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रिजोल्यूशन पेशेवरों का पैनल स्थापित करने की तैयारी में आईबीबीआई

  • 09 Jun 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों ?

भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI) ने योग्य रिजोल्यूशन पेशेवरों से गठित किये जाने वाले पैनल का हिस्सा बनने के लिये इओआई(expression of interest) आमंत्रित किये हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) की सभी शाखाओं के लिये इस प्रकार के पैनल का गठन किया जाएगा। देश में एनसीएलटी की 10 शाखाएँ हैं। 
  • जो भी रिजोल्यूशन पेशेवर पैनल का हिस्सा बनना चाहते हैं, उनको 15 जून तक विधिवत भरे हुए फॉर्म आईबीबीआई जमा करवाने होंगे।
  • पैनल का हिस्सा बनने के लिये एक रिजोल्यूशन पेशेवर का चयन करते समय एक स्कोरिंग प्रारूप अपनाया जाएगा। 
  • पैनल के गठन के बाद अधिनिर्णयन प्राधिकरण (NCLT) अंतरिम रिजोल्यूशन पेशेवर (IRP) के रूप में चुने जाने वाले रिजोल्यूशन पेशेवरों के नाम का चयन कर सकेगा।
  • आईबीसी नियमों के तहत गठित किये गए पैनल की वैधता अवधि छह माह होगी तथा छह माह बाद पुराने पैनल को एक नए पैनल द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया जाएगा।
  • दिलचस्प बात यह है कि वर्तमान आईबीसी विनियमन में आईआरपी पर कुछ शर्तें आरोपित की गई हैं। यथा- वह अधिनिर्णयन प्राधिकरण द्वारा आईआरपी या लिक्विडेटर के तौर नियुक्त किये जाने के पश्चात् कार्य करने से इनकार नहीं कर सकता, आईआरपी/लिक्विडेटर के रूप में कार्य करने को लेकर अपनी  अभिरुचि वापस नहीं ले सकता, पैनल की वैलिडिटी के दौरान अपने पंजीकरण को सरेंडर नहीं कर  सकता। 

क्या है ‘द इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016’ ?  

  • विदित हो कि 2016 में केंद्र सरकार ने आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम उठाते हुए एक नया दिवालियापन संहिता संबंधी विधेयक पारित किया था। 
  • गौरतलब है कि यह नया कानून 1909 के 'प्रेसीडेंसी टाउन इन्सॉल्वेंसी एक्ट’ और 'प्रोवेंशियल इन्सॉल्ववेन्सी एक्ट 1920 को रद्द करता है और कंपनी एक्ट, लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट और 'सेक्यूटाईजेशन एक्ट' समेत कई कानूनों में संशोधन करता है।
  • दरअसल, कंपनी या साझेदारी फर्म व्यवसाय में नुकसान के चलते कभी भी दिवालिया हो सकते हैं। यदि कोई आर्थिक इकाई दिवालिया होती है तो इसका मतलब यह है कि वह अपने संसाधनों के आधार पर अपने ऋणों को चुका पाने में असमर्थ है। 
  • ऐसी स्थिति में कानून में स्पष्टता न होने पर ऋणदाताओं को भी नुकसान होता है और स्वयं उस व्यक्ति या फर्म को भी तरह-तरह की मानसिक एवं अन्य प्रताड़नाओं से गुज़रना पड़ता है। देश में अभी तक दिवालियापन से संबंधित कम से कम 12 कानून थे जिनमें से कुछ तो 100 साल से भी ज़्यादा पुराने हैं।
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