दिवाला और दिवालियापन (संशोधन) अध्यादेश को स्वीकृति | 24 May 2018
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा दिवाला और दिवालियापन (संशोधन) अध्यादेश को स्वीकृति प्रदान की गई है। यदि यह अध्यादेश विधेयक में परिवर्तित हो जाता है तो आम लोगों को काफी राहत मिलेगी क्योंकि अभी तक इस कानून के अंतर्गत केवल बैंक और अन्य उधारदाताओं को ही अपना बकाया वापस ले सकने का अधिकार था लेकिन आम लोगों के पास इस संबंध में कोई अधिकार नहीं था।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- इस संशोधन का प्रस्ताव दिवाला एवं दिवालियापन कानून (IBC) में एक नई धारा 29A जोड़े जाने के बाद आया है।
- IBC में यह संशोधन सरकार द्वारा इस संबंध में सिफारिशें देने के लिये गठित 14 सदस्यीय समिति की सिफारिशों पर आधारित है।
- समिति की सिफारिश के अनुसार, रियल एस्टेट डेवलपर की परियोजनाओं में मकान खरीदने वाले ग्राहकों को भी बैंकों की तरह वित्तीय कर्ज़दाता की श्रेणी में माना जाना चाहिये।
- समिति की सिफ़ारिशों में IBC कानून के तहत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को भी राहत पहुँचाने का सुझाव शामिल है।
- दिवाला एवं दिवालियापन कानून में संशोधन से संबंधित यह दूसरा अध्यादेश है। इससे पूर्व संशोधन फरवरी 2017 में किया गया था।
संशोधन का महत्त्व
- देश में लाखों लोगों द्वारा निर्माता के पास उनके पैसे फँसे होने की शिकायत के बाद इस प्रकार का संशोधन आवश्यक है। मकान न मिलने की स्थिति में भी निर्माताओं द्वारा उनकी जमा राशि लौटाई नहीं जाती।
- समिति की सिफारिशों में घर खरीदने वाले लोगों को भी बैंक की तरह निर्माता (बिल्डर) को ऋण देने वालों की श्रेणी में शामिल करना और घर खरीदने वालों को वित्तीय ऋणदाता का दर्जा देना शामिल है।
- यदि किसी रियल एस्टेट कंपनी को दिवालिया घोषित किया जाता है तो समाधान प्रक्रिया में घर खरीदने वालों को भी बराबर का भागीदार बनाया जाना चाहिये।
पृष्ठभूमि
- केंद्र सरकार ने आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम उठाते हुए एक नया दिवालियापन संहिता संबंधी विधेयक 2016 में पारित किया था।
- दिवाला एवं दिवालियापन संहिता,1909 के 'प्रेसीडेंसी टाउन इन्सॉल्वेन्सी एक्ट’ और 'प्रोवेंशियल इन्सॉल्वेन्सी एक्ट 1920’ को रद्द करती है तथा कंपनी एक्ट, लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट और 'सेक्यूटाईज़ेशन एक्ट' समेत कई कानूनों में संशोधन करती है।
- दरअसल, कंपनी या साझेदारी फर्म व्यवसाय में नुकसान के चलते कभी भी दिवालिया हो सकते हैं और यदि कोई आर्थिक इकाई दिवालिया होती है तो इसका तात्पर्य यह है कि वह अपने संसाधनों के आधार पर अपने ऋणों को चुका पाने में असमर्थ है।
- ऐसी स्थिति में कानून में स्पष्टता न होने पर ऋणदाताओं को भी नुकसान होता है और स्वयं उस व्यक्ति या फर्म को भी तरह-तरह की मानसिक एवं अन्य प्रताडऩाओं से गुज़रना पड़ता है।