अंतर्राष्ट्रीय संबंध
इसरो की बड़ी सफलता व देश का भविष्य
- 05 Jun 2017
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संदर्भ
भारत द्वारा जी.एस.एल.वी. (GSLV) मार्क-III के रूप में एक नवीन रॉकेट का प्रक्षेपण करना अपने आप में एक बड़ी प्रौद्योगिकीय सफलता है। इस रॉकेट के द्वारा देश के अब तक के सबसे बड़े संचार उपग्रह को ले जाया जाएगा, जिसे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से छोड़ने की योजना है। यह उपग्रह 3,136 किलोग्राम का जी.एस.टी.-19 संचार उपग्रह होगा, जिसे पृथ्वी से 36,000 किलोमीटर की दूरी पर स्थापित किया जाएगा।
मुख्य बिंदु
- जी.एस.एल.वी. मार्क-III इसरो (ISRO) व देश के इतिहास में एक बहुत बड़ी प्रौद्योगिकी सफलता है। यह प्रक्षेपण यान भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम द्वारा निर्मित अब तक का सबसे बड़ा प्रक्षेपण यान है।
- जी.एस.एल.वी. मार्क-III की पहली उप-कक्षीय परीक्षण उड़ान (sub-orbital test flight) 18 दिसंबर, 2014 को सफलतापूर्वक आयोजित की गई थी।
- यह रॉकेट 4000 किलोग्राम वज़न वाले उपग्रहों को भू-स्थैतिक स्थानान्तरण कक्षा (GOT) में कक्षा में 36,000 किमी. की दूरी तक और 10,000 किग्रा. वज़न के उपग्रह को निम्न भू कक्षा (LEO) में 800 किमी. की दूरी तक ले जा सकता है।
- जी.एस.एल.वी. मार्क-III, पी.एस.एल.वी. (PSLV) और जी.एस.एल.वी. मार्क-II के बाद परिचालित एक आधुनिक प्रमोचक यान होगा।
- यह चौथी पीढ़ी का प्रमोचक यान है, जिसमें तीन-स्तरीय यान के साथ चार तरल स्ट्रैप्स-ओन्स (straps-ons) होते हैं और तीसरे चरण में देश में विकसित क्रायोजेनिक इंजन (CUS) लगा होता है।
- जीटीओ में जी.एस.एल.वी. मार्क-III से अलग होने के बाद, जीएसएटी-19 अपनी भौगोलिक कक्षा तक पहुँचने के लिये अपनी प्रणोदन प्रणाली (Propulsion system) का उपयोग करेगा।
इस सफलता से होने वाले लाभ
- जी.एस.एल.वी. मार्क-III अपने साथ जीएसएटी-19 संचार उपग्रह को ले जाएगा, यह उपग्रह VSAT (VERY SMALL APERTURE TERMINAL) तकनीक के साथ-साथ डाटा कनेक्टिविटी तथा ऐसे ही अन्य अनुप्रयोगों के बेहतर संचालन में मददगार होगा।
- यह उपग्रह मल्टीपल स्पॉट बीम (MULTIPLE SPOT बीम ) का प्रयोग करके भारत के भारत के सम्पूर्ण भू-भाग को कवर करेगा। इसरो का दावा है कि इससे इंटरनेट की गति और कनेक्टिविटी बढ़ जाएगी।
- इसके अतिरिक्त, मार्क-III की सफलता का मतलब होगा कि अब भारत संचार उपग्रहों को स्वयं ही प्रक्षेपित करने में सक्षम होगा।
- मार्क-III का प्रयोग भारी उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करने के लिये किया जाएगा, जो वर्तमान में ज़्यादातर यूरोप की एरियन स्पेस एजेंसी की सहायता से प्रक्षेपित किये जाते हैं, क्योंकि इस तरह के प्रक्षेपण के लिये भारत के पास उतनी क्षमता का शक्तिशाली रॉकेट नहीं है। इसके लिये भारत को एरियन स्पेस एजेंसी को भारी वित्तीय शुल्क भी अदा करनी होती है, लेकिन मार्क-III की आ जाने से यह वित्तीय भार कम हो जाएगा।
निष्कर्ष
भारत का अन्तरिक्ष कार्यक्रम हमेशा से देश के लिये एक महत्त्वाकांक्षी योजना रहा है, जिसके परिणामस्वरूप देश आज लाभकारी स्थिति में है। विशेषकर लाभ सूचना तकनीक, संचार, स्वास्थ्य, शिक्षा व रक्षा के क्षेत्र में इसका पर्याप्त लाभ मिल रहा है। इसरो की वर्तमान सफलता जो देश की अन्तरिक्ष एजेंसी को बड़े संचार उपग्रहों को ले जाने की क्षमता से परिपूर्ण बनाएगी, घरेलू स्तर पर विकसित की जाने वाली प्रौद्योगिकी के दृष्टिकोण से काफी महत्त्वपूर्ण है।