शासन व्यवस्था
लोकपाल की जाँच शाखा
- 14 Sep 2024
- 16 min read
प्रिलिम्स के लिये:लोकपाल, लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम- 2013, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम- 1988, केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC), भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCAC), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC), ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल, लोक लेखा समिति (PAC), प्रवर्तन निदेशालय (ED) मेन्स के लिये:भ्रष्टाचार विरोधी फ्रेमवर्क में लोकपाल की भूमिका और महत्त्व, लोकपाल का सुदृढ़ीकरण। |
स्रोत: द प्रिंट
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लोकपाल ने लोक सेवकों द्वारा किये गए भ्रष्टाचार संबंधी अपराधों की प्रारंभिक जाँच करने के लिये एक जाँच शाखा का गठन किया है।
लोकपाल की जाँच शाखा की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- कानूनी समर्थन: लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 11 लोकपाल को एक जाँच शाखा स्थापित करने का अधिकार प्रदान करती है।
- यह शाखा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम- 1988 के अंतर्गत निर्दिष्ट लोक सेवकों और पदाधिकारियों द्वारा कथित रूप से किये गए अपराधों की प्रारंभिक जाँच करने के लिये उत्तरदायी है।
- संगठनात्मक संरचना: लोकपाल अध्यक्ष के अधीन एक जाँच निदेशक होगा। निदेशक को तीन पुलिस अधीक्षक (SP): SP (सामान्य), SP (आर्थिक और बैंकिंग) तथा SP (साइबर) द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी।
- प्रत्येक पुलिस अधीक्षक को जाँच अधिकारी और अन्य कर्मचारियों द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी।
- प्रारंभिक जाँच की समयसीमा और रिपोर्टिंग: जाँच शाखा को अपनी प्रारंभिक जाँच को अंतिम रूप देना होगा और 60 दिनों के भीतर लोकपाल को रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
- इस रिपोर्ट में लोक सेवक तथा प्रत्येक श्रेणी के लोक सेवक के लिये नामित सक्षम प्राधिकारी दोनों की प्रतिक्रिया शामिल होनी चाहिये।
नोट:
- लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में लोक सेवकों के अभियोजन के उद्देश्य से ‘अभियोजन निदेशक’ की अध्यक्षता में एक अभियोजन शाखा के गठन का भी प्रावधान है, जिसका गठन अभी तक नहीं किया गया है।
लोकपाल की जाँच शाखा की क्या आवश्यकता है?
- प्रभावी प्रारंभिक जाँच: केंद्रीय केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) लोकपाल की जाँच शाखा जैसे एक स्वतंत्र प्राधिकरण की आवश्यकता पर बल देता है, जो ऐसे आरोपों की प्रारंभिक जाँच करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- भ्रष्टाचार विरोधी जाँच में स्वतंत्रता: लोकपाल की जाँच शाखा स्वायत्त होने के कारण, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा जाँच किये गए राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में पक्षपात के आरोप जैसे मुद्दों को कम करती है।
- जाँच शाखा CVC, CBI और राज्य स्तरीय लोकायुक्त जैसी अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर काम करेगी।
- जवाबदेही और सार्वजनिक विश्वास को सुदृढ़ करना: यह द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की सिफारिशों के अनुरूप है, जिसने भ्रष्टाचार विरोधी संस्थानों को सुदृढ़ करने और विभिन्न जाँच एवं अभियोजन एजेंसियों के बीच समन्वय बढ़ाने का सुझाव दिया था।
