उपग्रह निर्माण हेतु इसरो का निजी क्षेत्र के साथ अनुबंध | 03 Apr 2017
सन्दर्भ
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation-ISRO) ने उपग्रह निर्माण का काम आउटसोर्स करके निजी क्षेत्र के साथ हाथ मिलाया है। इसरो ने उपग्रह निर्माण की गति के साथ सामंजस्य बैठाने और इस दिशा में आने वाली समस्याओं को दूर करने के लिये निजी क्षेत्र के साथ अनुबंध किया है।
प्रमुख बिंदु
- लगभग 150 मिशन और तीन दशकों के अंतरिक्षीय कार्य के बाद, इसरो का यह एक अभूतपूर्व अभियान है।
- इसके लिये बेंगलुरु के एक हाईटेक रक्षा उपकरण आपूर्तिकर्ता अल्फा डिज़ाइन टेक्नोलॉजीज़ (Alpha Design Technologies) को पहले निजी उद्योग के तौर पर चुना गया है।
- भारत को उसका पहला बड़ा निजी उपग्रह दिलाने के लिये इसरो ने 400 करोड़ रूपए की कंपनी अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज़ के साथ यह करार किया है।
- इस अभियान में निजी क्षेत्र के दल, सरकारी इंजीनियरों के साथ मिलकर पूर्ण नेविगेशन उपग्रह बनाने का काम कर रहे हैं। जिसके अंतर्गत 70 इंजीनियरों का दल आगामी छह महीने में उड़ान भरने योग्य उपग्रह बनाने के लिये कार्यरत है।
- यह बिलकुल नई किस्म की जुगलबंदी है क्योंकि यह पहला अवसर है, जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने, कई करोड़ रुपए के उपग्रह को बनाने के लिये निजी क्षेत्र के किसी उद्योग की मदद ली है।
- गौरतलब है कि उपग्रह को जोड़ने और उसके परीक्षण करने का काम अपने हाथ में लेना किसी भी भारतीय कंपनी के लिए चुनौतीपूर्ण काम है।
- अल्फा डिज़ाइन टेक्नोलॉजीज़, बेंगलुरू के नेतृत्व वाले एक संघ (Consortium) को भारत के नेविगेशन तंत्र के लिये दो पूर्ण उपग्रह बनाने का काम दिया गया है।
- भारत को ई.वी.एम. (Electronic Voting Machines) की पहली खेप दिलाने में मदद करने वाले कर्नल एच.एस.शंकर इस संघ के नेतृत्वकर्त्ता हैं। उल्लेखनीय है कि एच.एस.शंकर अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज़ के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक हैं।
पृष्ठभूमि
- ध्यातव्य है कि वर्तमान में अंतरिक्ष की कक्षा में सात उपग्रहों की मौजूदगी के साथ नाविक (Navigation with Indian Constellation),स्वदेशी जी.पी.एस. प्रणाली सक्रिय है लेकिन किसी आकस्मिक स्थिति के लिये इसरो को जमीन पर दो अतिरिक्त उपग्रह चाहिए जिन्हें किसी प्रकार की गड़बड़ी की स्थिति में विकल्प के तौर प्रक्षेपित किया जा सके।
- इसके अतिरिक्त, हाल ही में इसरो द्वारा एक साथ 104 उपग्रह प्रक्षेपित करने की उपलब्धि ने, वैश्विक स्तर पर भारत को एक विश्वसनीय ‘अंतरिक्ष शक्ति संपन्न राष्ट्र’ के रूप में स्थापित कर दिया है।
- इसरो हमेशा से ही एक ऐसी व्यवस्था बनाना चाहता है जहाँ नई उपलब्धियाँ हासिल कर भारत भविष्य में आगे बढ़े और उसके लक्ष्य पूरे हो सकें। वर्तमान में अंतरिक्ष क्षेत्र में जितना कार्य किया जा चुका है, आवश्यकता उससे भी अधिक की है।
- ध्यातव्य है कि इसरो प्रतिवर्ष 16 से 17 उपग्रह बनाने हेतु प्रतिबद्ध है जो कि एक मुश्किल लक्ष्य है।
- विदित हो कि उपग्रह निर्माण में सैकड़ों करोड़ रूपए की लागत आती है एवं इस कार्य में अत्यधिक सटीकता की जरूरत होती है।
- प्रक्षेपण के बाद यह उपग्रह लगभग 10 वर्ष के लिये सक्रिय रहते हैं और इनकी मरम्मत की कोई संभावना नहीं होती। अतः मांग और आपूर्ति में अंतराल बना रहता है।
- फिलहाल लक्ष्य और उसकी प्राप्ति के मध्य बना हुआ यह अंतर ‘जरूरत और क्षमता’ का है।
- इसरो का मानना है कि निजी क्षेत्र की मदद से इस अंतर को पाटना तथा उपग्रह निर्माण की अपेक्षित गति के साथ तालमेल बैठा पाना संभव है।