चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा | 19 Jan 2021

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2020 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा वर्ष 2015 के बाद से अपने पाँच वर्षों के सबसे न्यूनतम स्तर 45.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुँच गया। 

  • व्यापार घाटा (Trade Deficit):  जब किसी देश का कुल आयात उसके निर्यात से अधिक हो जाता है तो इस स्थिति को उसके व्यापार घाटे के रूप संदर्भित किया जाता है।   
  • व्यापार घाटे की गणना कुल आयात और निर्यात के अंतर के आधार पर की जाती है।
    • व्यापार घाटा= कुल आयात -कुल निर्यात 

प्रमुख बिंदु: 

  • वर्ष 2020 का द्विपक्षीय व्यापार: चीन के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ कस्टम्स (GAC) द्वारा जारी नवीन आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार 87.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो वर्ष 2019 की तुलना में 5.6% कम है।   
    • वर्ष 2020 में भारत द्वारा चीन से किया गया कुल  आयात 66.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जिसमें 10.8% की वार्षिक गिरावट देखने को मिली और यह वर्ष 2016 से सबसे निचले स्तर पर था।   
    • वर्ष 2020 में भारत से चीन को होने वाला निर्यात 16% की वार्षिक वृद्धि के साथ अब तक के सबसे उच्चतम स्तर 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
  • विश्लेषण:  
    • वर्ष 2020 में घरेलू मांग में गिरावट के कारण भारत के कुल आयात में गिरावट दिखने को मिली।
    • हालाँकि अभी भी इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि भारत ने इन वस्तुओं को किसी अन्य देश से आयात कर या स्वयं ही निर्मित करते हुए चीन पर अपनी आयात निर्भरता को बदल दिया है।
  • चीन से आयात होने वाले प्रमुख उत्पाद (वर्ष 2019 डेटा):
    • विद्युत मशीनरी और उपकरण, जैविक रसायन उर्वरक आदि।
  • चीन को  निर्यात होने वाले प्रमुख उत्पाद(2019 डेटा):
    • लौह अयस्क, कार्बनिक रसायन, कपास और अपरिष्कृत हीरा।
    • इसके अतिरिक्त वर्ष 2020 में COVID-19 के कारण आई मंदी के बाद विकास को पुनः गति प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई नई बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के साथ चीन में लौह अयस्क की मांग में वृद्धि देखी गई। 
  • चीन के साथ व्यापार घाटा: 
    • भारत और चीन के बीच व्यापार का संतुलन चीन के पक्ष में अधिक झुका हुआ है। चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा वर्ष 2020 में 45.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2019 में 56.77 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
    • चीन के साथ भारी व्यापार घाटे के लिये दो कारकों को उत्तरदायी माना जा सकता है,  भारत द्वारा प्राथमिक रूप से चीन को निर्यात की जाने वाली वस्तुओं की सीमित कमोडिटी बास्केट, और उन क्षेत्रों में बाज़ार पहुँच की बाधाएँ जहाँ भारत प्रतिस्पर्द्धी है, जैसे-कृषि उत्पाद तथा सूचना प्रौद्योगिकी।
    • समय के साथ चीन से मशीनरी, बिजली से संबंधित उपकरणों, दूरसंचार, जैविक रसायनों और उर्वरकों के निर्यात ने भारत के कच्चे माल-आधारित वस्तुओं को बहुत पीछे छोड़ दिया है।
  • चीन पर आयात निर्भरता कम करने के लिये किये गए उपाय:
    • पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव को देखते हुए भारत द्वारा 100 से अधिक चीनी मोबाइल एप्स पर प्रतिबंध लगाया गया।
    • भारत द्वारा कई क्षेत्रों में चीनी निवेश की जाँच में सख्ती की गई है, साथ ही सरकार द्वारा चीनी कंपनियों को 5G परीक्षण से बाहर रखने के निर्णय पर विचार किया जा रहा है।
    • सरकार ने हाल ही में चीन से टायरों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है, साथ ही घरेलू कंपनियों के "अवसरवादी अधिग्रहण" पर अंकुश लगाने के लिये भारत के साथ थल सीमा साझा करने वाले देशों हेतु विदेशी निवेश के लिये पूर्व मंजूरी अनिवार्य कर दी है।  यह एक ऐसा कदम है जो चीन के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को सीमित करेगा।
    • वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने 12 क्षेत्रों की पहचान की है जिनमें भारत को एक वैश्विक आपूर्तिकर्त्ता बनाने और आयात बिल में कटौती करने का लक्ष्य रखा गया है। इनमें खाद्य प्रसंस्करण, जैविक खेती, लोहा, एल्युमीनियम और तांबा, कृषि रसायन, इलेक्ट्रॉनिक्स, औद्योगिक मशीनरी, फर्नीचर, चमड़ा और जूते, ऑटो पार्ट्स, वस्त्र, मास्क, सैनिटाइज़र और वेंटिलेटर शामिल हैं। 
    • सक्रिय दवा सामग्री (API) के लिये चीन पर आयात निर्भरता में कटौती करने हेतु सरकार द्वारा मार्च 2020  में 13,760 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ चार योजनाओं वाले पैकेज को मंज़ूरी दी गई थी, इसका उद्देश्य देश में थोक दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के घरेलू उत्पादन के साथ इनके निर्यात को बढ़ावा देना है।

China-narrows

स्रोत: द हिंदू