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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कृषि में भारत-अमेरिका सहयोग

  • 14 Jun 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

हरित क्रांति, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), 'नोरिन -10', नॉर्मन बोरलॉग, अंतर्राष्ट्रीय मक्का और गेहूँ सुधार केंद्र या CIMMYT, अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, शीत युद्ध, गुटनिरपेक्षता, यूपी कृषि विश्वविद्यालय अधिनियम

मेन्स के लिये:

कृषि विकास में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और वैश्विक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना

चर्चा में क्यों? 

स्वतंत्र भारत की कृषि प्रगति में संयुक्त राज्य अमेरिका की ऐतिहासिक भागीदारी को देखते हुए भारत के प्रधानमंत्री की अमेरिका की आसन्न यात्रा काफी महत्त्व रखती है।

  • जैसे पूंजीगत उपकरणों और प्रौद्योगिकी की आपूर्ति के माध्यम से स्वतंत्र भारत के शुरुआती औद्योगीकरण में सोवियत संघ की भूमिका, संयुक्त राज्य अमेरिका (रॉकफेलर और फोर्ड फाउंडेशन जैसी संस्थाओं) ने कृषि विश्वविद्यालयों और हरित क्रांति की स्थापना के माध्यम से भारत के कृषि विकास में भूमिका निभाई।

भारत के कृषि विकास में अमेरिका की भूमिका:

  • विश्वविद्यालयों का विकास: 
    • गोविंद बल्लभ पंत ने अमेरिकी भूमि-अनुदान मॉडल के आधार पर उत्तराखंड के पंतनगर में पहला कृषि विश्वविद्यालय स्थापित किया।
    • यह विश्वविद्यालय शिक्षण, अनुसंधान और विस्तार सेवाओं को एकीकृत करता है, जिसका उद्देश्य किसानों को सीखने, समस्या-समाधान अनुसंधान तथा ज्ञान प्रसार के लिये एक आदर्श वातावरण प्रदान करना है।
      • विश्वविद्यालय, जिसे जी.बी. पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है, का उद्घाटन 17 नवंबर, 1960 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा किया गया था।
    • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा प्रकाशित हन्ना (Hannah's) के ब्लूप्रिंट ने भारत में आठ कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना की।
    • अंतर्राष्ट्रीय विकास के लिये अमेरिकी एजेंसी ने इन विश्वविद्यालयों को संकाय प्रशिक्षण, उपकरण और पुस्तकों की सहायता दी। प्रत्येक विश्वविद्यालय में अनुसंधान फार्म, क्षेत्रीय स्टेशन, उप-स्टेशन और बीज उत्पादन सुविधाएँ हैं।

  • हरित क्रांति के बीज:
    • हरित क्रांति (अमेरिका के नॉर्मन बोरलॉग द्वारा शुरू की गई) में अर्द्ध-बौनी किस्मों को मज़बूत तनों के साथ आनुवंशिक रूप संसोधित किया गया ताकि पौधे झुकें  या गिरें नहीं। यह उच्च उर्वरक अनुप्रयोग को "सहन" कर सकते हैं। जितना अधिक निवेश (पोषक तत्त्व और जल) किया जाता उतना ही अधिक उत्पादन (अनाज) होता था।
    • 'नॉरिन-10', एक छोटी (पारंपरिक लंबी किस्मों की 4.5-5 फीट ऊँचाई के मुकाबले केवल 2-2.5 फीट तक बढ़ी) गेहूँ की किस्म जो 25% अधिक अनाज की पैदावार देती है। नॉर्मन बोरलॉग ने मेक्सिको में उगाई जाने वाली स्प्रिंग व्हीट के साथ इनका संकरण किया।  
      • पारंपरिक गेहूँ और चावल की किस्में लंबी एवं पतली थीं। वे उर्वरकों एवं जल के उपयोग से लंबाई में बढ़े, जबकि "लॉजिंग" (झुकना या यहाँ तक कि गिरना) के कारण बालियाँ अच्छी तरह से अनाज से भरी थी।
    • नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान- IARI के वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन ने मार्च 1963 में ही भारत आए बोरलॉग से मुलाकात की।
    • बोरलॉग ने उन्हें मैक्सिकन गेहूँ की चार किस्मों के बीज दिये जिन्हें सबसे पहले IARI के परीक्षण क्षेत्रों और पंतनगर तथा लुधियाना के नए कृषि विश्वविद्यालयों में बोया गया था
    • वर्ष 1966-67 तक किसान बड़े पैमाने पर इनका उपयोग कर रहे थे और भारत अब एक आयातक नहीं, बल्कि गेहूँ के मामले में आत्मनिर्भर हो गया।
      • विडंबना यह है कि इसके पहले के गेहूँ आयात का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका से सार्वजनिक कानून 480 खाद्य सहायता योजना के माध्यम से आता था। 

अमेरिका द्वारा भारत की मदद के कारण: 

  • मेक्सिको स्थित बोरलॉग का अंतर्राष्ट्रीय मक्का और गेहूँ सुधार केंद्र अथवा CIMMYT मुख्य रूप से रॉकफेलर फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित था। रॉकफेलर फाउंडेशन ने फोर्ड फाउंडेशन के साथ फिलीपींस में अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान का भी समर्थन किया।
  • भले ही भारत ने सत्तर और अस्सी के दशक की शुरुआत में ICAR और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों की प्रणाली में निवेश के कारण एक मज़बूत स्वदेशी फसल उत्पादन कार्यक्रम बनाया था परंतु उपर्युक्त दोनों संस्थानों ने अनाज की पैदावार में उत्तरोत्तर वृद्धि करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य और "उत्पादों की बिक्री के लिये नज़दीक में ही एक बाज़ार" का विचार पहली बार फोर्ड फाउंडेशन की टीम की वर्ष 1959 की रिपोर्ट में पेश किया गया।
  • शीत युद्ध की भू-राजनीति और उस समय की अत्यधिक शक्ति प्रतिद्वंद्विता के बजाय स्थिति को बेहतर करने हेतु प्रतिस्पर्द्धा हुई, जिसमें "विश्व को भूख से लड़ने" एवं ज्ञान तथा पौधों की आनुवंशिक सामग्री के साझाकरण में मदद करना शामिल है, जिसे "वैश्विक सार्वजनिक वस्तुओं" के रूप में देखा जा रहा है। 
    • भारत ने इस लोकप्रिय धारणा के विपरीत कम-से-कम साठ के दशक तक किसी भी गुट के साथ गठबंधन नहीं किया था। इसी संदर्भ में इसने "गुट-निरपेक्षता" की रणनीति अपनाई, जिसने वर्तमान में "बहुपक्षीयता" का रूप धारण कर लिया है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रश्न. नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलॉग जिन्हें भारत में हरित क्रांति का जनक माना जाता है, किस देश से हैं? (2008)

(a) संयुक्त राज्य अमेरिका
(b) मेक्सिको
(c) ऑस्ट्रेलिया
(d) न्यूज़ीलैंड

उत्तर: (a)


प्रश्न. उपजाऊ मृदा और जल की अच्छी उपलब्धता के बावजूद भारत में हरित क्रांति ने पूर्वी क्षेत्र को वस्तुतः बाह्य-पथ क्यों कर दिया? (मुख्य परीक्षा, 2012)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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