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सामाजिक न्याय

किशोरों में अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता

  • 22 Nov 2019
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये 

अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता

मेन्स के लिये 

अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) द्वारा किशोरों में शारीरिक सक्रियता (Physical Activity in Adolescents) पर एक अध्ययन किया गया जिसे द लांसेट चाइल्ड एंड एडोलसेंट हेल्थ (The Lancet Child and Adolescents Health) में प्रकाशित किया गया है।   

मुख्य बिंदु:

  • यह अध्ययन वर्ष 2001-2016 के दौरान 146 देशों के 298 स्कूलों में किया गया जिसमें 11 से 17 वर्ष की आयु के लगभग 16 लाख छात्र शामिल थे। 
  • इस अध्ययन का शीर्षक ‘किशोरों में अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता का वैश्विक प्रचलन’ (Global Trends in Insufficient Physical Activity among Adolescents) है। इसमें आँकड़ों को अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता (Insufficient Physical Activity) के रूप में दर्शाया गया है। 
  • इस अध्ययन में सक्रिय रूप से खेलना, मनोरंजन तथा खेल, सक्रिय घरेलू कार्य, टहलना तथा साइकिल चलाना आदि शारीरिक गतिविधियों को शामिल किया गया है।
  • अध्ययन का सुगमता से विश्लेषण करने के लिये विश्व बैंक के आय समूहों के आधार पर देशों को निम्न आय, निम्न-मध्यम आय, उच्च-मध्यम आय तथा उच्च आय समूहों में विभाजित किया गया।   

Physical Activity

  • इस अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2016 में स्कूल में पढ़ने वाले विश्व के 80% किशोर (Adolescents) प्रतिदिन 1 घंटे का शारीरिक व्यायाम नहीं करते। इसमें 85% लड़कियाँ तथा 78% लड़के शामिल हैं।  
  • वर्ष 2001 में यह आँकड़ा वैश्विक स्तर पर लगभग 83% था जहाँ अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता लड़कों में 80% तथा लड़कियों में 85% थी।    
  • अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता में पहले स्थान पर दक्षिण कोरिया (94%) है जहाँ लड़कों में यह आँकड़ा 91% है, वहीं लड़कियों में 97% (विश्व में सर्वाधिक) है। किशोर लड़कों में अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता सर्वाधिक फिलीपींस में (93%) पाई गई। 
  • भारत के लिये यह आँकड़ा 74% रहा जिसमें 72% लड़के तथा 76% लड़कियाँ शामिल हैं। हालाँकि भारत इसमें वैश्विक औसत से कुछ ही कम है, इसके बावजूद तीन-चौथाई किशोर अभी भी पर्याप्त तौर पर शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं हैं। भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता के कारण किशोर लड़कों में यह आँकड़ा लड़कियों तुलना में कम है। 
  • वर्ष 2001 में भारत में यह आँकड़ा 76.6% था जहाँ लड़कों तथा लड़कियों के लिये यह समान रूप से 76.6% था।  
  • अमेरिका में यह आँकड़ा 64% है। इसका मुख्य कारण स्कूलों में शारीरिक शिक्षा पर विशेष ध्यान, मीडिया द्वारा खेल-कूद को बढ़ावा देना तथा स्पोर्ट्स क्लबों की लोकप्रियता आदि शामिल है। 
  • हालाँकि अध्ययन में वर्ष 2001 से 2016 के दौरान कुल वैश्विक अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता में कमी आई है। इसके बावजूद जहाँ लड़कों में यह आँकड़ा 2.5% कम हुआ है, वहीं लड़कियों के मामले में इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। 
  • वर्ष 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर किशोरों में अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता के बढ़ते प्रभाव में 15% की कमी करने का लक्ष्य रखा गया है। 
  • विश्व के चार देश- टोंगा, सामोआ, ज़ाम्बिया तथा अफ़गानिस्तान में अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता के मामले में लड़कियाँ की स्थिति लड़कों की तुलना में बेहतर थी, जबकि अमेरिका तथा आयरलैंड में लड़कियों एवं लड़कों के बीच अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता का अंतर सर्वाधिक 15% था। 

आगे की राह: 

  • शारीरिक सक्रियता में वृद्धि हेतु खेल-कूद तथा अन्य मनोरंजक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये प्रभावी नीतियों एवं कार्यक्रमों को लागू करना चाहिये।
  • खेल-कूद तथा बाहरी कार्यों में महिलाओं की हिस्सेदारी को बढ़ावा देने के लिये प्रयास करना चाहिये। महिला सशक्तीकरण के द्वारा इन लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है। 
  • स्कूलों में अनिवार्य रूप से 1 घंटे के लिये शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले क्रियाकलाप होने चाहिये जिससे बच्चों तथा किशोरों में मोटापे जैसी समस्याओं से निजात पाया जा सके।   

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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