दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के साथ व्यापार संधि समाप्त करने का आग्रह | 20 Jul 2018
चर्चा में क्यों?
सिंगापुर के विदेश मंत्री विवियन बालकृष्णन ने हाल ही में कुछ देशों द्वारा व्यापार के मुक्त प्रवाह पर दबाव डालने वाले तत्त्वों के खिलाफ भारत को चीन सहित दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों और पूर्वी एशिया में अपने सहयोगियों के साथ एक क्षेत्रीय व्यापार समझौते को समाप्त करने की सलाह दी है| पूर्वी एशियाई समूह का अनुमानित कुल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 3.8 ट्रिलियन से 4.5 ट्रिलियन डॉलर है|
प्रमुख बिंदु
- मंत्री ने भारत और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच दिल्ली वार्ता के 10वें संस्करण को संबोधित किया और नियम आधारित अंतर्राष्ट्रीय आदेश के लिये अपने देश का समर्थन व्यक्त किया तथा कहा कि व्यापार और समुद्री गतिविधि की स्वतंत्रता इस क्षेत्र के विकास को सुनिश्चित करेगी।
- दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत में ज़बरदस्त क्षमता है जिसे आगे एकीकरण के माध्यम से विस्तारित किया जा सकता है| उनका कहना था कि विशेष रूप से इस समय हमें क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) के समापन की दिशा में काम करने की आवश्यकता है और आशा है कि इस वर्ष के अंत तक ऐसा संभव हो पाएगा| इस वार्ता ने दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक ब्लॉक बनाने का अवसर प्रदान किया है।
- बालकृष्णन की यह टिप्पणी अमेरिका और चीन, यूरोपीय संघ और कनाडा के बीच चल रहे व्यापार युद्ध के बीच आई है। अमेरिकी कदम अमेरिका के पक्ष में व्यापार अधिशेष का आनंद लेने वाले देशों को दंडित करने के साथ देश के पक्ष में "निष्पक्ष व्यापार" सुनिश्चित करने के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव वादे की पृष्ठभूमि के खिलाफ है।
- आसियान समूह में शामिल देश ब्रुनेई दारुसलम, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओ पीडीआर, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम हैं। भारत ने 1992 में आसियान के साथ निकट आर्थिक और राजनीतिक संबंध बनाने के उद्देश्य से अपनी "लुक ईस्ट पॉलिसी" लॉन्च की और 1996 में समूह का मुख्य वार्ताकार बन गया।
- आसियान, भारत, दक्षिण कोरिया, चीन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और जापान ने RCEP पर 2013 में वार्ता शुरू की, जिसमें वस्तु, सेवा क्षेत्र में व्यापार, निवेश, आर्थिक और तकनीकी सहयोग, बौद्धिक संपदा, प्रतिस्पर्द्धा, विवाद निवारण, छोटे और मध्यम उद्यमों के अलावा ई-वाणिज्य शामिल है।
- कई देश चाहते हैं कि भारत 92% व्यापारिक सामानों के लिये अपना बाजार खोले| भारत केवल चीन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों के लिये व्यतिक्रम के साथ अधिकतम 85% वस्तुओं तक की बाजार पहुँच प्रदान करने के लिये तैयार है|
- भारत का मानना था कि RCEP ने "हमारे पूर्वी पड़ोसियों को आर्थिक रूप से आगे बढ़ाने के लिये एक निर्णायक अवसर प्रदान किया है| भारत को उम्मीद है कि जितनी जल्दी हो सके बातचीत को अंतिम रूप दिया जाएगा|
- भारत-प्रशांत के संबंध में भारत का दृष्टिकोण यह है कि यह क्षेत्र "एक स्वतंत्र, खुला और समावेशी क्षेत्र होना चाहिये", जो "सामान्य, नियम-आधारित आदेश" का पालन करता हो, आकार और ताकत के बावजूद "सभी के साथ समानता" हो|
नेवीगेशन और ओवर-फ्लाइट की स्वतंत्रता का समर्थन
- सिंगापुर ने नेवीगेशन और ओवर-फ्लाइट की स्वतंत्रता का एक आवश्यक अधिकार के रूप में समर्थन किया है। व्यापार और समुद्री गतिविधि की आज़ादी इस क्षेत्र के विकास को सुनिश्चित करेगी।
- एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय जल पर नौवहन (navigation) की स्वतंत्रता और ओवर-फ्लाइट के अधिकार को कम करने का प्रयास किया जाता है तो सिंगापुर इसका विरोध करेगा। एक बार जब जलयान क्षेत्रीय जल से परे चला जाता है, तो यह पूरी आजादी का आनंद लेता है|
- सिंगापुर की यह टिप्पणी महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि सिंगापुर ने 1 जून को शांगरी ला वार्ता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रस्तुत एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिये भारत की समुद्री रणनीति को प्रतिबिंबित किया था|
- क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) के साथ मिलकर कनेक्टिविटी और आवागमन की स्वतंत्रता इस क्षेत्र को बदलने की क्षमता रखती है। उम्मीद है कि 2018 के अंत तक RCEP को लेकर किसी नतीजे पर पहुँचा जा सकेगा|
- यदि कनेक्टिविटी में गतिशीलता को बनाए रखा गया और नेविगेशन की स्वतंत्रता को संरक्षित किया गया तो यह क्षेत्र दुनिया के सबसे बड़े आर्थिक ब्लॉक के रूप में उभर सकता है|
- भारत-प्रशांत के विज़न में न केवल भौतिक अंतर-कनेक्टिविटी शामिल है, बल्कि आपसी सम्मान के आधार पर विश्वास का सेतु निर्माण भी शामिल है, जो संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता, परामर्श, पारदर्शिता, व्यवहार्यता तथा स्थायित्व के लिये उचित सम्मान देता है।