भारतीय अर्थव्यवस्था सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था: विश्व बैंक | 01 Aug 2019
चर्चा में क्यों?
विश्व बैंक के वर्ष 2018 के आँँकड़ों के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था 2.73 ट्रिलियन डॉलर के साथ विश्व की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, विदित हो कि वर्ष 2017 के आँँकड़ों के अनुसार भारत का स्थान छठा था।
प्रमुख बिंदु:
- वर्ष 2017 के आँँकड़ों में भारत को छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बताया गया था, लेकिन नवीनतम आँँकड़ों के अनुसार उस वर्ष भारत वास्तव में पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया था।
- वर्ष 2017 में भारत की अर्थव्यवस्था का आकार 2.65 ट्रिलियन डॉलर था, वहीं ब्रिटेन और फ्राँँस की अर्थव्यवस्था का आकार क्रमशः 2.64 ट्रिलियन डॉलर और 2.59 ट्रिलियन डॉलर था।
- भारत की अर्थव्यवस्था में वर्ष 2017 में 15.72% की तुलना में वर्ष 2018 में डॉलर के संदर्भ में मात्र 3.01% की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई।
- दूसरी ओर इसी अवधि के दौरान ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था 0.75% के संकुचन के साथ 6.81% बढ़ी और फ्राँँस की अर्थव्यवस्था 4.85% की तुलना में 7.33% बढ़ी।
- अर्थशास्त्रियों ने इस प्रकार की स्थिति के लिये डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए की अस्थिरता को ज़िम्मेदार ठहराया।
- भारत की अर्थव्यवस्था रुपए के संदर्भ में वर्ष 2017-18 की 11.3% वृद्धि की तुलना में वर्ष 2018-19 में 11.2% रह गई।
- IHS मार्किट (Markit) की हालिया रिपोर्ट ने भारत की अर्थव्यवस्था के इस वर्ष विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की संभावना व्यक्त की है। इस प्रकार भारत, ब्रिटेन से आगे निकल जाएगा।
- इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भारत की अर्थव्यवस्था वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की क्षमता के साथ जापान की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़कर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है।
- वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लिये आर्थिक सर्वेक्षण ने अनुमान लगाया है कि भारत को एक वर्ष में चालू कीमतों (Current Prices) पर 12% की वृद्धि करनी होगी। भारतीय रिज़र्व बैंक की मुद्रास्फीति की वृद्धि दर के अनुमानों को 4% मानते हुए सर्वेक्षण में कहा गया है कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये एक वर्ष में अर्थव्यवस्था की स्थिर कीमतों (Constant Prices) में 8% की वृद्धि की आवश्यकता होगी।
- स्थिर कीमतों (Constant Prices) पर भारत की अर्थव्यवस्था में वर्ष 2018-19 के दौरान 6.8% की वृद्धि देखी गई है। चालू वित्त वर्ष में स्थिर कीमतों में 7% तक की वृद्धि का अनुमान है।
विकास दर
- भारत की विकास दर वर्ष 2018-19 में 6.8% रही। वर्ष 2017-2018 के दौरान भारत की विकास दर 7.2%थी।
- वैश्विक स्तर पर विकास दर वर्ष 2017-18 के दौरान 3.8% थी, जो 2018-19 के दौरान घटकर 3.6% हो गई।
- यह वैश्विक गिरावट उभरते बाज़ार और विकासशील देशों में मंदी, अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वार, चीन की कठोर ऋण नीति और अधिकांश उन्नत देशों में मौद्रिक नीति सामान्य होने के पश्चात् आई है।
भारत की विकास दर कम होने के कारण
- भारत की विकास दर में कमी कृषि, व्यापार, होटल, परिवहन, भंडारण, लोक प्रशासन और रक्षा के क्षेत्रों में कम वृद्धि के कारण हुई।
- रबी फसल के दौरान कम फसल क्षेत्र का उपयोग हुआ, साथ ही खाद्यान्नों कीमतों में कमी आने के कारण किसानों ने कम फसल उपजाई।
- चुनाव प्रक्रिया ने भी भारत की विकास दर को प्रभावित किया।
- कृषि और उद्योग क्षेत्रों में शुरुआती तिमाहियों के बाद अंतिम तिमाहियों में वृद्धि दर कम हो गई।
- विनिर्माण क्षेत्र ऑटो क्षेत्र की मंदी के कारण प्रभावित हुआ और अंततः विनिर्माण क्षेत्र ने उद्योग क्षेत्रों को भी प्रभावित किया।
- गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के क्षेत्र में दबाव ने भी उपभोग वित्त पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। उपभोग की कमी ने विकास दर को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया।
- भारत का चालू खाता घाटा वर्ष 2017-18 में GDP के 1.9% से बढ़कर दिसंबर 2018 में 2.6% पर आ गया। चालू खाता घाटा बढ़ने का मुख्य कारण अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि थी।
- भारत का व्यापार घाटा वर्ष 2017-18 में 162.1 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 184 बिलियन डॉलर हो गया।
- बैंकिंग क्षेत्र में दोहरी बैलेंस शीट समस्या ने भी कॉर्पोरेट क्षेत्र को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया।
उपरोक्त कारणों की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर धीमी रही; लेकिन भारत की विकास दर को प्रभावित करने वाले ये कारण अस्थायी प्रकृति के हैं। इसलिये जल्द ही इन समस्याओं के निदान के बाद भारत वर्ष 2025 में 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर हो जाएगा।