भारत सिंधु नदी जल समझौता पर लाहौर-बैठक में भाग लेगा| | 03 Mar 2017
पाकिस्तान के साथ सिन्धु नदी जल समझौता (Indus Waters Treaty – IWT) के संदर्भ में अपने रुख में परिवर्तन करते हुए भारत ने एक अहम निर्णय लेते हुए, लाहौर में आयोजित होने वाली अगली स्थायी सिन्धु आयोग (Permanent Indus Commission - PIC) की बैठक में भाग लेने संबंधी निमन्त्रण को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है| एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्पष्ट किया है कि यह पीआईसी की बाकी सभी बैठकों की भाँति एक सामान्य द्विपक्षीय बैठक होगी, जिसके अंतर्गत सिन्धु जल समझौते से संबंधित सभी पक्षों पर विचार-विमर्श किया जाएगा|
प्रमुख बिंदु
- गौरतलब है कि सिन्धु जल समझौते के संबंध में भारत के रुख में नरमी आने का प्रमुख कारण विश्व बैंक द्वारा मध्यस्थता करना है|
- पीआईसी की आखिरी बैठक पिछले वर्ष जुलाई 2016 में आयोजित की गई थी| उस समय इस समस्या का सकारात्मक हल निकलने के आसार नज़र आने लगे थे, परन्तु सितंबर माह में उरी कांड के पश्चात् भारत सरकार ने इस संबंध में कोई बातचीत करने से इनकार कर दिया था|
- तत्पश्चात् नवंबर 2016 में विश्व बैंक द्वारा पाकिस्तान एवं भारत के मध्य किशनगंगा (Kishenganga) तथा रतले नदी (Ratle river) जल परियोजनाओं के संबंध में उपजे विवादों के निपटारे के लिये एक अदालती पंचाट को गठित करने का निणर्य लिया गया| इस मुद्दे ने एक बार फिर से सिन्धु जल समझौता विवाद को चर्चा को विषय बना दिया|
- परन्तु, भारत ने विश्व बैंक के इस निर्णय को पाकिस्तान के समर्थन में एकपक्षीय निर्णय करार देते हुए इससे अपने कदम वापस खिंच लिये|
- हालाँकि, विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम योंग किम के इस विवाद में मध्यस्थ बनने के कारण यह मामला सुलझा लिया गया|
सिन्धु नदी जल समझौता के जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य
- उल्लेखनीय है कि सिंधु नदी तकरीबन 11.2 लाख किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है| इस समस्त नदी क्षेत्र में: पाकिस्तान (47 प्रतिशत), भारत (39 प्रतिशत), चीन (8 प्रतिशत) और अफ़गानिस्तान (6 प्रतिशत) शामिल हैं|
- ध्यातव्य है कि सिन्धु जल समझौता 19 सितंबर, 1960 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू तथा तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान के द्वारा स्वीकार किया गया था|
- उस समय भी इस विवाद की मध्यस्थता विश्व बैंक द्वारा ही की गई थी|
- इस समझौते के अंतर्गत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया| व्यास, रवि तथा सतलज नदियों को पूर्वी नदी बताते हुए इन नदियों को भारत सरकार के क्षेत्राधिकार में शामिल किया गया जबकि पश्चिमी नदियों सिन्धु, चेनाब तथा झेलम को पाकिस्तान के क्षेत्राधिकार के रूप में चिन्हित किया गया|
- यह और बात है कि सिन्धु नदी बहती तो भारत में हैं परन्तु, भारत को इस नदी के केवल 20 फीसदी भाग को ही सिंचाई, विद्युत निर्माण तथा यातायात आदि के रूप में ही प्रयोग करने का अधिकार प्राप्त हैं|
- कुछ समय पश्चात् इस समझौते के अंतर्गत एक स्थायी सिंधु आयोग की स्थापना की गई|
- इसके अलावा समझौते में विवादों का हल ढूँढने के लिये एक तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने या कोर्ट ऑफ़ आर्ब्रिट्रेशन (Court of Arbitration) में जाने का भी रास्ता शामिल किया गया है|
यूएनडीपी की रिपोर्ट
- गौरतलब है कि कुछ समय पहले सिन्धु नदी जल समझौते के सन्दर्भ में यूएनडीपी (United Nations Development Programme - UNDP) द्वारा एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई| इस रिपोर्ट में जल समझौते के सफल क्रियान्वयन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाओं के लिये पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराया गया है|
- “डेवलमेंट ऐडवोकेट पाकिस्तान” (Development Advocate Pakistan) नामक इस रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि वर्ष 1990 से इस समझौते के क्रियान्वयन में पाकिस्तान की ओर से हुए विलंब ने इस समझौते को तनाव की स्थिति में पहुँचा दिया है|
- रिपोर्ट के अनुसार, यह समझौता निम्न दो महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं के अनुपालन में पूर्णतया असफल साबित हुआ है, सर्वप्रथम, सूखे वाले वर्षों में भारत एवं पाकिस्तान दोनों ही कोई बीच का मार्ग निकाल पाने में असमर्थ साबित हुए हैं|
- दूसरा, चेनाब नदी के जल प्रवाह को संचित करने से पाकिस्तान पर पड़ने वाले इसके प्रभाव का उचित अध्ययन न करना|
- हमेशा से पकिस्तान इस समझौते के औचित्य पर सवाल उठाता आया है| परन्तु भारत की ओर से सदैव इस समझौते के अनुपालन को प्रोत्साहित किया गया है|
- रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियरों के पिघलने तथा वर्षा के बदलते समीकरण ने इस समझौते के उचित क्रियान्वयन तथा जल संसाधनों के समुचित प्रयोग के महत्त्व को बहुत अधिक बढ़ा दिया है|
- स्पष्ट है कि इन सभी पक्षों के विषय में सही से विचार न किये जाने की स्थिति में दोनों देशों की अर्थव्यवस्था विशेषकर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ेगा|