अंतर्राष्ट्रीय व्यापार तनाव: एशिया के लिये चिंता का विषय | 24 May 2018
संदर्भ
वर्तमान वैश्विक व्यापार परिदृश्य में आई अनिश्चितता उन एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के लिये अच्छी नहीं मानी जा रही है, जो निरंतर विकास के साधन के रूप में अंतरर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश पर निर्भर हैं।
प्रमुख बिंदु
- वर्ष 2002 और 2017 के बीच, एशिया में आर्थिक विकास वार्षिक रूप से लगभग 6% था, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से आगे बढ़ा रहा था और जिसने औसत स्तर पर लगभग 4% का विस्तार किया था।
- परिणामस्वरूप वर्ष 2002 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में एशिया का हिस्सा 25% से बढ़कर 2017 में 35% हो गया था।
- चीन और भारत इस क्षेत्र की गतिशीलता के महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता हैं, जबकि इंडोनेशिया और शेष दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों ने भी 15 वर्ष की अवधि के दौरान आर्थिक क्षेत्र में तेजी से वृद्धि की है।
- इस क्षेत्र द्वारा न केवल छोटे हिस्से को प्रभावित किया गया है, बल्कि वैश्विक व्यापार और निवेश के अवसरों को भी संचालित किया गया है।
- वास्तव में, 2002 में वैश्विक निर्यात में एशिया का हिस्सा 29% से बढ़कर वर्ष 2017 में 38% हो गया है, जबकि वैश्विक आयात का हिस्सा इस अवधि के दौरान 22% से 31% तक बढ़ गया है।
- ध्यातव्य है कि वैश्विक वित्तीय संकट से पहले, वर्ष 2002 और 2008 के बीच एशिया में व्यापार मूल्य (मूल्य शर्तों में) 17.5% की औसत से बढ़ गया था ।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के विश्व आर्थिक आउटलुक (अप्रैल 2018) के सबसे हालिया आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2016 में एशिया के व्यापार में कमी आई है, लेकिन कुछ हद तक 2017 में व्यापार पुनर्जीवित हुआ है।
- हालाँकि, यह विकास दर पूर्व आर्थिक संकट के औसत से काफी कम है।
- अतः अमेरिका और चीन द्वारा अपनाए जाने वाले टिट-फॉर-टैट टैरिफ के खतरों को देखते हुए एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को नियम-आधारित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के क्रमिक क्षरण के बारे में चिंतित होना चाहिए।
- डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन द्वारा 1974 के व्यापार अधिनियम की धारा 301 के तहत मुख्य रूप से एयरोनॉटिकल, ऊर्जा और प्रौद्योगिकी केंद्रित क्षेत्रों पर 60 अरब डॉलर के चीनी आयात पर टैरिफ लगाए जाने की घोषणा की गई है।
- गौरतलब है कि अमेरिका द्वारा यह टैरिफ चीन और उसके अन्य व्यापारिक भागीदारों पर वाशिंग मशीन, सौर पैनल, स्टील और एल्यूमीनियम जैसे आयातों पर लगाए गए हैं।
- बदले में, चीन ने भी अमेरिका से 3 बिलियन अमरीकी डॉलर के आयातित सामानों के प्रतिशोधात्मक टैरिफ की धमकी दी है, जो 90% खाद्य उत्पादों और शेष स्टील ट्यूब और एल्यूमीनियम उत्पादों से संबंधित हैं।
व्यापार युद्ध
- यूएस-चीन ने समग्र वैश्विक व्यापार तनाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- चीन द्वारा निरंतर हस्तक्षेपवादी औद्योगिक नीतियाँ अपनाकर सरकारी वित्त पोषण से राष्ट्रीय चैंपियन बनाने और कोर टेक्नोलॉजीज को सुरक्षित करने तथा स्वदेशी विशेषज्ञता विकसित करने की अपनी व्यापारिक रणनीति की ओर ध्यान दिया जा रहा है।
- इन सबके के बावजूद यूएस ट्रेजरी मानदंडों के आधार पर या वास्तविक मुद्रा मूल्य के संदर्भ में चीन को मुद्रा मैनिप्लुलेटर नहीं माना जा सकता है।
- यह "मेड इन चाइना 2025" (जर्मनी की "उद्योग 4.0 योजना" से प्रेरित) का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य 10 घरेलू तकनीकी विनिर्माण उद्योगों में विश्व स्तरीय प्रभुत्व विकसित करना है।
- इस संदर्भ में, आलोचकों ने तर्क दिया है कि इससे चीन कभी-कभी बौद्धिक संपदा अधिकारों (टीआरआईपी) तथा व्यापार संबंधित पहलुओं और निवेश उपायों (टीआरआईएम) से संबंधित विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के समझौते का सम्मान करने में असफल रहा है।
- आलोचकों ने तर्क दिया है कि विश्व व्यापार संगठन अपने अद्वितीय आर्थिक ढाँचे के साथ चीन द्वारा उठाए गए अद्वितीय चुनौतियों से निपटने हेतु तैयार है।
एशिया पर प्रभाव
- वैश्विक व्यापार परिदृश्य अतीत में बहुत कम उत्साहजनक और अधिक अनिश्चित होगा।
- यह एशियाई अर्थव्यवस्थाओं, विशेष रूप से उन लोगों के लिये अच्छा नहीं है, जो निरंतर विकास के साधन के रूप में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश पर निर्भर हैं।
- अमेरिका फर्स्ट नीति के तहत आर्थिक मंच के साथ, "निष्पक्ष व्यापार" को बढ़ावा देने के साधन के रूप में बहुपक्षीय समझौतों पर द्विपक्षीय समझौतों को वरीयता देना के बजाय एकतरफा प्रतिबंधों का उपयोग करने की इच्छा वैश्विक व्यापार नेतृत्व में एक स्पष्ट वैक्यूम है।
- एक ट्रांस-प्रशांत व्यापार युद्ध किसी पक्ष को लाभ नहीं देगा। अतः शेष एशिया के लिये यह महत्वपूर्ण है कि आपसी लाभ के अधिक अंतर-क्षेत्रीय व्यापार पहलों के साथ आगे बढ़ते हुए खुले, पारदर्शी और नियम-आधारित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के महत्त्व को बढाए।