आंतरिक - पार्टी लोकतंत्र | 06 Aug 2022
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय संविधान, ब्रिटिश संविधान, भारतीय संसद, ब्रिटिश संसद मेन्स के लिये:अन्य देशों के संविधान के साथ भारतीय संविधान की तुलना, सांसदों की शक्तियाँ और उनकी स्वतंत्रता में बाधा। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बोरिस जॉनसन (यूके के पूर्व प्रधानमंत्री) ने (ब्रिटिश कंज़रवेटिव पार्टी के नेता के रूप में उनके खिलाफ पार्टी के संसद सदस्यों द्वारा अविश्वास मत के कारण) इस्तीफा दे दिया है।
- यह भारत को पार्टी नेतृत्व के लिये जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु निर्वाचित प्रतिनिधियों को सशक्त बनाने पर गंभीरता से विचार करने का आह्वान करता है।
यूनाइटेड किंगडम में संसद सदस्य का चुनाव:
- मुख्य राजनीतिक दल का प्रतिनिधित्व करने वाला सांसद बनने के लिये उम्मीदवार को पार्टी के नामांकन अधिकारी द्वारा सांसद बनने हेतु अधिकृत होना चाहिये। इसके बाद उन्हें निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक वोट हासिल करना होगा।
- उम्मीदवार पार्टी के नेता को नामांकन प्रस्तुत नही करतें हैं, जबकि स्थानीय निर्वाचन क्षेत्र पार्टी द्वारा निर्धारित किये जाते हैं।
- यूनाइटेड किंगडम को 650 क्षेत्रों में विभाजित किया गया है जिन्हें निर्वाचन क्षेत्र कहा जाता है।
- चुनाव के दौरान निर्वाचन क्षेत्र में वोट डालने के लिये योग्य प्रत्येक व्यक्ति अपने सांसद हेतु एक उम्मीदवार का चयन करता है।
- सबसे अधिक वोट पाने वाला उम्मीदवार अगले चुनाव तक उस क्षेत्र का सांसद बन जाता है।
- यदि किसी सांसद की मृत्यु हो जाती है या सेवानिवृत्त हो जाता है, तो उस क्षेत्र हेतु एक नए सांसद के लिये उस निर्वाचन क्षेत्र में उपचुनाव होता है।
- चुनाव के दौरान निर्वाचन क्षेत्र में वोट डालने के लिये योग्य प्रत्येक व्यक्ति अपने सांसद हेतु एक उम्मीदवार का चयन करता है।
- आम चुनाव में सभी निर्वाचन क्षेत्र के लिये उम्मीदवारों की सूची से प्रत्येक क्षेत्र के लिये संसद सदस्य चुना जाता है।
- आम चुनाव हर पाँच साल में होते हैं।
भारत में संसद सदस्य का चुनाव:
भारत की संसद में दो सदन होते हैं और उनमें से प्रत्येक के लिये सदस्य चुने जाते हैं।
- लोक सभा:
- इसे लोगों का सदन भी कहा जाता है।
- प्रतिनिधि का चुनाव:
- प्रतिनिधियों के चुनाव के लिये प्रत्येक राज्य को क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है।
- प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से फर्स्ट -पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली का उपयोग करके प्रतिनिधियों का चुनाव किया जाता है; बहुमत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित किया जाता है।
- केंद्रशासित प्रदेश (लोगों के सदन का प्रत्यक्ष चुनाव) अधिनियम, 1965 द्वारा केंद्रशासित प्रदेशों से लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा किया जाता है।
- प्रतिनिधियों के चुनाव के लिये प्रत्येक राज्य को क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है।
- राज्यसभा:
- इसे राज्य परिषद भी कहा जाता है।
- प्रतिनिधि का चुनाव:
- राज्यों के प्रतिनिधि राज्य विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं।
- राज्यसभा में प्रत्येक केंद्रशासित प्रदेश के प्रतिनिधियों को अप्रत्यक्ष रूप से इस उद्देश्य के लिये विशेष रूप से गठित निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा चुना जाता है।
- केवल तीन केंद्रशासित प्रदेशों (दिल्ली, पुद्दुचेरी एवं जम्मू और कश्मीर) का राज्यसभा में प्रतिनिधित्व है (अन्य के पास पर्याप्त आबादी नहीं है)।
- राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्य वे होते हैं जिन्हें कला, साहित्य, विज्ञान और समाज सेवा में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होता है।
- तर्क यह है कि प्रतिष्ठित व्यक्तियों को चुनाव के बिना राज्यसभा में जगह दी जाए।
ब्रिटेन में एक सांसद के पास प्रधानमंत्री के खिलाफ शक्तियाँ:
- एक स्थिर सरकार चलाने के लिये प्रधानमंत्री को हर समय अपने मंत्रियों के विश्वास को बनाए रखने में सक्षम होना चाहिये।
- यदि यह भावना ज़ोर पकड़ती है कि नेता अब देश को स्वीकार्य नहीं है तो एक सुगठित तंत्र को नया नेतृत्व प्रदान करके पार्टी के चुनावी लाभ की रक्षा के लिये कार्य करता है।
- कंज़र्वेटिव सांसदों ने 1922 की समिति (जिसमें बैकबेंच सांसद शामिल हैं और अपने हितों की तलाश करते हैं) को यह व्यक्त करते हुए लिखा है कि उन्हें अपने नेता पर "अविश्वास" है।
- यदि एक संख्यात्मक या प्रतिशत सीमा (यू.के. में पार्टी के सांसदों का 15%) का उल्लंघन होता है, तो पार्टी नेता को संसदीय दल से नया जनादेश प्राप्त करने के लिये मज़बूर करने के साथ स्वचालित नेतृत्व शुरू हो जाता है।
भारत में एक सांसद के पास प्रधानमंत्री के खिलाफ शक्तियाँ :
- अविश्वास प्रस्ताव:
- अविश्वास प्रस्ताव एक संसदीय प्रस्ताव है जिसे लोकसभा में पूरे मंत्रिपरिषद के खिलाफ पेश किया जाता है, जिसमें कहा गया है कि वे अब किसी भी तरह से अपनी अपर्याप्तता या अपने दायित्वों को पूरा करने में विफलता के कारण जिम्मेदारी के पदों को संभालने के लिये उपयुक्त नहीं समझे जाते हैं। .
