अंतर्राष्ट्रीय संबंध
आंतरिक वायु प्रदूषण का वृक्क एवं फेफड़ों के रोगों से संबंध
- 19 Jan 2018
- 8 min read
चर्चा में क्यों?
लखनऊ और कोयंबटूर में 400 से अधिक रसोई मज़दूरों पर किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि इनमें से करीब 50% लोग फेफड़ों की कमज़ोर कार्य-प्रणाली और माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया (Microalbuminuria) से पीड़ित हैं।
प्रमुख बिंदु
- भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (CSIR-Indian Institute of Toxicology Research) के शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए अध्ययन में रसोई के परिवेश में कणीय पदार्थ (Particulate Matter) जनित प्रदूषण की जांच की गई।
- यहाँ पर PM2.5 और PM1 सूक्ष्मकणों के साथ ही वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों, कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड की भी उच्च मात्रा पाई गई।
- सूक्ष्मकण फेफड़ों के वायुकोशीय उपकला तक पहुंच सकते है या परिसंचरण तंत्र में प्रवेश कर सकते है जिससे गुर्दे (Kidney) की शिथिलता का जोखिम बढ़ सकता है।
- फेफड़ों के कई प्रकार के परीक्षणों के बाद शोधकर्त्ताओं ने पाया कि दक्षिण भारतीय श्रमिकों में फेफड़े की असामान्यताएँ अधिक थीं। आंतरिक वायु प्रदूषण (Indoor Air Pollution) के संपर्क के अलावा, नृजातीय विभिन्नता इसका कारण हो सकता है।
- हालाँकि वायु प्रदूषण मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है, किंतु यह परिसंचरण तंत्र के माध्यम से अन्य माइक्रोवेस्कुलर क्रियाओं को भी प्रभावित कर सकता है। इसलिये श्रमिकों का पहली बार माइक्रोएल्ब्यूमाइन्यूरिया के लिये परीक्षण किया गया था।
क्या है माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया?
- एल्ब्यूमिन्यूरिया का अर्थ है-पेशाब में एल्ब्यूमिन (एक प्रकार का प्रोटीन) का उपस्थित होना। इसका उपयोग गुर्दे की बीमारियों के मार्कर के रूप में किया जाता है
- माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया का मतलब है अल्प मात्रा में इस प्रोटीन का पेशाब में जाना (30 से 300 mg प्रतिदिन) और जिसे नियमित रूप से किये गए पेशाब परीक्षण से पता ही नहीं लगाया जा सकता है। इसका पता एक विशेष प्रकार के परीक्षण से होता है।
- शोधकर्ताओं ने पाया कि दोनों राज्यों के रसोई श्रमिकों में माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया के साथ ही सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर मे भी वृद्धि हुई है।
- इस अध्ययन में फेफड़े की कमज़ोर कार्य-प्रणाली और माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया के साथ इसके व्युत्क्रम संबंधों पर प्रारम्भिक जानकारी मिली है किंतु इनके बीच कोई निश्चित सम्बन्ध की स्थापना करने के लिये और अनुसंधान की आवश्यकता है।
आंतरिक वायु प्रदूषण (Indoor Air Pollution)
- इसे सिक बिल्डिंग सिंड्रोम (Sick Building Syndrome) भी कहा जाता है जिसमें किसी बड़ी इमारत में अधिवासित लोग स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करते है। यह समस्या प्राय: घर के अंदर प्रदूषित वायु के कारण होती है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, लगभग 3 बिलियन लोग खाना पकाने और अपने घरों को गर्म रखने के लिये पारंपरिक स्टोव अथवा चूल्हे में ठोस ईंधन (लकड़ी, लकड़ी का कोयला, कोयला, गोबर, फसल अपशिष्ट) का उपयोग करते हैं। इनसे घरेलू (इनडोर) वायु प्रदूषको जैसे-सूक्ष्म कणों और कार्बन मोनोऑक्साइड की सांद्रता में वृद्धि होती है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक आंतरिक वायु में उपस्थित प्रदूषक बाह्य वायु की तुलना में 1000 गुना ज़्यादा आसानी से मनुष्य के फेफड़ों में पहुँच जाते हैं और बाह्य वायु की तुलना में आंतरिक वायु में प्रदूषकों की सांद्रता ज़्यादा होती है।
- आंतरिक वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष विश्वस्तर पर मरने वालों की संख्या 4.3 मिलियन है जो कि बाह्य प्रदूषण से मरने वालों की संख्या से बहुत ज्यादा है।
- भारत में उच्च रक्तचाप के बाद आंतरिक वायु प्रदूषण ही वह कारक है जिसके कारण सर्वाधिक मौतें होती हैं।
आन्तरिक वायु प्रदूषक के स्रोत
- घरों के अंदर प्रयुक्त किये जाने वाले जैव ईंधन आधारित चूल्हे।
- बिल्डिंग व औद्योगिक इकाईयों में दहन प्रक्रिया से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइडव एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइडस (NOx) का उत्सर्जन।
- ओजोन उत्सर्जित करने वाले स्रोत - फोटोकॉपी करने वाली मशीन, वातानुकूलित स्प्रे।
- फॉरमेल्डिहॉइड के स्रोत - बिल्डिंग मेटीरियल, कागज़ छपाई उद्योग।
- रेडॉन के स्रोत - पुरानी इमारतों की नींव व दरारें।
- धूम्रपान - कैंसर कारक बेन्जो-पाइरीन, बेन्जो-एन्थ्रासीन।
प्रभाव
- एलर्जी कारकों जैसे- धूल, परागकण, लकड़ी जलाने से उत्पन्न धुए से नाक व गले में जलन, सर्दी, जुकाम व छींक जैसी स्वास्थ्य समस्या होती है।
- संक्रमण कारकों जैसे- बैक्टीरिया, वायरस आदि के कारण नाक व गले में संक्रमण, निमोनिया, साइनसाइटिस, श्वसन तंत्र में संक्रमण, ब्रोंकाइटिस जैसी समस्याएँ हो सकती है।
- रासायनिक यौगिक यथा फॉरमेल्डिहॉइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, कीटनाशक, टॉलुईन, बेन्जीन के कारण नेत्रदोष, सिरदर्द, अवसाद, क्षीण स्मृति के अलावा असमय मृत्यु भी हो सकती है।
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना
- आंतरिक वायु प्रदूषण से सर्वाधक प्रभावित होने वाले बच्चे एवं महिलाएँ इस योजना के सबसे बड़े लाभार्थी होंगे।
- यह भारत सरकार के ‘पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय’ द्वारा प्रारंभ की गई एक महत्त्वाकांक्षी सामाजिक कल्याण योजना है, जिसे मई, 2016 में उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले से प्रारंभ किया गया था।
- इसका उद्देश्य देश के 5 करोड़ बी.पी.एल. परिवारों को रसोई गैस कनेक्शन उपलब्ध कराना है, ताकि अस्वच्छ एवं अस्वास्थ्यकर रसोई ईंधन को स्वच्छ एवं दक्ष ईंधन (अर्थात् एल.पी.जी.) से विस्थापित किया जा सके।