इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत पर RCEP समझौते के लिये तैयार होने का दबाव

  • 20 Jul 2018
  • 3 min read

संदर्भ

भारत को महत्त्वाकांक्षी क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) हेतु सहमत होने के लिये सिंगापुर और इंडोनेशिया जैसे देशों द्वारा राजनयिक दबाव बनाया गया है। उल्लेखनीय है कि भारत क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) पर वार्ता को आगे ले जाने के लिये पूरी तरह प्रतिबद्ध है,  परंतु इसके लाभ को समान रूप से साझा करने के लिये यह आवश्यक है कि यह समझौता सभी 16 देशों के बीच संतुलित हो।

प्रमुख बिंदु

  • सिंगापुर और इंडोनेशिया ने भारत से इस समझौते को और अधिक समय तक न रोकने का आग्रह किया है।
  • RCEP में शामिल देशों की कुल आबादी 3.5 बिलियन है और ये देश विश्व के कुल सकल घरेलू उत्पाद में 30 प्रतिशत का योगदान करते हैं।
  • RCEP के सबसे बड़े मुक्त व्यापार क्षेत्र होने की संभावना है।

RCEP के बारे में :

  • RCEP या क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी, दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) के दस सदस्यीय देशों तथा छ: अन्य देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड), जिनके साथ आसियान का मुक्त व्यापार समझौता है, के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौता है।
  • इसका उद्देश्य व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिये इसके सदस्य देशों के बीच व्यापार नियमों को उदार एवं सरल बनाना है।
  • RCEP समूह में 16 सदस्य हैं।
  • इसकी औपचारिक शुरुआत नवंबर 2012 में कंबोडिया में आसियान शिखर सम्मेलन में की गई थी।
  • RCEP को ट्रांस-पैसिफिक भागीदारी के एक विकल्प के रूप में देखा जाता है।

भारत क्यों नहीं है तैयार?

  • प्रशुल्क उन्मूलन और कटौती को लेकर RCEP के ज़्यादातर सदस्य 92 प्रतिशत वस्तुओं पर शून्य प्रशुल्क लगाने की बात कर रहे हैं, जबकि भारत इसके लिये तैयार नहीं है।
  • भारतीय उद्योग और कृषि क्षेत्र ज़्यादातर उत्पादों पर प्रशुल्क में इतनी भारी कमी के लिये तैयार नहीं हैं, क्योंकि कई क्षेत्रों में वे अब भी विकासशील स्थिति में हैं और प्रशुल्क मुक्त प्रतियोगिता उनके हित में नहीं है।
  • यह समझौता भारत के डिजिटल उद्योग के संरक्षण को भी प्रभावित करेगा। इन देशों से भारत में सस्ते सामानों के आयात से घरेलू उद्योगों पर असर पड़ेगा।
  • भारत सेवाओं के उदारीकरण पर बल दे रहा है, जिसमें अल्पकालिक कार्य के लिये पेशेवरों के आने–जाने के नियमों को आसान बनाना शामिल है।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2