अंतर्राष्ट्रीय संबंध
इसरो ने एक साथ किया 31 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण
- 13 Jan 2018
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चर्चा में क्यों?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने 42वाँ ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी-सी 40) द्वारा 710 किलोग्राम के कार्टोसैट-2 शृंखला के दूर-संवेदी उपग्रह के साथ 30 अन्य उपग्रहों को लॉन्च कर सफलतापूर्वक धरती की कक्षा में स्थापित किया।
कार्टोसैट-2 उपग्रह की प्रमुख विशेषताएँ:
- कार्टोसैट-2 उपग्रह एक अर्थ इमेजिंग उपग्रह है जो धरती की तस्वीरें लेता है, इस कारण इस उपग्रह को 'आई इन द स्काई' यानी आसमानी आँख भी कहा जा रहा है।
- कार्टोसैट-2 उपग्रह में उन्नत किस्म के पैंक्रोमेटिक (श्याम और श्वेत) तथा मल्टीस्पेक्ट्रल (रंगीन) कैमरों का इस्तेमाल किया गया है जिसका मुख्य उद्देश्य दूरसंवेदी डाटा प्राप्त करना है।
- इस उपग्रह में लगे उन्नत किस्म के कैमरों से भारत अपने उत्तर-पूर्वी और उत्तर-पश्चिमी सीमा के इलाकों पर पैनी नज़र रख सकता है।
- इस उपग्रह का उपयोग ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के मानचित्रण, तटीय क्षेत्रों की निगरानी, समुद्री इलाकों में होने वाले बदलावों पर नज़र रखने के लिये किया जाएगा।
अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- भारत ने पीएसएलवी-सी 40 के द्वारा 2 स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपित किये हैं। जिनमें एक 100 किलो वजनी माइक्रोसेट उपग्रह है जिसे भविष्य में ऐसे प्रक्षेपण के लिये प्रायोगिक तौर पर छोड़ा है। तथा दूसरा नैनो सैटेलाइट -1 सी है जो माँग के हिसाब से उपग्रहों को छोड़ने के लिये प्रयोग के तौर पर छोड़ा गया है।
- भारत के अलावा इसमें 28 अंतर्राष्ट्रीय उपग्रह हैं, जो कनाडा, फिनलैंड, फ्राँस, कोरिया गणराज्य, ब्रिटेन तथा अमेरिका के हैं।
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम: एक नज़र
नवंबर 1969 में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई तथा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का गठन हुआ। अंतरिक्ष कार्यक्रम की यात्रा वर्ष 1963 में एक छोटे-से रॉकेट प्रक्षेपण से शुरू करके आज हमें ऐसे मुकाम पर पहुँच गए हैं कि अब हमारे पास भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (इनसैट) एवं भारतीय दूरसंवेदी (आईआरएस) उपग्रह जैसी अत्याधुनिक बहुउद्देश्यीय उपग्रह प्रणाली मौजूद हैं।
पिछली शताब्दी के आठवें दशक में हम ने परीक्षणों व प्रदर्शनों से यह यात्रा आरंभ की । इसके तहत हम ने बड़े-बड़े परीक्षण किये, जिनमें सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविज़न एक्सपेरीमेंट (साइट) एवं सैटेलाइट टेलीकम्युनिकेशन एक्सपेरीमेंट प्रोजेक्ट (स्टेप) शामिल हैं। इसी श्रृंखला में हमने प्रायोगिक उपग्रहों यथा- आर्यभट्ट, भास्कर एवं एप्पल का निर्माण भी किया, जिन्होंने नौवें दशक में इनसैट एवं आईआरएस प्रणालियों की स्थापना के लिये मार्ग प्रशस्त किया।
भारत ने दो प्रकार के उपग्रह प्रक्षेपण यानों की रूपरेखा तैयार कर उनको इस्तेमाल योग्य बनाया है। इनमें से एक है ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी), जिससे भारतीय सुदूर संवेदी उपग्रह प्रक्षेपित किये जाते हैं और दूसरा है भू-स्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी), जिससे इनसैट परिवार के उपग्रह छोड़े जाते हैं। पीएसएलवी 1600 किलोग्राम भार का उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थापित कर सकता है। एसएलवी उपग्रहों को भू-स्थैतिक अंतरण कक्षा और पृथ्वी की निम्न कक्षाओं में स्थापित कर सकता है। भारत के पास सबसे अधिक सुदूर संवेदी उपग्रह हैं।
पीएसएलवी
पीएसएलवी में चार स्टेज वाले इस रॉकेट में बारी-बारी से ठोस एवं द्रव ईंधनों का इस्तेमाल होता है। इसकी लंबाई 44 मीटर, वजन 295 टन और व्यास 2.8 मीटर का है। यह 620 किलोमीटर दूर भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा (सनसिंक्रोनस पोलर आर्बिट) में 1050 किलोग्राम भार के उपग्रह ले जाने में सक्षम है। पीएसएलवी ऐसा परिवर्तनशील यान है, जो ध्रुवीय सौर समकालिक कक्षा, निम्न पृथ्वी कक्षा और समकालिक स्थानांतरण कक्षा में कई उपग्रहों को स्थापित कर सकता है।
जीएसएलवी
भू-स्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) में क्रायोजनिक इंजन का इस्तेमाल किया जाता है। क्रायोजनिक इंजन बनाने का कार्य लंबे समय से भारत कर रहा है। दरअसल, क्रायोजनिक इंजन एक जटिल प्रणाली है। भू स्थैतिक कक्षा में भारी उपग्रहों को ले जाने के लिये प्रक्षेपण वाहनों को लंबी उड़ान भरनी होती है। इसलिये इसमें तीन चरणों के इंजन होते हैं। पहले ठोस इंजन कार्य करता है। उसके बाद तरल तथा तीसरे एवं अंतिम चरण में क्रायोजनिक इंजन कार्य करता है। क्रायोजनिक इंजन में तरल आक्सीजन एवं हाइड्रोजन होती है। लेकिन इन्हें बहुत कम तापमान पर तरल बनाया जाता है। आक्सीजन को -183 डिग्री सेल्सियस एवं हाइड्रोजन को -253 डिग्री सेल्सियस तापमान पर तरल बनाया जाता है जिससे ये बेहद हल्की हो जाती हैं और अंतरिक्ष में प्रभावी तरीके से इंजन को संचालित करती हैं।