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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

स्‍मार्ट शहरों और टिकाऊ शहरी विकास कार्यक्रम में तकनीकी सहयोग हेतु प्रयास

  • 24 Feb 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?
हाल ही में स्‍मार्ट शहरों तथा टिकाऊ शहरी विकास कार्यक्रम में तकनीकी सहयोग के लिये भारत की ओर से आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय और जर्मनी की ओर से सस्‍टेनेबेल अर्बन एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट ड्यूश गेसेलस्फाफ्ट फुर इंटरनेशनल जुसमानेर्बेरेट (Deutsche Gesellschaft für Internationale Zusammenarbeit - GIZ) के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्‍ताक्षर किये गए।

  • इसका उद्देश्य चयनित और स्मार्ट शहरों में शहरी बुनियादी सेवाओं एवं आवास की उपलब्‍धता के लिये उपयुक्‍त अवधारणाएँ विकसित करना तथा उन्‍हें समय से लागू करना है।

प्रमुख बिंदु

  • इस परियोजना में जर्मनी 80 लाख यूरो की आर्थिक मदद दे रहा है। यह परियोजना तीन वर्षों की अवधि (2018 से दिसंबर 2020 तक) जारी रहेगी।
  • सरकार के इस प्रयास से स्‍मार्ट शहरों तथा टिकाऊ शहरी विकास कार्यक्रम में तकनीकी सहयोग प्राप्त होने से एकीकृत योजना, किफायती आवास तथा बुनियादी सेवाओं की उपलब्‍धता के नज़रिये से टिकाऊ विकास में मदद मि‍लेगी।
  • साथ ही इससे स्वच्छ जल, अपशिष्ट जल और ठोस कचरा प्रबंधन पर भी विशेष ध्यान दिया जा सकेगा।
  • इसके अलावा, इसमें चयनित तीन शहरों में किफायती आवास और बुनियादी सेवाएँ उपलब्‍ध कराने के लिये स्‍थानीय स्‍तर पर नवोन्‍मेष को बढ़ावा देने तथा पायलट स्‍तर पर काम करने के संबंध में भी ध्‍यान केंद्रित किया गया है।
  • आवास और स्वच्छता के साथ-साथ ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के क्षेत्र में पिछले तकनीकी सहयोग के उपायों से प्राप्‍त अनुभवों और सीख को नई परियोजना में समाहित किया जाएगा।
  • इस सहायता के ज़रिये राष्ट्रीय शहरी मिशन कार्यक्रमों जैसे स्मार्ट शहर मिशन के तहत टिकाऊ शहरी विकास को बढ़ावा देने के उस निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करना है जिसके तहत सतत् विकास लक्ष्य के साथ जुड़ते हुए शहरों को समावेशी, सुरक्षित, अनुकूल और स्थायी बनाया जा सके।

आवास एवं टिकाऊ शहरी विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (हैबिटेट-III)

  • इक्वाडोर के क्यूटो में अक्तूबर 2016 में आयोजित ‘आ वास एवं टिकाऊ शहरी विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (हैबिटेट-III)’ में ‘नया शहरी एजेंडा’ अपनाया गया।
  • यह संयुक्त राष्ट्र हैबिटेट सम्मेलन प्रत्येक बीस वर्ष में आयोजित किया जाता है, जो इससे पहले वैंकूवर (1976) और इस्तांबूल (1996) में आयोजित किया गया था।
  • ‘नया शहरी एजेंडा’ शहरीकरण की बढ़ती चुनौतियों से निपटने के लिये एक 175 प्रतिबद्धताओं का सेट है जो 20 वर्षों के संधारणीय शहरीकरण के लिये वैश्विक दृष्टिकोण निर्धारित करता है। 

इसके प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं- 

  • सभी नागरिकों के लिये आधारभूत सेवाएँ प्रदान करना जैसे-आवास, सुरक्षित पेयजल, स्वच्छता, पौष्टिक भोजन, स्वास्थ्य एवं शिक्षा।
  • नया शहरी विकास एजेंडा सभी नागरिकों के लिये बिना भेदभाव के समान अवसर की प्राप्ति सुनिश्चित करता है। यह महिलाओं, बच्चों, वृद्धों, विकलांगों, वंचितों, नृजातीय वर्गों आदि सभी की आवश्यकताओं पर ध्यान देने का निर्देश देता है।
  • यह एजेंडा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम कर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये कार्रवाई करता है। इस संबंध में यह स्थानीय सरकारों और समाजों को पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं का अनुसरण करने का निर्देश देता है।
  • यह एजेंडा स्वच्छ ऊर्जा का प्रयोग बढ़ाने, बेहतर और अधिक हरित परिवहन व्यवस्था के विकास, संसाधनों के संधारणीय उपयोग को बढ़ावा देने के लिये प्रतिबद्धता ज़ाहिर करता है। 
  • जोखिम और आपदाओं का प्रभाव कम करने के लिये बेहतर शहरी नियोजन एवं गुणवत्तापूर्ण आधारभूत ढाँचा विकास को प्रोत्साहित करता है। 
  • इस प्रकार यह ‘नया शहरी एजेंडा’ ऐसे शहरों के निर्माण के लिये रोडमैप तैयार करता है जो पर्यावरण की रक्षा करते हुए विकास को बढ़ावा देकर सामाजिक कल्याण के केंद्र के रूप में कार्य कर सके। 

‘नए शहरी एजेंडा’ की भारत के लिये प्रासंगिकता

  • भारत भी यू.एन हैबिटेट का हस्ताक्षरकर्त्ता देश है।
  • भारत के लिये यह एजेंडा निम्न कारणों से महत्त्वपूर्ण है-
    ► भारत में शहरीकरण की वर्तमान प्रवृत्ति को देखते हुए भविष्य में शहरी आबादी में तीव्र वृद्धि की संभावना है।
    ► इससे भरतीय शहरों को भीड़-भाड़ और प्रदूषण में वृद्धि तथा आधारभूत ढाँचे पर अधिक दबाव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
    ► भारत के अधिकांश शहर अनियोजित अथवा अर्द्धनियोजित हैं जिससे उपर्युक्त समस्याओं के बढ़ने की संभावना और अधिक रहती है।
    ► इस एजेंडा के दृष्टिकोण के माध्यम से भारत के स्मार्ट सिटी, अमृत (AMRUT), ‘सबको आवास योजना’ जैसी सरकारी पहलों को एकीकृत किया जा सकता है।
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