अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारतीय अर्थव्यवस्था की नई प्रवृत्तियाँ एवं उनका आकलन
- 19 Sep 2017
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चर्चा में क्यों ?
न्यू यॉर्क स्थित डेलॉइट के मुताबिक, चीन और एशियाई टाइगर्स यानी हांगकांग, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और ताइवान (ये एशियाई क्षेत्र के सबसे पहले औद्योगिक राष्ट्र हैं) की तेज़ी से उम्रदराज़ होती कार्यशील जनसंख्या की तुलना में भारत अपनी युवा जनसंख्या के दम पर एशिया की आर्थिक महाशक्ति के तौर पर उभरने की ओर अग्रसर है।
प्रमुख बिंदु
- डेलॉइट द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया में 65 या इससे अधिक की आयुवर्ग लोगों की संख्या वर्तमान के 365 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2027 में आधा बिलियन के करीब हो जाएगी।
- इसके विपरीत, आगामी 20 वर्षों में भारत की कार्यशील जनसंख्या के 885 मिलियन से 1.08 बिलियन होने की संभावना है। इस कार्यशील जनसंख्या के दम पर भारत जापान एवं चीन के बाद एशिया की तीसरी सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्था के रूप में उभरकर सामने आएगा।
- आने वाले दशक में भारत एशिया की समस्त कार्यशील जनसंख्या में आधे से भी अधिक का योगदान करेगा।
- परंतु, यहाँ इस बात के संदर्भ में विशेष रूप से गौर किये जाने की आवश्यकता है कि यह केवल अधिक से अधिक कार्यशील जनसंख्या का मुद्दा नहीं है।
- असल बात यह है कि ये नए कर्मचारी मौजूदा भारतीय कर्मचारियों की तुलना में बेहतर तरीके से प्रशिक्षित और कुशल होंगें। इसका प्रभाव यह होगा कि इनकी आर्थिक क्षमता में बढ़ोतरी होगी।
- हालाँकि, इसमें सबसे अहम् योगदान महिलाओं कर्मचारियों का होगा, क्योंकि पुरुष कर्मचारियों की तुलना में महिला कर्मचारियों की काम करने की क्षमता एवं रूचि कहीं अधिक होती है।
- डेलॉयट के अनुसार, इंडोनेशिया और फिलीपींस में भी अपेक्षाकृत युवा जनसंख्या है, स्पष्ट रूप ये देश भी भारत की ही तरह आर्थिक विकास का अनुभव करेंगे।
- इनकी तुलना में भारत की स्थिति थोड़ी अलग है। यह सच है कि आगामी समय में भारत की युवा जनसंख्या में बढ़ोतरी होगी जो उसकी आर्थिक क्षमता में वृद्धि करेगी।
- परंतु, यह तभी संभव है जब इस युवा जनसंख्या को बेहतर तरीके से प्रशिक्षित करते हुए संसाधनों के उचित इस्तेमाल एवं प्रबंधन में दक्ष बनाया जाएगा।
- यदि भारत ऐसा करने में असफल रहता है तो इसकी युवा जनसंख्या को बेरोज़गारी एवं सामाजिक अशांति का सामना करना पड़ेगा। स्पष्ट रूप से इससे भारत की अर्थव्यवस्था को ही सबसे अधिक नुकसान पहुँचेगा।
सबसे अधिक प्रभावित होने वाले
- चीन, हांगकांग, ताइवान, कोरिया, सिंगापुर, थाईलैंड और न्यूज़ीलैंड कुछ ऐसे देश हैं, जिन्हें अपनी उम्रदराज़ होती जनसंख्या के कारण सबसे अधिक चुनौतियों का सामना करन पड़ेगा।
- इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया पर भी इसकी जनसंख्या की बढती उम्र का प्रभाव देखने को मिल सकता है।