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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारतीय अग्रिम मूल्य निर्धारण समझौता व्यवस्था

  • 09 Feb 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?
जनवरी 2018 में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) द्वारा पाँच एकपक्षीय और दो बहुपक्षीय मूल्य निर्धारण समझौतों पर हस्ताक्षर करना भारतीय अग्रिम मूल्य निर्धारण समझौता (Advance Pricing Agreements) व्यवस्था में हुई प्रगति को दर्शाता है।

क्या है APA?

  • APA आमतौर पर एक करदाता और कम से कम एक टैक्स प्राधिकरण के बीच ऐसा अनुबंध है, जो परस्पर संबंधित कंपनियों के बीच लेन-देन के लिये मूल्य-निर्धारण विधि को पहले से ही तय करता है।
  • भारत में APA की अवधारणा को वित्त अधिनियम 2012  के तहत प्रस्तुत किया गया था।
  • इस समझौते के तहत किसी अनिश्चितता से बचने के लिये, आर्म्स-लेंथ प्राइस (Arm’s-length Price-ALP) के सिद्धांत का प्रयोग किया जाता है।
  • यदि परस्पर संबंधित कंपनियाँ स्वंतत्र रूप से कार्य कर रही हो तब वसूल की जाने वाली कीमत आर्म्स- लेंथ प्राइस कहलाती है।

APA की आवश्यकता क्यों?

  • APA का उद्देश्य ट्रांसफर प्राइसिंग के क्षेत्र में मूल्य निर्धारण के तरीकों को निर्दिष्ट कर और अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन की कीमतें अग्रिम रूप से निर्धारित करके करदाताओं को निश्चितता प्रदान करना है।
  • दो संबंधित कंपनियों के बीच किसी भी तरह के लेन-देन के लिये मूल्य निर्धारण को ट्रांसफर प्राइसिंग कहा जाता है।
  • संबंधित कंपनी का आशय है कि किसी मूल कंपनी (Parent Company) की सब्सिडरी कंपनी या होल्डिंग कंपनी।
  • ट्रांसफर प्राइसिंग के कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियों और कर प्राधिकरणों के बीच विवाद होते हैं। भारतीय कर विभाग और वोडाफोन इंडिया के बीच चला विवाद इसी का उदाहरण है। 

इसे एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

  • उदाहरण के लिये सुज़ुकी  मोटर कॉरपोरेशन मूल कंपनी है और इसकी दो सब्सिडरी कंपनियाँ मारुति सुज़ुकी इंडिया और सुज़ुकी जापान हैं जो क्रमश: भारत और जापान में स्थापित हैं।
  • यदि किसी वर्ष मारुति सुज़ुकी इंडिया को अधिक लाभ होता है तो इसे भारत सरकार को अधिक कर देना होगा।
  • लेकिन सुज़ुकी जापान यदि भारत में स्थित मारुति से किसी उपकरण या घटक की अधिक कीमत  वसूल कर ले तो मारुति का लाभ कम हो जाएगा और कंपनी का भारत सरकार को किया जाने वाला कर भुगतान भी कम हो जाएगा। किंतु सुज़ुकी जापान का राजस्व बढ़ जाएगा।
  • समग्र रूप से देखें तो भारत की मारुति कंपनी की मालिक सुज़ुकी मोटर कॉरपोरेशन की स्थिति मज़बूत हो जाएगी लेकिन भारत सरकार को कर राजस्व में काफी नुकसान उठाना पड़ेगा।
  • इस तरह के मामलों से बचने के लिये APA के तहत दो संबंधित कंपनियों के बीच लेन-देन का मूल्य पहले ही निर्धारित कर दिया जाता है।

APA के प्रकार 

  • APAs द्विपक्षीय अथवा एकपक्षीय दोनों हो सकते हैं।
  • जब दो देशों के कर प्राधिकरणों के बीच भविष्य में होने वाले अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन की ALP तय करने के लिये अनुबंध होता है तो इसे बहुपक्षीय मूल्य निर्धारण समझौता (Bilateral Advance Pricing Agreement-BAPA) कहा जाता है।
  • जब कोई करदाता किसी देश में कर संबंधी निश्चितता के लिये केवल एक सरकारी प्राधिकरण के साथ अनुबंध करता है तो इसे एकपक्षीय मूल्य निर्धारण समझौता (Unilateral Advance Pricing Agreement-UAPA) कहा जाता है।
  • जब दो देशों के बीच कोई दोहरी कराधान परिहार संधि नहीं हो तो UAPA को प्राथमिकता दी जाती है।

भारतीय APA व्यवस्था में प्रगति 

  • जनवरी 2018 में इन समझौतों पर हस्ताक्षर करने के साथ ही CBDT द्वारा किये गए APA की कुल संख्या बढ़कर 196 हो गई है।
  • इनमें 178 UAPA और 18 BAPA शामिल हैं। चालू वित्त वर्ष में अब तक कुल मिलाकर 44 APAs (7 द्विपक्षीय और 37 एकपक्षीय) पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
  • जनवरी 2018 में दो द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए जिनमें अमेरिका के साथ हस्ताक्षरित किया गया पहला BAPA भी शामिल हैं।
  • जनवरी 2018 के दौरान हस्ताक्षरित किये गए 7 APA अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि बैंकिंग, बीमा, निवेश परामर्श, सूचना प्रौद्योगिकी, रसायन और इंजीनियरिंग से संबंधित हैं।
  • भारतीय एपीए कार्यक्रम की सराहना देश-विदेश में की जा रही है, क्योंकि यह निष्पक्ष एवं पारदर्शी ढंग से जटिल ट्रांसफर प्राइसिंग मुद्दों को सुलझाने में समर्थ है।
  • APA योजना की प्रगति गैर-विरोधात्मक कर व्यवस्था को बढ़ावा देने संबंधी सरकारी संकल्प को सुदृढ़ करती है। 

अग्रिम मूल्य निर्धारण समझौते के लाभ

  • करदाता को कर संबंधी मामलों में निश्चितता रहती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय अंतरणों में विवाद कम होते हैं।
  • सरकार के कर राजस्व में वृद्धि होती है।
  • देश को विदेशी निवेशकों के लिये एक आकर्षक गंतव्य बनाने में सहायता मिलती हैं।
  • ये समझौते करदाता और सरकार दोनों के लिये ही बाध्यकारी होते हैं। इस कारण शिकायतों और मुकदमेबाजी संबंधी लागतें कम हो जाती हैं।
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