वित्तीय समावेशन और राजकोषीय प्रावधान के बीच अंतर्संबंध | 15 Feb 2018
चर्चा में क्यों?
माइक्रोसेव और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा 'स्टेट ऑफ द एजेंट नेटवर्क, इंडिया 2017' नामक रिपोर्ट में वित्तीय समावेशन और राजकोषीय प्रावधान के बारे में बात की गई है। मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने उपरोक्त रिपोर्ट की प्रस्तुति के दौरान कहा कि वित्तीय प्रावधान और वित्तीय समावेशन की वास्तविक प्राप्ति के बीच की खाई को पाटने की जरूरत है और वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में काम के अगले चरण में बैंकिंग संवाददाताओं पर ध्यान देना चाहिये।
"सरकार ने सब्सिडी को कम करके और ज़रूरी वस्तुएँ एवं सेवाएँ मुहैया कराकर आवश्यक निजी वस्तुएँ एवं सेवाएँ उपलब्ध कराने की कोशिश की है ... यह राजकोषीय प्रावधान को सार्थक रूप में परिवर्तित करने की ओर पहला कदम है"
माइक्रोसेव रिपोर्ट
- 2017 की दूसरी छमाही में आई माइक्रोसेव रिपोर्ट, जिसमें देशभर के 3,048 व्यापार संवाददाता शामिल हैं।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, बैंकिंग सेवाओं और सरकार से लोगों को भुगतान के कारण लेन-देन और तत्पश्चात, राजस्व और मुनाफे में वृद्धि हुई है।
- हालाँकि, इस बात पर प्रकाश डाला गया कि बैंकिंग एजेंटों की भर्ती यह सुझाव देते हुए धीमी हो गई है कि प्रदाता तेजी से आगे बढ़ने के लिये वरीयता में मौजूदा संचालन को बनाए रखने या विकसित करने के लिये प्रयासरत हैं।
- रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले एक साल में लगभग 22 प्रतिशत बैंकिंग एजेंटों को धोखाधड़ी का सामना करना पड़ा था, जो 2015 के 2 प्रतिशत की तुलना में तेज़ी से सामने आया था।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि, “धोखाधड़ी में बढ़ोतरी सीधे खाते से संबंधित लेन-देन में कई गुना वृद्धि से जुड़ी हो सकती है।”
- रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में बैंकिंग एजेंट के पॉइंट से "कैश इन, कैश आउट" लेन-देन की मात्रा में 200 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion)
- वित्तीय समावेशन का मतलब समाज के पिछड़े एवं कम आय वाले लोगों को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करना है।
- साथ ही ये सेवाएँ उन लोगों को वहन करने योग्य मूल्य पर मिलनी चाहिये।
- कुछ प्रमुख वित्तीय सेवाएँ इस प्रकार हैं - ऋण, भुगतान और धनप्रेषण सुविधाएँ और मुख्यधारा के संस्थागत खिलाड़ियों के लिये उचित और पारदर्शी ढंग से वहनीय लागत पर बीमा सेवा।
- ‘वित्तीय समावेशन’ की चर्चा 2000 के दशक के बाद से ही महत्त्वपूर्ण स्थान पाने लगी है। आजकल संसार के अधिकांश विकासशील देशों के केन्द्रीय बैंकों के मुख्य लक्ष्यों में वित्तीय समावेशन भी शामिल हो गया है।
भारत में वित्तीय समावेशन
- भारत की आज़ादी के साठ साल बाद भी केवल चालीस प्रतिशत भारतीयों के बैंकों में बचत खाते हैं और 6,50,000 गाँवों में से सिर्फ 6 प्रतिशत में बैंक शाखाएँ हैं।
- रिज़र्व बैंक के तत्वावधान में विभिन्न बैंकों द्वारा चलाई जा रही वित्तीय समावेशन योजनाओं के दायरे में आने वाले गाँवों की संख्या मार्च 2013 को समाप्त हुए वित्त वर्ष में 2,68,454 तक जा पहुँची, जबकि पिछले वर्ष में यह आँकड़ा 1,81,753 था।
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस तरफ कई कदम उठाए हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
⇒ भारत में मोबाइल बैंकिंग का विस्तार
⇒ बैंकिंग कॉरस्पॉण्डेंट (बीसी) योजना
⇒ प्रधानमंत्री जन धन योजना
⇒ प्रधानमंत्री मुद्रा योजना
⇒ वरिष्ठ पेंशन बीमा योजना, इत्यादि