विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
UDMH रॉकेट ईंधन
- 31 Jul 2019
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में चंद्रयान- 2 मिशन का प्रक्षेपण GSLV MK III रॉकेट से किया गया, इस रॉकेट में अनसिमिट्रिकल डाई-मिथाइल हाइड्रोजेनाइन (Unsymmetrical Di-Methyl Hydrogenine- UDMH) ईंधन का प्रयोग किया गया।
प्रमुख बिंदु:
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने नाइट्रोजन टेट्रॉक्साइड के ऑक्सीकारक के साथ अत्यधिक विषैले और संक्षारक (Corrosive) ईंधन UDMH का इस्तेमाल किया। इसे गंदा संयोजन (Dirty Combination) भी कहा जाता है।
- विश्व के कई देश अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों में तरल मीथेन और केरोसीन जैसे ज़्यादा साफ-सुथरे ईधन का प्रयोग कर रहे हैं।
- तरल मीथेन का ईधन के रूप प्रयोग करने के लिये क्रायोजेनिक इंजन की आवश्यकता होगी। किसी भी गैस को तरल रूप में रखने के लिये बेहद कम तापमान की आवश्यकता होती है।
GSLV MK III:
- चंद्रयान-2 के लिये प्रयुक्त GSLV MK III इसरो द्वारा विकसित तीन-चरणों वाला भारत का सबसे शक्तिशाली प्रमोचक यान है। इसमें दो ठोस स्ट्रैप-ऑन (Solid Strap-Ons), एक कोर द्रव बूस्टर (Core Liquid Booster) और एक क्रायोजेनिक ऊपरी चरण (Cryogenic Upper Stage) शामिल है।
- GSLV MK III की विशेषताएँ:
- ऊँचाई: 43.43 मीटर
- व्यास: 4.0 मीटर
- ताप कवच का व्यास: 5.0 मीटर
- चरणों की संख्या: 3
- उत्थापन द्रव्यमान: 640 टन
- GSLV MK III को भू-तुल्यकालिक अंतरण कक्षा (Geosynchronous Transfer Orbit- GTO) में 4 टन श्रेणी के उपग्रहों को तथा निम्न भू-कक्षा में लगभग 10 टन वज़न वहन करने हेतु डिज़ाइन किया गया है। उल्लेखनीय है कि GSLV MK III की यह क्षमता GSLV MK II से लगभग दोगुनी है।
- GSLV MK III का प्रथम विकासात्मक प्रमोचन 5 जून, 2017 को किया गया था जिसके तहत GSLV MK III-D1 की सहायता से GSAT-19 उपग्रह को भूतुल्यकालिक अंतरण कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया था।
- उल्लेखनीय है कि GSLV MK III-D2 ने 14 नवंबर, 2018 को उच्च क्षमता वाले संचार उपग्रह GSAT-29 का सफलतापूर्वक प्रमोचन किया था।
रॉकेट में प्रयुक्त होने वाले प्रणोदक (Propellant)
- प्रणोदक वह रासायनिक मिश्रण है जो रॉकेट को पृथ्वी से अंतरिक्ष की ओर धकेलता है।
- इसमें एक ईंधन और एक ऑक्सीकारक का प्रयोग किया जाता है।
- प्रणोदन के लिये ऑक्सीकारक के साथ संयुक्त होने पर ईंधन जलता है।
- ऑक्सीकारक एक एजेंट है जो ईंधन के साथ संयोजन के लिये ऑक्सीजन छोड़ता है।
- ईंधन के लिये ऑक्सीकारक के अनुपात को मिश्रण अनुपात कहते हैं।
प्रणोदक (Propellant) का वर्गीकरण
- तरल प्रणोदक:
- तरल प्रणोदक रॉकेट में ईंधन और ऑक्सीकारक को अलग-अलग टैंकों में संग्रहीत किया जाता है।
- इसके बाद पाइप, वाल्व, और टर्बोपम्प (Turbopumps) की एक प्रणाली के माध्यम से इन्हें एक दहन कक्ष में ले जा कर जलाने के बाद उत्पन्न ऊर्जा से रॉकेट लॉन्च किया जाता है।
- तरल प्रणोदक के लाभ:
- तरल प्रणोदक इंजन अन्य ठोस प्रणोदकों की तुलना में अधिक कारगर होते हैं।
- इसके प्रयोग के माध्यम से दहन कक्ष में प्रणोदक के प्रवाह को नियंत्रित कर, इंजन को दबाया (throttled) जा सकता है, साथ ही इंजन को रोका जा सकता है या फिर से शुरू किया जा सकता है।
- तरल प्रणोदक से हानियाँ:
- तरल प्रणोदक के साथ मुख्य कठिनाइयाँ ऑक्सीकारक के साथ हैं; क्योंकि नाइट्रिक एसिड (Nitric Acid) और नाइट्रोजन टेट्राक्साइड (Nitrogen Tetroxide) ऑक्सीकारक बेहद विषाक्त और अत्यधिक प्रतिक्रियाशील होते हैं।