- लोकसभा में इसे पेश करने के लिये कोई पूर्व कारण की आवश्यकता नहीं होती है।
- लोकसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमावाली के नियम 198(1) से 198(5) तक मंत्रिपरिषद में अविश्वास का प्रस्ताव प्रस्तुत करने हेतु प्रक्रिया निर्धारित की गई है।
- भारतीय संविधान में न तो विश्वास प्रस्ताव का और न ही अविश्वास प्रस्ताव का उल्लेख है।
- हालाँकि अनुच्छेद 75 यह निर्दिष्ट करता है कि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होगी।
- अविश्वास प्रस्ताव को तभी स्वीकार किया जा सकता है जब सदन में न्यूनतम 50 सदस्य प्रस्ताव का समर्थन करते हैं।
- एक बार जब अध्यक्ष संतुष्ट हो जाता है कि प्रस्ताव क्रम में है तो सदन से पूछेगा कि क्या प्रस्ताव को स्वीकार किया जा सकता है।
- यदि प्रस्ताव सदन में पारित हो जाता है, तो सरकार कार्यालय को छोड़ने के लिये बाध्य होती है।
- सदन में अविश्वास प्रस्ताव को पारित करने के लिये बहुमत की आवश्यकता होती है।
- यदि व्यक्ति या दल मतदान से दूर रहते हैं तो उन संख्याओं को सदन की कुल संख्या से हटा कर फिर बहुमत को ध्यान में रखा जाएगा।
भारत में सांसदों की स्वतंत्रता में बाधा:
- दलबदल विरोधी कानून:
- दलबदल विरोधी कानून एक राजनीतिक दल छोड़कर दूसरे राजनीतिक दल में शामिल होने के लिये संसद या राज्य विधानमंडल सदस्यों को दंडित करता है।
- संसद ने इसे वर्ष 1985 में 52वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से दसवीं अनुसूची के रूप में संविधान में शामिल किया था। इसका उद्देश्य था सदस्यों द्वारा राजनीतिक संबद्धता बदलने की बढ़ती प्रवृत्ति पर रोक लगाना और इस प्रकार सरकारों के लिये स्थिरता लाना।
- यह किसी अन्य राजनीतिक दल में दलबदल के आधार पर निर्वाचित सदस्यों की अयोग्यता के प्रावधानों को निर्धारित करता है।
- वर्ष 1967 के आम चुनावों के बाद निर्वाचित सदस्यों द्वारा दल बदलने से कई राज्य सरकारों के पतन की प्रतिक्रिया में इस अधिनियम को लाया गया।
- हालाँकि इसमें सांसद/विधायकों के किसी समूह को किसी अन्य दल में शामिल होने (या विलय) की अनुमति प्राप्त है और वे किसी दंड से मुक्त रखे गए हैं। यह दलबदल के लिये प्रोत्साहित करने या ऐसे सदस्यों को शामिल करने वाले राजनीतिक दलों को भी दंडित नहीं करता है।
- वर्ष 1985 के अधिनियम के अनुसार, किसी राजनीतिक दल के निर्वाचित सदस्यों के एक- तिहाई सदस्यों द्वारा ‘दलबदल’ को ‘विलय’ माना जाता था।
- लेकिन 91वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 ने इस प्रावधान को बदल दिया और अब कानून की नज़र में वैधता के लिये किसी दल के कम-से-कम दो-तिहाई निर्वाचित सदस्य अन्य किसी दल में विलय के पक्ष में होने चाहिये।
- कानून के तहत अयोग्य घोषित सदस्य उसी सदन में पुनःनिर्वाचन के लिये किसी भी राजनीतिक दल की ओर से चुनाव में खड़े हो सकते हैं।
- दलबदल के आधार पर निरर्हता संबंधी प्रश्नों पर निर्णय ऐसे सदन के सभापति या अध्यक्ष को संदर्भित किया जाता है और यह ‘न्यायिक समीक्षा’ के अधीन होता है।
- हालाँकि कानून द्वारा कोई समयसीमा निर्धारित नहीं की गई है जिसके अंदर पीठासीन अधिकारी द्वारा दलबदल मामले पर निर्णय दे दिया जाना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. सरकार की संसदीय प्रणाली वह है जिसमें: (2020) (a) संसद में सभी राजनीतिक दलों का सरकार में प्रतिनिधित्व होता है। उत्तर: (b) व्याख्या:
Mains: प्रश्न. आपके विचार से संसद किस हद तक भारत में कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने में सक्षम है? (मुख्य परीक्षा 2021) |