ईरान का परमाणु अप्रसार संधि से बाहर होने के मायने | 21 Jan 2020
प्रीलिम्स के लिये:NPT व IAEA मेन्स के लिये:ईरान के परमाणु अप्रसार संधि से बाहर होने से पड़ने वाले प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ईरान ने यह वक्तव्य दिया है कि यदि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के समक्ष उसके परमाणु कार्यक्रमों को लेकर विवाद उत्पन्न होता है तो वह परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty -NPT) से पीछे हटने पर विचार करेगा।
प्रमुख बिंदु
- ब्रिटेन, फ्राँस और जर्मनी ने ईरान पर वर्ष 2015 में हुए परमाणु समझौते के नियमों का पालन करने में विफल रहने के कारण एक संकल्प प्रस्तावित किया है, जिसे ईरान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के आरोपण की आशंका के रूप में देख रहा है।
- वर्ष 2018 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा इस समझौते से अपना नाम वापस लेने के बाद इस समझौते के प्रावधानों को लेकर ईरान ने यूरोपीय संघ के तीन सदस्य देशों पर निष्क्रियता का आरोप लगाया है।
- वर्ष 2015 में ब्रिटेन, फ्राँस, चीन, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा जर्मनी (P5+1 ) ने ईरान के साथ परमाणु समझौता किया था।
- इस समझौते में ईरान द्वारा अपने परमाणु कार्यक्रमों पर नियंत्रण तथा उन्हें अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency-IAEA) के नियमों के आधार पर संचालित करने की सहमति देने की बात की गई।
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी
- अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण एक स्वायत्त संस्था है, जिसका उद्देश्य विश्व में परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना है।
- इसका गठन 29 जुलाई, 1957 को हुआ था। इसका मुख्यालय वियना (आस्ट्रिया) में है।
- यह संयुक्त राष्ट्र का अंग नही है परंतु संयुक्त राष्ट्र महासभा तथा सुरक्षा परिषद को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
- वर्तमान में इसके महानिदेशक राफेल मारिआनो ग्रॉसी (Rafael Mariano Grossi) हैं।
- इसके बदले में P5+1 देशों द्वारा ईरान पर लगे प्रतिबंधों को हटाने के लिये समझौता किया गया।
- वर्ष 2018 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा इस समझौते से हटने के बाद ईरान भी समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं से क्रमशः पीछे हट रहा है।
- ईरान द्वारा अपनी प्रतिबद्धताओं से पीछे हटने के कारण तीनों यूरोपीय देशों ने भी इस समझौते के प्रति निष्क्रियता दिखाई है।
- हालाँकि ईरान के विदेश मंत्री ने कहा है कि यदि यूरोपीय देश अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करते हैं तो ईरान भी अपनी प्रतिबद्धताएँ पूर्ण करेगा।
परमाणु अप्रसार संधि
- परमाणु अप्रसार संधि एक ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, इसके तीन प्रमुख लक्ष्य हैं: परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना, निरस्त्रीकरण को प्रोत्साहित करना तथा परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण उपयोग के अधिकार को सुनिश्चित करना।
- इस संधि पर वर्ष 1968 में हस्ताक्षर किये गए, जो वर्ष 1970 से प्रभावी है।
- वर्तमान में इस संधि में 191 देश शामिल हैं।
- भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। भारत का विचार है कि NPT संधि भेदभावपूर्ण है अतः इसमें शामिल होना उचित नहीं है।
- भारत का तर्क है कि यह संधि सिर्फ पाँच शक्तियों (अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्राँस) को परमाणु क्षमता का एकाधिकार प्रदान करती है तथा अन्य देश जो परमाणु शक्ति संपन्न नहीं हैं सिर्फ उन्हीं पर लागू होती है।
प्रभाव:
- ईरान के इस समझौते से बाहर निकलने से मध्य पूर्व में शक्ति का संतुलन समाप्त हो जाएगा और ईरान द्वारा परमाणु कार्यक्रम के प्रसार से सऊदी अरब, इज़रायल तथा ईरान के मध्य युद्ध की स्थिति निर्मित हो सकती है।
- खाड़ी क्षेत्र में उत्पन्न तनाव क्षेत्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से खतरनाक तो है ही, ऊर्जा सुरक्षा को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
- कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि से भारत के बजट और चालू खाता घाटे पर नकारात्मक असर पडे़गा।
- इसके साथ ही अफगानिस्तान तक पहुँचने के लिये भारत ईरान में चाबहार बंदरगाह विकसित कर रहा है। ऐसे में इस क्षेत्र में अशांति का माहौल भारत के हितों को प्रभावित कर सकता है।