- क्रायोजेनिक प्रणोदक को कम तापमान पर संग्रहीत करने से भी इसमें प्रतिक्रिया/विषाक्तता की भी संभावना होती है।
रॉकेट में उपयोग किये जाने वाले तरल प्रणोदकों को तीन प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-
- पेट्रोलियम:
- इस प्रकार के ईंधन कच्चे तेल से परिष्कृत होते हैं तथा जटिल हाइड्रोकार्बन का मिश्रण होते हैं। इसमें कार्बन और हाइड्रोजन कार्बनिक के यौगिक शामिल होते हैं।
- रॉकेट ईंधन के रूप में उपयोग किया जाने वाला पेट्रोलियम एक प्रकार का उच्च परिष्कृत केरोसीन है।
- क्रायोजेनिक प्रणोदक:
- क्रायोजेनिक प्रणोदक में तरलीकृत गैसें होती हैं जिन्हें बहुत कम तापमान पर संग्रहीत किया जाता है।
- इसमें तरल हाइड्रोजन (LH2) को ईंधन और तरल ऑक्सीजन (LO2 या LOX) को ऑक्सीकारक के रूप में रूप में प्रयोग किया जाता है।
- हाइड्रोजन और ऑक्सीजन क्रमशः -253 डिग्री सेल्सियस (-423 डिग्री फारेनहाइट) और -183 डिग्री सेल्सियस (-297 डिग्री फारेनहाइट) के तापमान पर तरल अवस्था में रहते हैं।
- हाइपरगोलिक (Hypergolic) प्रणोदक:
- हाइपरगोलिक प्रणोदक और ऑक्सीकारक एक-दूसरे के संपर्क में आने के बाद सहजता से जलते हैं।
- हाइपरगोलिक की आसानी से होने वाली शुरुआत और दोबारा शुरुआत की क्षमता इसे अंतरिक्ष यान प्रणालियों के लिये आदर्श बनाती है।
- हाइपरगोलिक तापमान सामान्य तापमान पर तरल रहता है, इसलिये क्रायोजेनिक प्रणोदक की तरह इसके भंडारण को लेकर समस्या नहीं होती है।
- हाइपरगोलिक अत्यधिक विषाक्त होते हैं इसलिये इनकी ठीक से देखभाल भी एक चुनौती है। हाइपरगोलिक ईंधन के रूप में आमतौर पर हाइड्रैज़िन (Hydrazine), मोनोमिथाइल-हाइड्रेज़िन (Monomethyl-Hydrazine) और अनसिमिट्रिकल डाइमिथाइल-हाइड्रेज़िन (Unsymmetrical Dimethyl-Hydrazine) इत्यादि को प्रयोग में लाया जाता है।
ठोस प्रणोदक:
- ये सभी रॉकेट डिज़ाइनों में सबसे सरल हैं। इनमें आमतौर पर स्टील का एक आवरण होता है, जो ठोस यौगिकों (ईंधन और ऑक्सीकारक) के मिश्रण से भरा होता है।
- यह तीव्र गति से जलता है और रॉकेट को धक्का (Push) देने के लिये नोज़ल (रॉकेट का निकला हुआ भाग ) से गर्म गैसों को बाहर निकालता है।
- ठोस प्रणोदक दो प्रकार के होते हैं- सजातीय (Homogeneous) और समग्र (Composite)। इन दोनों का ही घनत्व अधिक होता है तथा सामान्य तापमान पर आसानी से स्थिर होते हैं।
- समग्र (Composite) प्रणोदक ज्यादातर ठोस आक्सीकारक जैसे कि अमोनियम नाइट्रेट, अमोनियम डिनिट्रामाइड, अमोनियम पेर्क्लोरेट या पोटेशियम नाइट्रेट आदि की कणिकाओं के मिश्रण से बने होते हैं।
ठोस प्रणोदक के लाभ:
- ठोस प्रणोदक रॉकेट को तरल प्रणोदक रॉकेट की तुलना में संग्रहीत करना आसान है। प्रणोदक घनत्व अधिक होने से आकार भी सहज रहता है।
ठोस प्रणोदक से हानियाँ:
- तरल-प्रणोदक इंजन के विपरीत ठोस प्रणोदक के मोटर बंद नहीं किये जा सकते है।
- एक बार जलने के बाद वे तब तक जलेंगे जब तक कि प्रणोदक समाप्त नहीं हो जाता है।
हाइब्रिड प्रणोदक:
- इस प्रकार के प्रणोदक में ठोस और तरल प्रणोदक इंजनों के गुण होते हैं।
- सामान्यतः ईंधन ठोस और ऑक्सीकारक तरल अवस्था में होता है।
- तरल पदार्थ को ठोस में इंजेक्ट किया जाता है, साथ ही इसका ईंधन कक्ष, दहन कक्ष का भी कार्य करता है।
- ये ठोस प्रणोदक के समान ही उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं, लेकिन ठोस प्रणोदक के विपरीत इन्हें रोका भी जा सकता है तथा फिर से चालू भी किया जा सकता है।
- निश्चित ही इस प्रकार के प्रणोदकों की गुणवत्ता अधिक विकसित होगी, लेकिन इस प्रकार की तकनीकी को विकसित कर पाना अत्यंत कठिन कार्य है।