शासन व्यवस्था
मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करने हेतु पहलें
- 03 Dec 2020
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने सीवर लाइनों और सेप्टिक टैंकों की मैनुअल सफाई की खतरनाक प्रथा को समाप्त करने और मशीनीकृत सफाई को बढ़ावा देने के लिये दो प्रमुख पहलों की घोषणा की है।
- केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा सीवर लाइनों और सेप्टिक टैंकों की मशीनीकृत सफाई को अनिवार्य बनाने के लिये कानून में संशोधन की घोषणा की गई है, वहीं आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज की शुरुआत की है।
प्रमुख बिंदु
- कानून में संशोधन: घोषणा के मुताबिक, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की राष्ट्रीय कार्ययोजना के हिस्से के रूप में ‘हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास (संशोधन) विधेयक, 2020’ को प्रस्तुत किया जाएगा।
- इस राष्ट्रीय कार्ययोजना का उद्देश्य मौजूदा सीवेज सिस्टम को आधुनिक बनाना; सेप्टिक टैंक की मशीनीकृत सफाई के लिये मैला और सेप्टेज प्रबंधन प्रणाली की स्थापना करना, मैले का परिवहन और उपचार; नगरपालिकाओं को अत्याधुनिक तकनीक प्रदान करना और मोबाइल हेल्पलाइन के साथ स्वच्छता प्रतिक्रिया इकाइयों की स्थापना करना है।
- विधेयक के प्रमुख प्रावधान
- मशीनीकृत सफाई: प्रस्तावित विधेयक में सीवर लाइनों और सेप्टिक टैंकों की मशीनीकृत सफाई को अनिवार्य करने का प्रावधान किया गया है, साथ ही विधेयक के तहत इस कार्य में शामिल कर्मियों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करने और किसी भी दुर्घटना की स्थिति में मुआवज़ा प्रदान करने की बात भी कही गई है।
- दंड: इस विधेयक में जुर्माने की राशि और कारावास की अवधि को बढ़ाकर हाथ से मैला ढोने (मैनुअल स्कैवेंजिंग) की कुप्रथा पर रोक लगाने वाले कानून को और अधिक कठोर बनाने का प्रस्ताव किया गया है।
- वर्तमान में किसी भी व्यक्ति को सीवर लाइनों और सेप्टिक टैंकों की सफाई के खतरनाक काम में बिना अनिवार्य सुरक्षा उपकरणों के शामिल करने पर पाँच वर्ष तक का कारावास या 5 लाख रुपए तक का जुर्माना अथवा दोनों सज़ा का प्रावधान है।
- कोष: विधेयक के तहत सीवर लाइनों और सेप्टिक टैंकों की मशीनीकृत सफाई के लिये आवश्यक उपकरणों की खरीद हेतु ठेकेदारों या नगरपालिकाओं को पैसा देने के बजाय सीधे श्रमिकों को धन मुहैया कराने का निर्णय लिया गया है।
- सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज
- लॉन्च: सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज का शुभारंभ 19 नवंबर, 2020 को विश्व शौचालय दिवस के अवसर पर देश भर के 243 प्रमुख शहरों में किया गया है।
- उद्देश्य: सीवरों और सेप्टिक टैंकों की मैनुअल सफाई की प्रथा को समाप्त करना और मशीनीकृत सफाई को बढ़ावा देना।
- पात्रता: राज्यों की राजधानियाँ, शहरी स्थानीय निकाय और सभी स्मार्ट सिटीज़ इस चैलेंज में हिस्सा लेने के लिये पात्र होंगे।
- पुरस्कार: शहरों को तीन उप-श्रेणियों में सम्मानित किया जाएगा। ये हैं- 10 लाख से अधिक की आबादी वाले शहर, 3 लाख से 10 लाख तक की आबादी वाले शहर और 3 लाख तक की आबादी वाले शहर। तीनों उप-श्रेणियों में सभी विजेताओं को कुल 52 लाख रुपए तक की राशि प्रदान की जाएगी।
‘मैनुअल स्कैवेंजिंग’ का अर्थ
- परिभाषा: मैनुअल स्कैवेंजिंग का आशय किसी व्यक्ति द्वारा बिना सुरक्षा उपकरणों के अपने हाथों से मानवीय अपशिष्ट (Human Excreta) की सफाई करने या ऐसे अपशिष्टों को सर पर ढोने अथवा नालियों, सीवर लाइनों और सेप्टिक टैंकों की सफाई करने की प्रथा से है।
- चिंताएँ
- राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (NCSK) के अनुसार, बीते 10 वर्षों में सीवर लाइन और सेप्टिक टैंक की सफाई करते हुए देश भर में कुल 631 लोगों की मौत हो गई।
- वर्ष 2019 में ऐसे सबसे अधिक सफाई कर्मचारियों की मौत हुई थी, जिनकी संख्या बीते पाँच वर्ष में सबसे अधिक है।
- वर्ष 2018 की तुलना में वर्ष 2019 में मैनुअल स्कैवेंजिंग के कारण होने वाली मौतों में 61 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली थी।
- सीवेज लाइन और सेप्टिक टैंक की सफाई के लिये मशीनीकृत प्रणालियों की शुरुआत के बावजूद इस प्रक्रिया में अभी भी मानवीय हस्तक्षेप जारी है।