- भ्रष्टाचार पर वैश्विक चिंताओं को दूर करना: ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल जैसे वैश्विक भ्रष्टाचार सूचकांकों ने भ्रष्टाचार से निपटने के लिये सुदृढ़ तथा स्वतंत्र संस्थानों की आवश्यकता पर लगातार प्रकाश डाला है।
- लोकपाल की जाँच शाखा को पारदर्शिता और शासन के लिये भारत की व्यवस्था को बेहतर बनाने और सुधार की अंतर्राष्ट्रीय मांगों की पूर्ति के रूप में देखा जा रहा है।
- वर्तमान भ्रष्टाचार विरोधी ढाँचे में अंतराल को भरना: भ्रष्टाचार पर लोक लेखा समिति (PAC) की वर्ष 2011 की रिपोर्ट में भारत में मौजूदा भ्रष्टाचार विरोधी ढाँचे की सीमाओं पर प्रकाश डाला गया।
- लोकपाल की जाँच शाखा, प्रशासनिक और राजनीतिक प्रभाव से परे जाँच के लिये एक विशेष तंत्र प्रदान करके इन अंतरालों को कम करती है।
लोकपाल के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- संस्थान के संदर्भ में: यह स्वतंत्र भारत में अपनी तरह का पहला संस्थान है, जो लोक सेवकों के बीच व्याप्त भ्रष्टाचार से निपटने के लिये बनाया गया है।
- इसकी स्थापना लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत इसके दायरे में आने वाले लोक सेवकों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करने के लिये की गई थी।
- लोकपाल की संरचना: लोकपाल में एक अध्यक्ष और आठ सदस्य होते हैं, जिनमें कम-से-कम 50% न्यायिक सदस्य होते हैं।
- अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और वे पाँच वर्ष की अवधि या 70 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो) पद पर बने रहते हैं।
- अध्यक्ष का वेतन और भत्ते भारत के मुख्य न्यायाधीश के समतुल्य हैं, जबकि सदस्यों को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान लाभ प्राप्त होते हैं।
- संगठनात्मक संरचना: लोकपाल दो मुख्य शाखाओं के माध्यम से कार्य करता है: प्रशासनिक शाखा और न्यायिक शाखा।
- प्रशासनिक शाखा का नेतृत्व भारत सरकार के सचिव स्तर के अधिकारी द्वारा किया जाता है।
- न्यायिक शाखा का नेतृत्व उचित स्तर के न्यायिक अधिकारी द्वारा किया जाता है।
- अधिकार क्षेत्र: लोकपाल के पास प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों, संसद सदस्यों और केंद्र सरकार के समूह A, B, C तथा D के अधिकारियों सहित लोक सेवकों की एक विस्तृत शृंखला के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करने का अधिकार है।
- इसमें संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित या संघ या राज्य सरकार द्वारा वित्तपोषित किसी भी बोर्ड, निगम, सोसायटी, ट्रस्ट या स्वायत्त निकाय के अध्यक्ष, सदस्य, अधिकारी एवं निदेशक भी शामिल हैं।
- लोकपाल की कार्यवाही: शिकायत प्राप्त होने पर लोकपाल अपनी जाँच शाखा द्वारा प्रारंभिक जाँच का आदेश दे सकता है या मामले को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) या केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) जैसी एजेंसियों को भेज सकता है।
- CVC समूह A और B के अधिकारियों के लिये लोकपाल को रिपोर्ट भेजता है, जबकि समूह C और D के लिये केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 के तहत कार्रवाई करता है।
- लोकपाल का कार्य: वे एक ‘लोकपाल’ का कार्य करते हैं और कुछ लोक सेवकों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों एवं संबंधित मामलों की जाँच करते हैं।
- लोकपाल एक अधिकारी होता है, जो व्यवसायों, सार्वजनिक संस्थाओं या अधिकारियों के विरुद्ध शिकायतों (आमतौर पर निजी नागरिकों द्वारा दर्ज कराई गई) की जाँच करता है।
लोकपाल की कार्यप्रणाली में क्या चुनौतियाँ हैं?
