जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट शटडाउन | 12 May 2020
प्रीलिम्स के लियेअनुराधा भसीन बनाम भारत सरकार वाद मेन्स के लियेइंटरनेट शटडाउन से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
नवगठित जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में 4G इंटरनेट सेवाओं की बहाली की अपील को खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि क्षेत्र विशिष्ट की ‘विशेष परिस्थितियों’ के मद्देनज़र आवश्यक है कि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं’ और ‘मानवाधिकारों’ के मध्य यथोचित संतुलन स्थापित किया जाए।
प्रमुख बिंदु
- सर्वोच्च न्यायालय ने रेखांकित किया कि ‘विदेशी ताकतें सीमाओं पर घुसपैठ करने और राष्ट्र की अखंडता को अस्थिर करने की पूरी कोशिश कर रही हैं, जिसके कारण मानवाधिकारों और राष्ट्रीय सुरक्षा के मध्य संतुलन स्थापित करना आवश्यक है।’
- इसी के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को इस संबंध में सभी मुद्दों की जाँच करने के लिये एक ‘विशेष समिति’ का गठन करने का भी आदेश दिया है।
पृष्ठभूमि
- उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर के कई संस्थानों ने प्रदेश में 4G इंटरनेट के अभाव में प्रभावी ढंग से कार्य करने में आ रही समस्याओं के मद्देनज़र न्यायालय में याचिका दायर की थी।
- एक याचिकाकर्त्ता ‘फाउंडेशन ऑफ मीडिया प्रोफेशनल्स’ के अनुसार, डॉक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों और मीडियाकर्मियों के लिये 4G इंटरनेट स्पीड के अभाव में सही ढंग से कार्य करना अपेक्षाकृत काफी मुश्किल हो रहा है।
- याचिकाकर्त्ता के अनुसार, जब इस संबंध में याचिका दायर की गई थी, तो प्रदेश में कोरोनावायरस (COVID-19) संक्रमण के मात्र 33 मामले थे, किंतु अब COVID-19 संक्रमण के मामले 700 से भी पार जा चुके हैं।
- ‘फाउंडेशन ऑफ मीडिया प्रोफेशनल्स’ के अनुसार, COVID-19 से संबंधित नवीनतम अपडेट प्राप्त करने और रोगियों को ऑनलाइन परामर्श देने में उच्च स्पीड इंटरनेट की आवश्यकता होती है, किंतु 4G इंटरनेट के अभाव में ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है।
- एक अन्य याचिकाकर्त्ता के रूप में ‘J&K प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन’ ने कहा कि प्रदेश में 4G इंटरनेट पर प्रतिबंध के कारण बच्चों की ऑनलाइन शिक्षा काफी हद तक प्रभावित हो रही है।
- याचिकाकर्त्ताओं ने कहा कि इस प्रकार के प्रतिबंधों से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुराधा भसीन बनाम भारत सरकार मामले में दिये गए तर्कशीलता और आनुपातिकता के सिद्धांतों का उल्लंघन हो रहा है।
अनुराधा भसीन बनाम भारत सरकार
- उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने बीते वर्ष अगस्त माह में अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था और इसी के साथ राज्य का विभाजन दो केंद्रशासित क्षेत्रों- जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के रूप में कर दिया गया था।
- इसके पश्चात् जम्मू-कश्मीर में तकरीबन 5 महीनों तक इंटरनेट ब्लैक आउट देखा गया अर्थात् इस अवधि में जम्मू-कश्मीर के नागरिकों की इंटरनेट तक पहुँच नहीं थी।
- अनुच्छेद 370 की समाप्ति के तकरीबन 5 महीने बाद अनुराधा भसीन बनाम भारत सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के आधार पर मोबाइल उपयोगकर्त्ताओं के लिये 2G इंटरनेट को आंशिक रूप से बहाल कर दिया गया।
- इस मामले की सुनवाई में न्यायालय ने कहा कि किसी भी क्षेत्र में इंटरनेट के अनिश्चितकालीन निलंबन ‘की अनुमति नहीं है और इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाते समय अनुच्छेद 19(2) के तहत आनुपातिकता के सिद्धांतों का पालन किया जाना आवश्यक है।
विशेष समिति का गठन
- जस्टिस एन. वी. रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बी. आर. गवई की न्यायपीठ ने केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में एक विशेष समिति के गठन का आदेश दिया, जो कि जम्मू-कश्मीर में 2G मोबाइल इंटरनेट के प्रतिबंध के विस्तार की जाँच करेगी।
- उल्लेखनीय है कि इस समिति में संचार विभाग के सचिव और जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव भी शामिल होंगे।
- न्यायालय ने समिति से कहा कि वह याचिकाकर्त्ताओं और उत्तरदाताओं द्वारा प्रस्तुत किये गए विभिन्न तर्कों और उपलब्ध कराई गई विभिन्न सामग्रियों की जाँच करे।
- इसके अतिरिक्त समिति को याचिकाकर्त्ताओं द्वारा सुझाए गए वैकल्पिक उपायों की समीक्षा करने का कार्य भी सौंपा गया है।
- उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्त्ताओं ने सुझाव दिया था कि उन क्षेत्रों में, जहाँ आवश्यक है, इंटरनेट पर प्रतिबंधों को सीमित कर दिया जाए और कुछ क्षेत्रों में परीक्षण के आधार पर उच्च स्पीड इंटरनेट (जैसे 3G और 4G) की अनुमति दी जाए।