अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-अमेरिकी संबंध
- 28 Jun 2017
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संदर्भ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन देशों की यात्रा के दौरान सोमवार को अमेरिका पहुँचे। सोमवार को प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से मुलाकात की और व्यापार-वाणिज्य से लेकर आतंकवाद सहित अनेक मुद्दों पर बातचीत की। यह यात्रा कई मायनों में सर्वाधिक सफल यात्रा मानी जा रही है। लेकिन द्विपक्षीय संबंधों के कुछ पहलुओं पर यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि नया ट्रम्प प्रशासन भारत के साथ रिश्तों को गंभीरता प्रदान करेगा या नहीं।
चर्चा के विषय
व्यापार पर फोकस
- वार्ता में ‘इंडो-यूएस सामरिक साझेदारी’ को आगे बढ़ाने के साथ-साथ व्यापार और आर्थिक संबंधों को भी नई दिशा देने पर ज़ोर दिया गया है।
- इसे हम दो साझा घोषणा-पत्रों के संदर्भ में भी समझ सकते है: वर्ष 2016 के "21वीं सदी के टिकाऊ वैश्विक साझेदार" तथा इस वर्ष के "साझेदारी के माध्यम से समृद्धि"। वर्ष 2016 का वक्तव्य जहाँ ‘आर्थिक और व्यापारिक संबंधों पर केंद्रित’ था, वहीं इस वर्ष का वक्तव्य व्यापार घाटे को संतुलित करते हुए आर्थिक संबंधों को कैसे आगे बढ़ाया जाए, पर प्रत्यक्ष रूप से आधारित है।
आतंकवाद के संबंध में
- दोनों देशों द्वारा संयुक्त वक्तव्य में पहली बार आतंकवाद पर विशेष ज़ोर दिया गया है, खासकर पाकिस्तान में अवस्थित आतंकवादी समूहों पर। विदित है कि ट्रम्प-मोदी की बैठक के कुछ ही घंटों पहले अमेरिका द्वारा हिजब-उल-मुजाहिदीन के नेता सैयद सलाहुद्दीन को विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी घोषित किया गया, जो भारत के लिये स्वागत योग्य कदम है।
- दोनों नेताओं ने पाकिस्तान से कहा है कि वह यह सुनिश्चित करे कि वह अपनी ज़मीन का इस्तेमाल अन्य देशों पर आतंकवादी हमलों के लिये नहीं करने देगा। उन्होंने पाकिस्तान से कहा कि 26/11 मुंबई, पठानकोट और पाकिस्तानी-आधारित समूहों द्वारा किये जा रहे सीमापार आतंकवादी हमले करने वालों पर उसे कठोर कार्रवाही करनी चाहिये।
सुरक्षा के संबंध में
- भारत-अमेरिका द्वारा जारी संयुक्त बयान में पिछले ओबामा शासन के दौरान किये गए “बढ़ते सामरिक अभिसरण" (Growing Strategic Convergence ) समझौते के तहत सैन्य, समुद्री और खुफिया सहयोगों को ही आगे बढ़ाये जाने का निर्णय किया गया।
- संयुक्त व्यक्तव्य में ‘भारत-प्रशांत क्षेत्र’ (जो कि हिंद महासागर और प्रशांत महासागर को शामिल करता है) के माध्यम से नेविगेशन, ओवरफ्लाइट और वाणिज्य की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना, के स्थान पर केवल नेविगेशन की स्वतंत्रता पर ही ज़्यादा ज़ोर दिया गया है।
चीन के संबंध में
- भारत द्वारा, चीन की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी परियोजना "बेल्ट एंड रोड पहल" (Belt and Road initiative) पर अमेरिका को अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा गया है, क्योंकि भारत को चीन की इस परियोजना पर देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को लेकर आपत्ति है।
उत्तर कोरिया के संबंध में
- संयुक्त बयान में उत्तर कोरिया पर भी चर्चा की गई जो शायद पहले की चर्चाओं में नहीं की जाती थी।
- किम जोंग के ‘परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम’ को ट्रम्प ने क्षेत्रीय सुरक्षा और वैश्विक शांति के लिये खतरा बताते हुए इसका तीव्र विरोध किया।
अफगानिस्तान के संबंध में
- ट्रम्प ने अफगानिस्तान में लोकतंत्र, स्थिरता, समृद्धि और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये भारतीय योगदान का स्वागत किया।
- अफगानिस्तान के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी के महत्त्व को स्वीकारते हुए दोनों नेताओं ने अफगानिस्तान के भविष्य के लिये आपस में सहयोग करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।
- अमेरिका के रक्षा सचिव ने कहा है कि अमेरिका ‘अफ-पाक नीति’ (Af-Pak policy) को ज़ल्द ही संशोधित करेगा।
जलवायु परिवर्तन के संबंध में
- हालाँकि संयुक्त बयान में ऊर्जा सहयोग पर प्रकाश डाला गया है, लेकिन अमेरिका के ‘पेरिस समझौते’ से बाहर होने के बाद अब ये आशंकाएँ नज़र आ रही है कि क्या वह जलवायु परिवर्तन के लिये भारत की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में भारत का सहयोग करेगा।
- वर्ष 2016 की बैठक में जलवायु परिवर्तन संबंधित मुद्दों को काफी तरजीह दी गई थी, जिसको ओबामा प्रशासन के दौरान जारी ‘जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा पर अमेरिका और भारत के वैश्विक नेतृत्व को बढ़ाना’ बयान के संदर्भ में देखा जा सकता है।
किन मुद्दों पर चर्चा नहीं की गई
- भारत-यू.एस. के बीच ‘असैन्य परमाणु करार’, जिसके तहत जून- 2017 तक भारत को छ: परमाणु रिएक्टर अमेरिका द्वारा प्रदान किये जाने हैं, अभी उस पर कोई प्रगति नज़र नहीं आ रही है।
- वार्ता के दौरान दक्षिण चीन सागर में चीन के कार्यों के बारे में कुछ खास चर्चा नहीं हुई।
- वर्ष 2016 के संयुक्त बयान में दोनों देशों द्वारा ज़मीन, समुद्री, वायु, अंतरिक्ष और साइबर के "डोमेन को सुरक्षित" (Secure the Domains) करने की बात कही गयी थी। हाल ही में हुई वार्ता में इस पर खास चर्चा नहीं की गई है।
- एच. 1बी (H-1B) बीज़ा के बारे में कोई चर्चा नहीं की गई।
- ‘पेरिस समझौते’ के बारे में अमेरिका द्वारा कोई खास प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई है।