींचा गया।
  • आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि अगस्त 2019 से दिसंबर 2019 के बीच दायर लगभग 160 बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं में से अधिकांश का निपटान मार्च-जुलाई 2020 के बीच किया गया है, यह विश्लेषण दर्शाता है कि जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं को निपटाने की प्रक्रिया कितनी लंबी थी।
  • कई बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाकर्त्ताओं ने कहा कि इन मामलों को निपटाने के दौरान उच्च न्यायालय ने सरकारी वकीलों को अनुचित समय दिया, जिससे मामलों के निपटान में देरी हुई। ऐसे कई मामले देखे गए, जहाँ न्यायालय ने सरकारी वकीलों को आपत्ति दर्ज कराने अथवा अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिये 1 माह अथवा उससे भी अधिक समय दिया था।
  • जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन की कार्यकारी समिति ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र में सूचित किया है कि बीते वर्ष अगस्त माह में जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति समाप्त होने के बाद से लगभग 99 प्रतिशत बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएँ उच्च न्यायालय में लंबित हैं। 

  • जम्मू-कश्मीर में निवारक निरोध
    • 5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए जम्मू-कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन दो केंद्रशासित क्षेत्रों- जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के रूप में विभाजित करने का निर्णय लिया था। 
    • 5 अगस्त और उसके पश्चात् कश्मीर घाटी में हज़ारों लोगों को हिरासत में लिया गया, इनमें से कई लोगों को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (Public Safety Act-PSA) के तहत हिरासत में लिया गया, जिसमें पहली बार राज्य के मुख्य धारा के नेता भी शामिल थे।
    • इसी वर्ष मार्च माह में राज्यसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने बताया था कि ‘रिपोर्ट के अनुसार, शांति भंग करने वाले अपराधों को रोकने और राज्य की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था का रखरखाव करने के उद्देश्य से पत्थलगड़ी, उपद्रवियों और अलगावादियों समेत कुल मिलाकर 7,357 लोगों को निवारक हिरासत में लिया गया।
    • गौरतलब है कि ‘निवारक निरोध’, राज्य को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह किसी व्यक्ति को कोई संभावित अपराध करने से रोकने के लिये हिरासत में ले सकता है।  
    • संविधान के अनुच्छेद 22(3) के तहत यह प्रावधान है कि यदि किसी व्यक्ति को ‘निवारक निरोध’ के तहत गिरफ्तार किया गया है या हिरासत में लिया गया है तो उसे अनुच्छेद 22(1) और 22(2) के तहत प्राप्त ‘गिरफ्तारी और हिरासत के खिलाफ संरक्षण’ का अधिकार प्राप्त नहीं होगा।
  • बंदी प्रत्यक्षीकरण
    • बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के पास संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट जारी करने का अधिकार होता है।
    • यह उस व्यक्ति के संबंध में न्यायलय द्वारा जारी आदेश होता है, जिसे दूसरे द्वारा हिरासत में रखा गया है। यह किसी व्यक्ति को जबरन हिरासत में रखने के विरुद्ध होता है।
    • बंदी प्रत्यक्षीकरण वह रिट है जिसकी कल्पना एक ऐसे व्यक्ति को त्वरित न्याय प्रदान करने के लिये एक प्रभावी साधन के रूप में की गई थी जिसने बिना किसी कानूनी औचित्य के अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता खो दी है।
    • भारत में बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट जारी करने की शक्ति केवल सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में निहित है।
    • बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट सार्वजनिक प्राधिकरणों या व्यक्तिगत दोनों के विरुद्ध जारी की जा सकती है।
  • बंदी प्रत्यक्षीकरण का महत्त्व
    • बंदी प्रत्यक्षीकरण का अधिकार किसी व्यक्ति को गैर-कानूनी तरीके से उसके निजी अधिकारों से वंचित करने की सभी स्थितियों में एक उपाय के रूप में उपलब्ध है।
    • यह गैर-कानूनी या अनुचित नज़रबंदी से तत्काल रिहाई के प्रभावी साधनों की पुष्टि करता है।
  • बंदी प्रत्यक्षीकरण कब जारी नहीं की जा सकती है?
    • यदि व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया के अंतर्गत हिरासत में लिया गया हो।
    • यदि कार्यवाही किसी विधानमंडल या न्यायालय की अवमानना के तहत हुई हो।
    • न्यायालय के आदेश द्वारा हिरासत में लिया गया हो।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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