लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

भारतीय राजव्यवस्था

जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग की अंतरिम रिपोर्ट

  • 07 Feb 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

परिसीमन आयोग और संबंधित संवैधानिक प्रावधान, लोकसभा, विधानसभा, सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 370

मेन्स के लिये:

भारतीय संविधान, चुनाव, वैधानिक निकाय, परिसीमन प्रक्रिया, जम्मू-कश्मीर का परिसीमन और संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अपनी अंतरिम रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर (J&K) परिसीमन आयोग ने जम्मू-कश्मीर के चुनावी मानचित्र में महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रस्ताव दिया है।

  • राज्य में परिसीमन की कवायद जून, 2021 में शुरू हुई थी।

Ladakh

जम्मू-कश्मीर निर्वाचन क्षेत्रों का पूर्व वितरण:

  • पूर्व में जम्मू-कश्मीर राज्य में 87 सदस्यीय विधानसभा थी, जिसमें जम्मू क्षेत्र में 37, कश्मीर संभाग में 46 और लद्दाख में 4 निर्वाचन क्षेत्र थे। इसके अलावा 24 सीटें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के लिये आरक्षित थीं।
  • 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को निरस्त करने के बाद इसने अपना विशेष दर्जा खो दिया और यह दो केंद्रशासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में विभाजित हो गया।

जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग की प्रमुख सिफारिशें:

  • परिचय:
    • विधानसभा क्षेत्रों में वृद्धि:
      • आयोग ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत प्रदत्त जनादेश के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में सात विधानसभा क्षेत्रों को जोड़ा।
      • अंतरिम रिपोर्ट में जम्मू प्रांत के लिये छह सीटों की वृद्धि का प्रस्ताव है जिसमें निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या को 43 करना, कश्मीर प्रांत में एक सीट की वृद्धि तथा सीटों की संख्या को 47 तक करना और दोनों क्षेत्रों को लगभग एक-दूसरे के बराबर लाना शामिल है। 
      • आयोग ने जम्मू-कश्मीर में अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से निर्धारित करने का सुझाव दिया है। इसने 28 नए निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्गठन किया है तथा 19 विधानसभा क्षेत्रों को हटा दिया है।
    • विधानसभाओं में आरक्षण:
      • आयोग ने अनुसूचित जातियों  (SCs) के हिंदुओं के लिये सात सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव किया है जो मुख्य रूप से सांबा-कठुआ-जम्मू-उधमपुर बेल्ट में निवास करती हैं और अनुसूचित जनजातियों (STs)  के लिये नौ सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव है जो जम्मू प्रांत में राजौरी-पुंछ बेल्ट में रहने वाले ज़्यादातर गैर-कश्मीरी भाषी मुसलमानों, गुर्जर और बकरवाल के लिये मददगार साबित होंगी।
    • लोकसभा की सीटों में वृद्धि: 
      • आयोग ने लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण का प्रस्ताव किया है। जम्मू-कश्मीर में पांँच संसदीय क्षेत्र हैं, जिसमें कश्मीर से तीन सीटें और जम्मू से दो सीटें शामिल हैं। 
      • इसने दक्षिण कश्मीर के तीन ज़िलों तथा पीरपंजाल घाटी के दो ज़िलों राजौरी और पुंछ को मिलाकर एक लोकसभा सीट का प्रस्ताव दिया है तथा इसका नाम अनंतनाग-राजौरी सीट होगा।
  • आलोचना:
    • कश्मीर में अधिकआबादी:
      • इस सीट के बंँटवारे की इस आधार पर आलोचना की गई कि कश्मीर प्रांत की जनसंख्या 68.88 लाख है, जबकि जम्मू प्रांत में 53.50 लाख लोग निवास करते हैं।
      • हालांँकि आयोग का तर्क है कि उसने स्थलाकृति, संचार के साधन और उपलब्ध सुविधा को ध्यान में रखकर इन सीटों का बटवारा किया है, न कि केवल जनसंख्या के आकार को।
    • पुनर्गठन असंवैधानिक:
      • यह दावा किया गया है कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 "स्पष्ट रूप से असंवैधानिक" था और इसे पहले ही सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा चुकी है।
    • विवेकाधीन प्रक्रिया: 
      • आलोचकों ने आयोग द्वारा जम्मू-कश्मीर के मामले में लागू किये गए फॉर्मूले पर भी सवाल उठाया है और आयोग की रिपोर्ट को एक मनमानी/विवेकाधीन प्रक्रिया करार दिया है, रिपोर्ट में इलाके/क्षेत्रों की आबादी को नज़रअंदाज किया गया है जो विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों की सीमाओं को पुनः परिभाषित करने हेतु एक बुनियादी मानदंड है।

