अंतर्राष्ट्रीय संबंध
लैंसेट मेडिकल जर्नल की रिपोर्ट में भारत की स्वास्थ्य चिंताएँ
- 13 Feb 2017
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सन्दर्भ
हाल ही प्रकाशित प्रतिष्ठित लैंसेट मेडिकल जर्नल रिपोर्ट में भारत की स्वास्थ्य चिंताएँ ज़ाहिर की गई हैं। इस जर्नल में बताया गया है कि भारत में स्वास्थ्य सेवा से संबंधित सभी एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी है और यदि भारत अपने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को बेहतर बनाना चाहता है तो पहले इस क्षेत्र की सभी एजेंसियों के बीच बेहतर सामंजस्य बैठाना होगा।
जर्नल में व्यक्त चिंताएँ
- जर्नल के मुताबिक, भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या यह है कि विकास प्रक्रियाओं में जब प्राथमिकताओं के चयन की बारी आती है तो स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को भुला दिया जाता है।
- दूसरी बड़ी चिंता यह है कि स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के लिये किये जाने वाले तमाम उपाय अब तक केवल नीति-निर्माताओं की वार्ता मेज तक ही सीमित रहे हैं, ज़मीनी स्तर पर बहुत ही कम काम हुआ है।
- भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाला प्रति व्यक्ति व्यय अभी भी बहुत ही कम है, स्वास्थ्य सेवाओं में बेहतरी के कुछ पैमानों पर तो भारत अपने पड़ोसी देशों- नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका से भी पिछड़ा हुआ है।
- जर्नल में इस बात पर भी चिंता व्यक्त की गई है कि स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र का प्रभुत्व बढ़ता ही जा रहा है। स्वास्थ्य सेवाएँ महँगी होती जा रही हैं जबकि लोगों द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं पर किया जाने वाला खर्च कम हुआ है| इसका अर्थ यह हुआ कि बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं तक अभी कुछ ही लोगों की पहुँच है।
क्या हो आगे का रास्ता ?
महँगी चिकित्सा सुविधाओं की वज़ह से आम आदमी के लिये चिकित्सा सुविधा की लागत नियंत्रण से बाहर हो गई है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे परिवारों की संख्या में वृद्धि हुई है जिन्हें आवश्यक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सुविधा प्राप्त करने के लिये अपनी क्षमता से कहीं अधिक खर्च करना पड़ा फलस्वरूप वे गरीबी रेखा से नीचे आ गए। अतः सरकार को बजटीय आवंटन के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं में सार्वजनिक व्यय को बढ़ाना होगा। गौरतलब है कि आर्थिक विकास के कारण उपलब्ध राजकोषीय क्षमता में वृद्धि हुई है और इसी के अनुरूप स्वास्थ्य पर सरकार के बजट में भी बढ़ोतरी की ज़रूरत है।
निष्कर्ष
हमें बचपन से ही सिखाया जाता है कि बेहतर स्वास्थ्य ही सफल जीवन की कुंजी है। यदि किसी भी व्यक्ति को जीवन में सफल होना है तो सबसे पहले उसके शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है। व्यक्ति से इतर एक राष्ट्र पर भी यही सिद्धांत लागू होता है। किसी देश ने कितनी प्रगति की यह उसके इस बात पर निर्भर करता है कि उस देश में मानव संसाधन स्वस्थ हैं या नहीं। नागरिक जितने स्वस्थ होंगे देश विकास सूचकांक की कसौटियों पर उतना ही अच्छा प्रदर्शन करेगा। अतः लैंसेट मेडिकल जर्नल की रिपोर्ट निश्चित ही हमें हमारी स्वास्थ्य चिंताओं के प्रति आगाह करने वाली है।