- सहायक अवसंरचना की स्थापना में विलंब: लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में लोकपाल के लिये अलग-अलग जाँच और अभियोजन शाखा का प्रावधान है। एक दशक बाद जाँच शाखा की स्थापना की गई है, जबकि अभियोजन शाखा का गठन अभी तक नहीं हुआ है।
- अपवर्जन खंड: लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 14 के प्रावधानों के अनुसार, राज्य सरकार के कर्मचारी तब तक इसके दायरे में नहीं आते जब तक कि उन्होंने संघ के मामलों के संबंध में कार्य नहीं किया हो।
- CBI पर शक्तियों में स्पष्टता का अभाव: हालाँकि लोकपाल के पास CBI द्वारा भेजे गए मामलों के लिये उस पर अधीक्षण का अधिकार है, लेकिन इस शक्ति की वास्तविक सीमा के विषय में अस्पष्टताएँ बनी हुई हैं, विशेष रूप से उच्च-स्तरीय सार्वजनिक अधिकारियों से जुड़ी जाँच के संबंध में।
- कर्मचारियों की कमी: लोकपाल वर्तमान में प्रमुख पदों पर रिक्तियों के साथ कार्य कर रहा है। वर्ष 2024 तक, दो सदस्य पद रिक्त रहे हैं - एक न्यायिक और एक गैर-न्यायिक। यह कमी इसके कार्यों को प्रभावी ढंग से पूरा करने की क्षमता को बाधित करती है।
- बाह्य एजेंसियों पर निर्भरता: लोकपाल जाँच के लिये मुख्यतः CBI या पुलिस जैसी बाह्य एजेंसियों पर निर्भर रहता है, जिससे इसकी स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
- कोई व्यापक निरीक्षण तंत्र नहीं: यद्यपि लोकपाल को उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार की जाँच करने का अधिकार है, परंतु लोकपाल की कार्यप्रणाली की निगरानी हेतु कोई समर्पित निरीक्षण तंत्र नहीं है।
आगे की राह
- सहायक शाखाओं के गठन में तेज़ी लाना: सरकार को जाँच निदेशक और अभियोजन निदेशक के पदों सहित रिक्तियों की शीघ्रता से भर्ती कर जाँच एवं अभियोजन शाखाओं के पूर्ण गठन को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- CBI और अन्य एजेंसियों के साथ स्पष्ट संबंध: CBI पर लोकपाल की पर्यवेक्षी शक्तियों का स्पष्ट चित्रण तथा प्रवर्तन निदेशालय (ED) और CVC के साथ समन्वय तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
- वैश्विक मानकों से सर्वोत्तम पद्धतियों को अपनाना: भारत को भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCAC) के अनुरूप सुदृढ़ व्हिसल ब्लोअर संरक्षण तंत्र वाले देशों से सर्वोत्तम पद्धतियों को अपनाना चाहिये ताकि अधिक व्यक्तियों को बिना किसी भय के भ्रष्टाचार की रिपोर्ट करने हेतु प्रोत्साहित किया जा सके।
- समितियों की सिफारिशों को लागू करना: सरकार को लोकपाल की जवाबदेही बढ़ाने, प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और इसकी परिचालन दक्षता में सुधार करने के लिये द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग जैसी समितियों द्वारा की गई सिफारिशों पर सक्रिय रूप से विचार करना चाहिये तथा उन्हें लागू करना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिये। लोकपाल की कार्यप्रणाली में क्या चुनौतियाँ हैं, इन चुनौतियों से निपटने के उपाय सुझाइए। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. 'ट्रान्स्पेरेन्सी इन्टरनेशनल' के ईमानदारी सूचकांक में, भारत काफी नीचे के पायदान पर है। संक्षेप में उन विधिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारकों पर चर्चा कीजिये, जिनके कारण भारत में सार्वजनिक नैतिकता का ह्रास हुआ है। (2016) प्रश्न. 'राष्ट्रीय लोकपाल कितना भी प्रबल क्यों न हो, सार्वजनिक मामलों में अनैतिकता की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता।' विवेचना कीजिये। (2013) |