भारतीय अर्थव्यवस्था
सीमापार ऋणशोधन पर दूसरी रिपोर्ट
- 23 Oct 2018
- 3 min read
चर्चा में क्यों?
कंपनी मामले के मंत्रालय द्वारा भारतीय दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 में संशोधन की संस्तुति के लिये गठित ऋणशोधन कानून समिति (Inslovency Law Committee- ILC) ने अपनी दूसरी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है।
समिति की सिफारिशें
- ILC ने सीमापार ऋणशोधन के लिये 1957 के The United Nations Commission on International Trade Law (UNCITRAL) प्रारूप कानून को लागू करने की संस्तुति की है, क्योंकि इसमें सीमापार ऋणशोधन संबंधी मुद्दे से निपटने के लिये व्यापक प्रावधान शामिल हैं।
- समिति ने घरेलू ऋणशोधन क्षमता संबंधी प्रावधानों और प्रस्तावित सीमापार ऋणशोधन से जुड़े प्रावधानों के बीच किसी प्रकार की असंगति को दूर करने के लिये भी कुछ प्रावधानों की संस्तुति की है।
UNCITRAL
- UNCITRAL प्रारूप कानून को लगभग 44 देशों में लागू किया गया है। इसलिये इसमें सीमापार ऋणशोधन से जुड़े मुद्दों से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सर्वश्रेष्ठ परंपराओं को शामिल किया गया है।
- घरेलू प्रक्रियाएँ और लोगों के हितों की रक्षा से जुड़े प्रावधान शामिल होने की वज़ह से यह लाभकारी है।
- विदेशी निवेशकों के बीच अधिक विश्वास पैदा करना, घरेलू ऋणशोधन कानून के साथ मज़बूती से जुड़ना और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये एक मज़बूत तंत्र कायम करना इसकी अन्य विशेषताओं में शामिल हैं।
- इस प्रारूप कानून में सीमापार ऋणशोधन के चार प्रमुख सिद्धांत शामिल हैं, जैसे-
1. किसी उल्लंघनकर्त्ता कर्ज़दार के विरुद्ध घरेलू ऋणशोधन प्रक्रिया में भाग लेने अथवा उसे शुरू करने के लिये विदेशी ऋणशोधन व्यवसायियों और विदेशी ऋणदाताओं तक सीधी पहुँच।
2. विदेशी प्रक्रियाओं को मान्यता और सुधार के प्रावधान।
3. घरेलू और विदेशी न्यायालयों तथा ऋणशोधन कारोबारियों के बीच सहयोग कायम करना।
4. विभिन्न देशों में दो अथवा अधिक ऋणशोधन प्रक्रियाओं के बीच समन्वय कायम करना।
भारत के लिये सीमापार ऋणशोधन फ्रेमवर्क की आवश्यकता
- दिवाला और दिवालियापन संहिता के तहत सीमापार ऋणशोधन फ्रेमवर्क की आवश्यकता इस तथ्य से उत्पन्न होती है कि कई भारतीय कंपनियों के पास वैश्विक पहचान है और कई विदेशी कंपनियों की भारत सहित कई देशों में मौजूदगी है।
निष्कर्ष
- भारत की दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 में सीमापार ऋणशोधन संबंधी खंड का समावेश एक बड़ा कदम होगा और इस प्रकार भारत का दिवालियापन कानून और अधिक परिपक्व होगा।