अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस | 21 Mar 2023
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस, संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन, सुंदरबन, प्रमुख और लघु वन उत्पाद। मेन्स के लिये:भारत के लिये वनों का महत्त्व, भारत में वनों से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
मानवता और पृथ्वी के अस्तित्त्व हेतु वनों और पेड़ों के महत्त्व के विषय में जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रत्येक वर्ष 21 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस मनाया जाता है। इसे विश्व वन दिवस के रूप में भी जाना जाता है।
- वर्ष 2023 की थीम 'वन और स्वास्थ्य (Forests and Health)' है।
अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस का इतिहास:
- संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन ने वर्ष 1971 में विश्व वानिकी दिवस की स्थापना की थी, जब आधिकारिक तौर पर अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस की शुरुआत हुई थी।
- मनुष्य और पृथ्वी हेतु वनों के महत्त्व के विषय में जागरूकता बढ़ाने के लिये इस दिवस की स्थापना की गई थी।
- वर्ष 2011 में संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2011-2020 को अंतर्राष्ट्रीय वन दशक घोषित किया।
- इसका उद्देश्य सभी प्रकार के वनों के सतत् प्रबंधन, संरक्षण और विकास को बढ़ावा देना था।
- अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस की स्थापना वर्ष 2012 में की गई थी।
भारत में वनों की स्थिति:
- इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट-2021 के अनुसार, वर्ष 2019 के पिछले आकलन के बाद से देश में वन और वृक्षों के आवरण क्षेत्र में 2,261 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्ज की गई है।
- भारत का कुल वन और वृक्षावरण क्षेत्र 80.9 मिलियन हेक्टेयर था, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 24.62% था।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि 17 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का 33% से अधिक क्षेत्र वनों से आच्छादित है।
- सबसे बड़ा वन आवरण क्षेत्र मध्य प्रदेश में था, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र का स्थान था।
- अपने कुल भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में वन आवरण के मामले में शीर्ष पाँच राज्य मिज़ोरम (84.53%), अरुणाचल प्रदेश (79.33%), मेघालय (76%), मणिपुर (74.34%) एवं नगालैंड (73.90%) हैं
भारत के लिये वनों का महत्त्व:
- पारिस्थितिक तंत्र सेवाएँ: पृथ्वी पर एक-तिहाई भूमि वनों से आच्छादित है, जो जल विज्ञान चक्र को बनाए रखने, जलवायु को विनियमित करने और जैवविविधता के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- उदाहरण के लिये पश्चिमी घाट के वन दक्षिणी राज्यों के जल चक्र को विनियमित करने और मिट्टी के कटाव से रोकने में मदद करते हैं।
- जैवविविधता का केंद्र: भारत में पौधों और पशुओं की प्रजातियों की एक विस्तृत विविधता वास करती है, जिनमें से कई केवल देश के वनों में पाए जाते हैं।
- उदाहरण के लिये बंगाल की खाड़ी में सुंदरबन में मैंग्रोव वन रॉयल बंगाल टाइगर का निवास स्थल है।
- गरीबी उन्मूलनः वन गरीबी उन्मूलन के लिये भी महत्त्वपूर्ण हैं। वन 86 मिलियन से अधिक हरित रोज़गार सृजित करते हैं। ग्रह पर हर किसी का वनों से किसी-न-किसी रूप में संपर्क रहा है।
- जनजातीय समुदाय का आवास: वन आदिवासी समुदाय के आवास भी हैं। वे पारिस्थितिक और आर्थिक रूप से वन पर्यावरण का हिस्सा हैं।
- उदाहरण के लिये मध्य प्रदेश की गोंड जनजातियाँ।