परिसीमन:

  • निर्वाचन आयोग के अनुसार, किसी देश या एक विधायी निकाय वाले प्रांत में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों (विधानसभा या लोकसभा सीट) की सीमाओं को तय करने या फिर से परिभाषित करने का कार्य परिसीमन है।
  • परिसीमन अभ्यास (Delimitation Exercise) एक स्वतंत्र उच्च शक्ति वाले पैनल द्वारा किया जाता है जिसे परिसीमन आयोग के रूप में जाना जाता है, जिसके आदेशों में कानून का बल होता है और किसी भी न्यायालय द्वारा इस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
  • किसी निर्वाचन क्षेत्र के क्षेत्रफल को उसकी जनसंख्या के आकार (पिछली जनगणना) के आधार पर फिर से परिभाषित करने के लिये वर्षों से अभ्यास किया जाता रहा है।
  • एक निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं को बदलने के अलावा इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप राज्य में सीटों की संख्या में भी परिवर्तन हो सकता है।
  • संविधान के अनुसार, इसमें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिये विधानसभा सीटों का आरक्षण भी शामिल है।

उद्देश्य:

  • परिसीमन का उद्देश्य समय के साथ जनसंख्या में हुए बदलाव के बाद भी सभी नागरिकों के लिये समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है। जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का उचित विभाजन करना ताकि प्रत्येक वर्ग के नागरिकों को प्रतिनिधित्व का समान अवसर प्रदान किया जा सके।

परिसीमन का संवैधानिक आधार:

  • प्रत्येक जनगणना के बाद भारत की संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद-82 के तहत एक परिसीमन अधिनियम लागू किया जाता है।
  • अनुच्छेद 170 के तहत राज्यों को भी प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।
  • एक बार अधिनियम लागू होने के बाद केंद्र सरकार एक परिसीमन आयोग का गठन करती है।
    • परिसीमन आयोग प्रत्येक जनगणना के बाद संसद द्वारा परिसीमन अधिनियम लागू करने के बाद अनुच्छेद 82 के तहत गठित एक स्वतंत्र निकाय है।
  • हालाँकि पहला परिसीमन अभ्यास राष्ट्रपति द्वारा (निर्वाचन आयोग की मदद से) 1950-51 में किया गया था।
  • 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के आधार पर चार बार 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोगों का गठन किया गया है।
    • वर्ष 1981 और वर्ष 1991 की जनगणना के बाद परिसीमन नहीं किया गया।

परिसीमन आयोग की संरचना:

  • परिसीमन आयोग का गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है और यह भारतीय निर्वाचन आयोग के सहयोग से काम करता है।
  • संरचना:
    • सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश।
    • मुख्य चुनाव आयुक्त।
    • संबंधित राज्य चुनाव आयुक्त।

परिसीमन की आवश्यकता क्यों?

  • देश के विभिन्न भागों के साथ-साथ एक ही राज्य के भीतर विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में जनसंख्या की असमान वृद्धि।
  • साथ ही लोगों/निर्वाचकों के एक स्थान से दूसरे स्थान, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर निरंतर प्रवास के परिणामस्वरूप एक ही राज्य के भीतर भी विभिन्न आकार के चुनावी क्षेत्र हैं।

परिसीमन के मुद्दे:

  • जो राज्य जनसंख्या नियंत्रण में कम रुचि लेते हैं उन्हें संसद में अधिक संख्या में सीटें मिल सकती हैं। परिवार नियोजन को बढ़ावा देने वाले दक्षिणी राज्यों को अपनी सीटें कम होने की संभावना का सामना करना पड़ा।
  • वर्ष 2002-08 तक परिसीमन जनगणना 2001 के आधार पर की गई थी लेकिन वर्ष 1971 की जनगणना के अनुसार, विधानसभाओं और संसद में तय की गई सीटों की कुल संख्या में कोई बदलाव नहीं किया गया था।
  • संविधान ने लोकसभा एवं राज्यसभा सीटों की संख्या को क्रमशः 550 तथा 250 तक सीमित कर दिया है और बढ़ती जनसंख्या का प्रतिनिधित्व एक ही प्रतिनिधि द्वारा किया जा रहा है।

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2