- वर्ष 2018 में एकत्र किये गए आँकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में कुल 29,923 लोग मैनुअल स्कैवेंजिंग के कार्य में शामिल हैं, जो कि भारत के किसी भी अन्य राज्य से सबसे अधिक है।
- राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (NCSK) के अनुसार, बीते 10 वर्षों में सीवर लाइन और सेप्टिक टैंक की सफाई करते हुए देश भर में कुल 631 लोगों की मौत हो गई।
मैनुअल स्कैवेंजिंग की व्यापकता का कारण
- उदासीन मनोवृत्ति: कई अध्ययनों में राज्य सरकारों द्वारा इस कुप्रथा को समाप्त कर पाने में असफलता को स्वीकार न करना और इसमें सुधार के प्रयासों की कमी को एक बड़ी समस्या बताया है।
- आउट सोर्सिंग: कई बार स्थानीय निकाय द्वारा सीवर की सफाई का कार्य निजी ठेकेदारों को सौंप दिया जाता है। इनमें से अधिकांश निजी ठेकेदार सफाई कर्मियों की सुरक्षा और स्वच्छता का सही ढंग से ध्यान नहीं रखते हैं।
- प्रायः यह देखा जाता है कि ऐसे निजी ठेकेदारों के साथ कार्य करने वाले सफाई कर्मियों के साथ किसी भी प्रकार की दुर्घटना की स्थिति में ये ठेकेदार पीड़ित के साथ किसी भी प्रकार के संबंध से इनकार कर देते हैं।
- सामाजिक कारण: इस प्रकार की प्रथा अक्सर जाति और वर्ग से प्रेरित होती है।
- यह भारत की जाति व्यवस्था से भी जुड़ी है, जहाँ तथाकथित निचली जातियों से इस प्रकार के काम की उम्मीद की जाती है।
- कानून द्वारा मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त कर दिया गया है, हालाँकि इसके साथ जुड़े भेदभाव और जातिगत पहचान को अभी भी समाप्त किया जाना शेष है।
संबंधित पहलें
- ‘हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013’ में अस्वच्छ शौचालयों के निर्माण एवं रखरखाव तथा किसी भी व्यक्ति को मैनुअल स्कैवेंजिंग के कार्य में संलग्न करने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया गया है।
- इसके तहत नगरपालिका द्वारा हाथ से मैला ढोने वाले लोगों की पहचान और उनके पुनर्वास की व्यवस्था करने का भी उपाय किया गया है।
- वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश के माध्यम से सरकार को यह निर्देश दिया था कि वह वर्ष 1993 के बाद से मैनुअल स्कैवेंजिंग कार्य करने के दौरान मरने वाले सभी लोगों की पहचान करे और उनके परिवार को 10 लाख रुपए का मुआवज़ा प्रदान करे।
- वर्ष 1993 में भारत सरकार द्वारा ‘मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम’ लागू किया गया, जिसके माध्यम से देश में हाथ से मैला ढोने की प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया गया तथा इसे संज्ञेय अपराध मानते हुए ऐसे मामलों में एक वर्ष तक के कारावास और जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
- यह अधिनियम देश में शुष्क शौचालयों के निर्माण को भी प्रतिबंधित करता है।
- वर्ष 1989 के अत्याचार निवारण अधिनियम ने भी सफाई कर्मचारियों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण कार्य किया है, ज्ञात हो कि भारत में सफाई कर्मचारियों के रूप में कार्य करने वाले 90 प्रतिशत लोग अनुसूचित जाति (SC) से हैं।
- संविधान का अनुच्छेद 21 भारत के प्रत्येक नागरिक को गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार प्रदान करता है।
आगे की राह
- पहचान और प्रत्यक्ष हस्तक्षेप: सफाई कर्मियों को किसी भी प्रकार की सुविधा प्रदान करने से पूर्व यह आवश्यक कि उनकी सही ढंग से पहचान की जाए। सही गणना के बिना लोगों को लक्षित करना काफी मुश्किल होगा।
- स्थानीय प्रशासन को सशक्त बनाना: 15वें वित्त आयोग द्वारा स्वच्छ भारत मिशन को सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में चिह्नित किये जाने और स्मार्ट सिटीज़ तथा शहरी विकास के लिये उपलब्ध धन मैनुअल स्कैवेंजिंग की समस्या को हल करने के लिये एक मज़बूत अवसर प्रदान करता है।
- सामाजिक जागरूकता: मैनुअल स्कैवेंजिंग से जुड़े सामाजिक पहलुओं से निपटने से पहले यह स्वीकार किया जाना चाहिये कि आज भी यह कुप्रथा जाति और वर्ण व्यवस्था से जुड़ी हुई है, साथ ही इसके पीछे के कारकों को समझना भी आवश्यक है।
- सख्त कानून की आवश्यकता: यदि सरकार द्वारा किसी कानून के माध्यम से राज्य एजेंसियों के लिये मशीनीकृत उपकरण और स्वच्छता सेवाएँ प्रदान करना अनिवार्य बना दिया जाता है, तो ऐसी स्थिति में श्रमिकों के अधिकारों की अनदेखी करना और भी मुश्किल हो जाएगा।