- उद्योगों के लिये कच्चा माल: वन कई उद्योगों के लिये कच्चा माल प्रदान करते हैं जैसे- रेशम कीट पालन, खिलौना निर्माण, पत्तियों से प्लेट बनाना, प्लाईवुड, कागज़ और लुगदी आदि।
- वे दीर्घ एवं लघु वनोत्पाद भी प्रदान करते हैं:
- दीर्घ उत्पाद जैसे- इमारती लकड़ी, गोल लकड़ी, लुगदी-लकड़ी, लकड़ी का कोयला और जलाऊ लकड़ी
- लघु उत्पाद जैसे बाँस, मसाले, खाने योग्य फल और सब्जियाँ।
- वे दीर्घ एवं लघु वनोत्पाद भी प्रदान करते हैं:
भारत में वनों से जुड़े मुद्दे:
- जैवविविधता की हानि: वनों की कटाई और अन्य गतिविधियाँ जो वनों के साथ जैवविविधता को भी नुकसान पहुँचाती हैं, इस कारण पौधे और पशु प्रजातियाँ अपने प्राकृतिक आवास में जीवित रहने में असमर्थ होते हैं।
- यह समग्र रूप से पारिस्थितिकी तंत्र पर और साथ ही इन प्रजातियों पर निर्भर समुदायों की सांस्कृतिक प्रथाओं पर भी प्रघातक्षिप्त प्रभाव डाल सकता है।
- सिकुड़ता वन आवरण: भारत की राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार, पारिस्थितिक स्थिरता बनाए रखने के लिये वन के तहत कुल भौगोलिक क्षेत्र का आदर्श प्रतिशत कम-से-कम 33% होना चाहिये। हालाँकि यह वर्तमान में देश की केवल 24.62% भूमि को शामिल करता है जो तेज़ी से सिकुड़ रहा है।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली वन अशांति, जिसमें कीट प्रकोप, जलवायु के कारण होने वाले प्रवासन, वनाग्नि और तूफान आदि शामिल हैं,जो वन उत्पादकता में कमी एवं प्रजातियों के वितरण में बदलाव करती हैं।
- 2030 तक भारत में 45-64% वन जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के प्रभावों का अनुभव करेंगे।
- संसाधन तक पहुँच हेतु संघर्ष: अक्सर स्थानीय समुदायों के हित और व्यावसायिक हितों के बीच संघर्ष होता है, जैसे कि फार्मास्युटिकल उद्योग या लकड़ी उद्योग।
- इससे सामाजिक तनाव और यहाँ तक कि हिंसा भी हो सकती है, क्योंकि विभिन्न समूह वन संसाधनों तक पहुँचने और उनका उपयोग करने के लिये संघर्ष करते हैं।
आगे की राह
- व्यापक वन प्रबंधन: वन संरक्षण में वनों की सुरक्षा और स्थायी प्रबंधन के सभी घटक जैसे- वनाग्नि नियंत्रण उपाय, समय पर सर्वेक्षण, आदिवासियों के लिये नीतियाँ, मानव-पशु संघर्ष को कम करना और स्थायी वन्यजीव स्वास्थ्य उपाय शामिल होने चाहिये।
- समर्पित वन गलियाराः वन्यजीवों के सुरक्षित राज्यान्तरिक और अंतर-प्रादेशिक मार्ग के लिये समर्पित वन गलियारों को बनाए रखा जा सकता है और शांतिपूर्ण-सह-अस्तित्व का संदेश देते हुए किसी भी बाह्य प्रभाव से उनके पर्यावास की रक्षा की जा सकती है।
- संसाधन मानचित्रण और वन अनुकूलन: गैर-अन्वेषित वन क्षेत्रों में संभावित संसाधन मानचित्रण किया जा सकता है और वन-सघनता एवं वन स्वास्थ्य को बनाए रखते हुए इसे वैज्ञानिक प्रबंधन तथा स्थायी संसाधन निष्कर्षण के तहत लाया जा सकता है।
- वन उद्यमियों के रूप में जनजातीय समुदायों का समावेशन: वनों के व्यावसायीकरण की संरचना के लिये वन विकास निगमों (FDCS) को पुनर्जीवित करने और वन-आधारित उत्पादों की खोज, निष्कर्षण तथा वृद्धि में "वन उद्यमियों" के रूप में जनजातीय समुदायों को शामिल करने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन-सा मंत्रालय केंद्रक अभिकरण (नोडल एजेंसी) है? (2021) (a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय उत्तर: (d) प्रश्न. भारत का एक विशेष राज्य निम्नलिखित विशेषताओं से युक्त है: (2012)
निम्नलिखित राज्यों में से कौन-सा ऊपर दी गई सभी विशेषताओं से युक्त है? (a) अरुणाचल प्रदेश उत्तर: (a) प्रश्न. "भारत में आधुनिक कानून की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संविधानीकरण है।” सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022) |