ईरान परमाणु समझौता वार्ता | 08 Aug 2022
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त व्यापक कार्ययोजना, प्रतिबंध अधिनियम (CAATSA), अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के माध्यम से अमेरिका के विरोधियों का मुकाबला मेन्स के लिये:संयुक्त व्यापक कार्ययोजना और ईरान के साथ भारत के संबंधों को पुनर्जीवित करने के लिये इसका महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वर्ष 2015 के परमाणु समझौते को पुनः स्थापित करने हेतु वियना में ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर वार्ता का नया दौर शुरू हुआ, जिसे संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (JCPOA) के रूप में भी जाना जाता है।
- ईरान सहित विभिन्न देशों के अधिकारी मार्च, 2022 के बाद पहली बार बैठक कर रहे हैं।
ईरान परमाणु समझौता:
- परिचय:
- संयुक्त व्यापक कार्ययोजना का उद्देश्य प्रतिबंधों को धीरे-धीर हटाने के बदले में ईरान के परमाणु कार्यक्रम की नागरिक प्रकृति की गारंटी देना है।
- ईरान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों- अमेरिका, रूस, फ्राँस, चीन और यूनाइटेड किंगडम के साथ-साथ जर्मनी एवं यूरोपीय संघ के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- समझौते के तहत ईरान परमाणु हथियारों के लिये अपकेंद्रित्र, समृद्ध यूरेनियम और भारी जल सभी प्रमुख घटकों के अपने भंडार में महत्त्वपूर्ण कटौती करने पर सहमत हुआ।
- ईरान प्रोटोकॉल को लागू करने के लिये भी सहमत हुआ कि वह अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के निरीक्षकों को अपने परमाणु स्थलों तक पहुँचने की अनुमति देगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु हथियार विकसित नहीं कर रहा है।
- मुद्दे:
- पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान वर्ष 2018 में संयुक्त राज्य अमेरिका की एकतरफा दवाब और अमेरिकी प्रतिबंधों को फिर से लागू करने के कारण ईरान अपने दायित्वों से पीछे हट गया।
- ईरान ने बाद में JCPOA की यूरेनियम संवर्द्धन दर 3.67% को पार कर लिया, जो वर्ष 2021 की शुरुआत में बढ़कर 20% हो गई।
- इसके बाद ह एक अभूतपूर्व वृद्धि के साथ 60% सीमा को पार कर लिया तथा बम बनाने के लिये आवश्यक 90 प्रतिशत के करीब पहुँच गया।
- विरोधी देश:
- मध्य-पूर्व में अमेरिका के सबसे करीबी सहयोगी इज़रायल ने इस संधि को दृढ़ता से खारिज़ कर दिया तथा ईरान के सबसे बड़े क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी सऊदी अरब जैसे अन्य देशों ने शिकायत की कि वे वार्ता में शामिल नहीं थे, हालाँकि ईरान के परमाणु कार्यक्रम ने इस क्षेत्र के हर देश के लिये सुरक्षा जोखिम पैदा किया।
भारत के लिये JCPOA का महत्त्व:
- क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा:
- ईरान पर लगे प्रतिबंधों के हटने से चाबहार, बंदर अब्बास बंदरगाह और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी से संबंधित अन्य योजनाओं में भारत के हितों का संरक्षण किया जा सकेगा।
- यह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में चीनी उपस्थिति को बेअसर करने में भारत की मदद करेगा।
- चाबहार के अलावा ईरान से होकर गुज़रने वाले ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण पारगमन गलियारे’(INSTC) से भारत के हितों को भी बढ़ावा मिल सकता है। गौरतलब है कि INSTC के माध्यम से पाँच मध्य एशियाई देशों के साथ कनेक्टिविटी में सुधार होगा।
- ऊर्जा सुरक्षा:
- अमेरिका की आपत्तियों और CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) के दबाव के कारण भारत को ईरान से तेल के आयात को शून्य करना है।
- अमेरिका और ईरान के बीच संबंधों की बहाली से भारत को ईरान से सस्ते तेल की खरीद करने तथा अपनी ऊर्जा सुरक्षा को समर्थन प्रदान करने में सहायता मिलेगी।
आगे की राह
- अमेरिका को न केवल ईरान के परमाणु कार्यक्रम बल्कि क्षेत्र में उसके बढ़ते शत्रुतापूर्ण व्यवहार पर भी ध्यान देना होगा। उसे नए बहुध्रुवीय विश्व की वास्तविकता को भी ध्यान में रखना होगा, जिसमें अब उसके एकतरफा नेतृत्त्व की गारंटी नहीं है।
- ईरान को मध्य-पूर्व में तेज़ी से बदलते परिदृश्य पर विचार करना होगा, यह देखते हुए कि हाल के वर्षों में इज़रायल ने कई मध्य-पूर्वी अरब देशों के साथ अपने संबंधों को पुनर्गठित किया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन 'खाड़ी सहयोग परिषद' का सदस्य नहीं है? (2016) (a) ईरान उत्तर:(a) व्याख्या:
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