भारत की नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन संबंधी चिंताएँ एवं समाधान | 21 Feb 2017
सन्दर्भ
गौरतलब है कि भारत ने वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये भारत को अपनी वर्तमान सौर ऊर्जा क्षमता में 25 प्रतिशत की वृद्धि करनी होगी। इस लक्ष्य की महत्त्वाकांक्षा का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यदि इसी अवधि के दौरान चीन, यूरोप और कैलिफ़ोर्निया के सम्मिलित नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य की बात करें तो उन्होंने अपनी वर्तमान क्षमता में 4-5 प्रतिशत वृद्धि का लक्ष्य रखा है। विदित हो कि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की अपनी चिंताएँ तो हैं ही साथ में भारत ने इस क्षेत्र में कुछ महत्त्वपूर्ण प्रगति भी की है।
सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत के प्रयास और चिंताएँ
- गौरतलब है कि भारत इस साल दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सौर ऊर्जा उत्पादक बन जाएगा। हाल ही में तमिलनाडु के कमूथी में दुनिया का सबसे बड़ा सोलर पावर पार्क बना है। मध्य प्रदेश के रीवा में इससे भी बड़ा सोलर पार्क बनाया जा रहा है। इसमें दुनिया की सबसे सस्ती सौर विद्युत (2.97 रुपए/यूनिट) के उत्पादन की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। भारत में वर्ष 2014 में ही नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने 'ग्रिड कनेक्टेड रूफटॉप एंड स्मॉल सोलर पावर प्लांट प्रोग्राम' शुरू कर दिया था।
- इस कार्यक्रम के तहत वर्ष 2022 तक कुल 175 गीगावॉट की क्षमता वाले सौर ऊर्जा प्लांट लगाने हैं। इसमें से 40 गीगावॉट बिजली रूफटॉप सोलर पीवी के जरिये हासिल करनी है। लेकिन, रूफटॉप सोलर पीवी(फोटोवोल्टेइक्स- सूर्य के प्रकास से बिजली उत्पादन) की वर्तमान गति को देखते हुए यह लक्ष्य लगभग नामुमकिन है। विश्लेषण फर्म क्रिसिल रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यदि रूफटॉप सोलर पीवी स्थापित करने की यही गति बनी रही तो वर्ष 2022 तक महज 12 से 13 गीगावॉट की उत्पादन क्षमता हासिल की जा सकेगी।
क्या हो आगे का रास्ता ?
- गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार रूफटॉप सोलर पीवी स्थापित करने की हमारी गति धीमी इसलिये है, क्योंकि हमारे पास तकनीकी जानकारी का अभाव है अतः पहले हमें तकनीक उन्नयन पर ध्यान केन्द्रित करना होगा।
- भारत में प्रत्येक राज्य की अपनी अलग-अलग सौर नीतियाँ हैं, ऐसे में रूफटॉप सोलर पीवी स्थापित करने की स्वीकृति लेने में प्रायः लंबा समय लगता है, अतः ज़ल्द से ज़ल्द राष्ट्रव्यापी एकल सौर नीति पर कार्य करना होगा।
निष्कर्ष
- गौरतलब है कि पेरिस समझौते के तहत भारत को 2030 तक अपनी 40 प्रतिशत ऊर्जा ज़रूरतों को नवीकरणीय उर्जा स्रोतों से पूरा करना होगा। ऐसे में सौर ऊर्जा का उपयोग को बढ़ावा देना ही होगा।
- वस्तुतः जलवायु परिवर्तन की मार झेल रही आज की मानव सभ्यता दिनोंदिन संसाधनों में हो रही कमी को महसूस कर रही है, ऐसे में ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों की भूमिका और भी बढ़ गई है। अतः पवन ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा मिलना चाहिये।
- यदि वर्ष 2022 तक भारत को हरित ऊर्जा का बड़ा केंद्र बनाना है तो केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्यों को भी अहम भूमिका निभानी होगी। कल्याणकारी उद्देश्यों और व्यावसायिक बाध्यताओं के मध्य इष्टतम सामंजस्य भी स्थापित करना होगा।