नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

क्या निजी जानकारी का संरक्षण एक अधिकार है?

  • 22 Jul 2017
  • 3 min read

संदर्भ
केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय की पाँच सदस्यीय संविधान पीठ से कहा है कि निजी जानकारी (व्यक्तिगत आँकड़े) प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा और जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है और सामाजिक मीडिया मंचों या सेवा प्रदाताओं द्वारा किसी की निजी जानकारी को साझा किये जाना, जो किसी व्यक्ति के जीवन के अधिकार ( अनुच्छेद 21) का अतिक्रमण करता हो, को विनियमित करने की आवश्यकता है।

प्रमुख बिंदु 

  • गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय की पाँच-सदस्यीय पीठ एक याचिका की सुनवाई  कर रही  है, जिसमें फेसबुक और व्हाट्सएप के बीच 2016 में हुए एक समझौते पर यह आरोप लगाया गया है कि यह समझौता नागरिकों के निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
  • हालाँकि फेसबुक और व्हाट्सएप मामले में केंद्र का रुख नौ-सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष आधार मामले में चल रही सुनवाई के विपरीत है, जिसमें पीठ आधार के संदर्भ में निजता एक मौलिक अधिकार है या नहीं, इस पर विचार कर रही है। 
  • आधार के मामले में याचिकाकर्त्ताओं ने न्यायालय में यह तर्क दिया था कि निजता का अधिकार, गरिमामय जीवन जीने के अधिकार में शामिल है। अतः राज्य नागरिकों को उनके व्यक्तिगत जानकारियों को साझा करने के लिये बाध्य नहीं कर सकता है। 
  • आधार मामले में केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा था कि निजता अथवा अकेले छोड़ दिये जाने का अधिकार (right to be left alone) संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार नहीं है।

अनुच्छेद 21 क्या कहता है ?

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण प्रदान करता है। इसमें कहा गया है कि किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
  • सर्वोच्च न्यायालय के पिछले अनेक निर्णयों द्वारा इस अधिकार का दायरा बढ़ा है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार इसमें शोषण से मुक्त और मानवीय गरिमा से पूर्ण जीवन जीने का अधिकार अंतर्निहित है।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow